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ताओ उपनिषद भाग ४
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जीसस ने कहा है, जो बचाएगा अपने को वह खो देगा, और जो खोने को राजी है उसको मिटाने का कोई भी उपाय नहीं है।
मरने की कला भी सीखनी चाहिए, तो ही हम जीवन के परम रहस्य को जान पाते हैं। मरने की कला का अर्थ है परिधि पर, बाहर, दूसरों की तरफ से मर जाना। सिर्फ एक ही बिंदु जीवन का रह जाए, वह मेरे भीतर के चैतन्य का केंद्र, और सब तरफ से मैं अपने को समेट लूं और मर जाऊं। एक क्षण को भी यह घटना घट जाए कि बाहर की दुनिया समाप्त हो गई, सब मर गया, सब मरघट है, और सिर्फ मेरी एक ज्योति जलती रह गई, फिर मेरे लिए मृत्यु नहीं है। फिर मैं वापस लौट आऊंगा, इस मुर्दों की दुनिया में वापस आ जाऊंगा, लेकिन फिर मैं मरने वाला नहीं। एक क्षण का भी अनुभव हो जाए स्वयं के स्रोत का तो अमृत उपलब्ध हो गया।
अमृत की खोज लोग करते हैं कि कहीं अमृत मिल जाए! कहीं पारे में छिपा हो, किसी रसायन में छिपा हो । एक बूढ़े सज्जन को मैं जानता रहा हूं। जैसे-जैसे उनकी मौत करीब आती है वे और पगलाते जाते हैं। वे जब भी मुझे मिलने आते थे बस वह एक ही उनकी बात थी कि अमृत जैसी कोई चीज है? किस रसायन-विधि से आदमी सदा जीवित रह सकता है, वह बताइए ।
मैं उनको कहा कि आपको तो मरना ही होगा। क्योंकि जिस जगह आप अमरत्व खोज रहे हैं वहां तो मृत्यु ही है। कोई रसायन - विधि अमरत्व नहीं दे सकती है। लंबाई दे सकती है जिंदगी को, अमरत्व नहीं दे सकती है। और लंबाई से कुछ हल नहीं होता; लंबाई से मुसीबत बढ़ती है। क्योंकि जितनी लंबाई होती है उतनी ही मौत ज्यादा दिनों तक पीछा करती है। जो आदमी एक ही साल की उम्र में मर गया, उसको शायद मौत का पता ही नहीं। लेकिन जो आदमी सौ साल में मरेगा, उसने सौ साल मौत को अनुभव किया। सौ साल डरा, बामुश्किल मर रहा है।
आपको पता है, अभी अमरीका में उन्होंने एक सर्वे किया। तो उन्होंने देखा कि पैंतीस साल की उम्र में सौ आदमियों में से केवल बीस आदमी आत्मा की अमरता में भरोसा करते हैं। सौ में से केवल बीस, पैंतीस साल की उम्र में पचास साल की उम्र में सौ में से चालीस भरोसा करते हैं। सत्तर साल की उम्र में सौ में से अस्सी भरोसा. करने लगते हैं । और सौ साल के ऊपर उन्हें जितने आदमी मिले उनमें एक भी आदमी नहीं मिला जो आत्मा की अमरता में भरोसा न करता हो। जैसे-जैसे मौत डराने लगती है, वैसे-वैसे आत्मा अमर है, ऐसा भरोसा आदमी करने लगता है। पैंतीस साल की उम्र में अकड़ होती है; मौत का कोई भय नहीं होता। सौ साल में सभी की कमर झुक जाती है; मौत काफी प्रगाढ़ 'जाती है।
मैं उनको कहता था कि आप बाहर मत खोजें; बाहर खोजने से कोई कभी अमृत को उपलब्ध नहीं होता । अमृत जरूर मिल सकता है, लेकिन वह रसायन में नहीं है। वह किसी वनस्पति में नहीं छिपा है। और वह किसी अल्केमी की कला में नहीं छिपा है । अमृत जरूर उपलब्ध है, लेकिन वह स्वयं के भीतर है, और वह उसे उपलब्ध होता है जो मर कर जीवित है, जो बाहर की परिधि पर मर जाता है और सिर्फ भीतर के जीवन में जीता है।
'वह चिर - जीवन को उपलब्ध होता है।'
पांच मिनट कीर्तन करें और फिर जाएं।