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________________ स्वयं का बाबही बाब है डिसीसिवनेस! कि कोई निर्णय लिया तो उस निर्णय को टिकने देना। निर्णय के टिकने देने में आप इकट्ठे होते हैं; संकल्प पैदा होता है। सच कहें तो आत्मा पैदा होती है। चाहे वह कितना ही छोटी बात क्यों न हो; छोटी और बड़ी बात का सवाल नहीं है। जब आप किसी बात पर एक निर्णय लेते हैं और निर्णय लेते ही विकल्प का कोई सवाल नहीं रह जाता; बात समाप्त हो गई; अब लौटने का कोई उपाय न रहा। ऐसी भाव-दशा में आप इकट्ठे हो जाते हैं; आप टूट नहीं सकते। लेकिन अभी आप छोटा सा भी निर्णय लेते हैं, तो जब आप निर्णय ले रहे हैं तब भी आप भलीभांति जानते हैं कि यह चलने वाला नहीं है। यह बड़े मजे की बात है! जब आप ले रहे हैं तब भी आप जानते हैं कि यह चलने वाला नहीं है। यह जो भीतर से कह रहा है कि चलने वाला नहीं है, यही उसको मिटाएगा, यही उसको तोड़ेगा। सुना है मैंने कि विवेकानंद का एक प्रवचन एक बूढ़ी औरत ने सुना। वह भागी हुई घर गई। क्योंकि विवेकानंद ने बाइबिल का एक वचन उद्धृत किया था और कहा था कि फेथ कैन मूव माउंटेन्स, विश्वास से पहाड़ भी हटाए जा सकते हैं। उस बूढ़ी औरत के मकान के पीछे एक पहाड़ी थी। तो उसने सोचा कि हद हो गई, अब तक इसका अपने को पता ही नहीं था। अगर विश्वास से पहाड़ी हटाई जा सकती है, हटाओ इस पहाड़ी को! वह भागी हुई घर पहुंची। उसने खिड़की से आखिरी बार पहाड़ी को देखा, क्योंकि फिर जब प्रार्थना कर चुकेगी तो पहाड़ी हट चुकी होगी। फिर उसने खिड़की बंद की और प्रार्थना की, और फिर उठ कर देखा, पहाड़ी वहीं की वहीं थी। उसने कहा, हमें पहले से ही पता था कि ऐसे कहीं कोई पहाड़ियां हटती हैं! पहले से ही पता था! तो फेथ का क्या मतलब होता है? और मैं आपसे कहता हूं, पहाड़ी हट सकती थी; उस बढ़ी औरत के कारण ही न हटी। भीतर, निश्चित ही, श्रद्धा पहाड़ को हटा सकती है; पहाड़ों से भी बड़ी चीजें हैं, उनको हटा सकती है। लेकिन श्रद्धा का मतलब होता है: एकजुट, एक भाव; जहां कोई द्वंद्व नहीं भीतर, जहां कोई दूसरा स्वर नहीं। ध्यान रखना, वह जो दूसरा स्वर है वह उपद्रव है। जब आप किसी के साथ विवाह कर रहे हैं तब भी आप भीतर तलाक का फार्म भर रहे हैं। जब आप किसी से प्रेम कर रहे हैं तब भी आपको पता है कि आप जो कह रहे हैं यह सच नहीं हो सकता; यह है नहीं। मित्रता का एक हाथ बढ़ा रहे हैं और दूसरा हाथ दुश्मनी के लिए तैयार रखा हुआ है। टूटे हुए हैं, खंड-खंड हैं। यह खंडित व्यक्तित्व जो है, यही दरिद्रता है। अखंड व्यक्तित्व समृद्धि है। . 'जो दृढ़मति है वही संकल्पवान है। और जो अपने केंद्र से जुड़ा रहता है वह मृत्युंजय है।' जिसने अपने केंद्र के साथ अपना संबंध स्थापित कर लिया, नहीं टूटने दिया, जिसकी जड़ें नहीं उखड़ी स्वयं के केंद्र से, उसकी कोई मृत्यु नहीं है। क्योंकि मृत्यु केवल परिधि की है, केंद्र की मृत्यु नहीं है। मृत्यु केवल आपके व्यक्तित्व की है, आपकी कभी भी नहीं है। मरते हैं आप इसलिए कि आप जिससे अपने को जोड़े हैं वह मरणधर्मा है। और जो आपके भीतर अमृत है उस पर आपका कोई ध्यान नहीं है। यह जो स्वयं की अंतर्यात्रा है-विद्वत्ता को अलग करें, ज्ञान को ध्यान में लें; दूसरे को जीतने की चिंता छोड़ें, स्वयं की विजय की यात्रा पर निकलें; धन धन में नहीं, संतोष में है, और संकल्प में है, निर्णयात्मक बुद्धि में है, आपकी आत्मा में है, ऐसी दृष्टि हो और ऐसी यात्रा हो तो आप अपने केंद्र से पुनः जुड़ जाएंगे। जुड़े ही हुए हैं। स्मरण आ जाएगा, प्रत्यभिज्ञा हो जाएगी। और उस प्रत्यभिज्ञा का अर्थ है कि आप मृत्युंजय हैं। 'और जो मर कर जीवित है वह चिर-जीवन को उपलब्ध होता है।' और आपको अपनी परिधि पर मरना होगा, तो ही आप अपने भीतर छिपे चिर-जीवन को जान सकेंगे। आपको अपनी इंद्रियों से मरना होगा, तो आप अपने अतींद्रिय जीवन को जान सकेंगे। आपको अपने मन में मरना होगा, तो आप अपने आत्मा के अमृत को जान सकेंगे।
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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