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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ थी, इस आखिरी क्षण में दिख गया होगा कि भूल हो गई। तत्क्षण उन्होंने कहा, मुझे माफ कर; तेरी मर्जी पूरी हो। जैसे ही उन्होंने कहा, तेरी मर्जी पूरी हो, जीसस खो गए और क्राइस्ट का जन्म हो गया। इस एक वचन के फासले में संसार और मोक्ष का फासला है। जरा सी शिकायत, और आप संसार में हैं। शिकायत का खो जाना, और आप मोक्ष में हैं। इसलिए लाओत्से कहता है, 'जो संतोष से संतुष्ट है, वह सदा भरा-पूरा रहेगा। सदा! थोड़ा संतोष को साधे। और जब मैं कहता हूं संतोष को साधे, तो ध्यान रखें, सांत्वना की बात नहीं कर रहा हूं। संतोष को साधे, तो मेरा मतलब है, जो है उसको अहोभाव से जीएं, जो है उसको आनंद-भाव से स्वीकार करें, जो है उसको उत्सव बना लें। रूखी रोटी भी अहोभाव से खाई जा सके, तो उससे ज्यादा स्वादिष्ट, उससे ज्यादा परम भोग दूसरा नहीं हो सकता। नहीं तो आपके सामने परम भोग रखा हो, शिकायत से भरा हुआ मन हो तो कचरा रखा है। उसका कोई प्रयोजन नहीं है। थोड़ा शिकायत को हटाएं। और चौबीस घंटे स्मरण रखें कि शिकायत बीच में न आए। और जहां भी शिकायत बीच में आए उसे हटा दें। जैसा बार-बार जीसस कहते हैं, शैतान, मेरे सामने से हट जा! शैतान सिवाय शिकायत के और कोई भी नहीं है। जब भी शिकायत आए तो उससे कहें कि मेरे सामने से हट जा! और कोशिश करें देखने की उस तत्व को जिससे संतोष पैदा हो। गलत को देखना छोड़ें। कांटों को गिनना बंद करें। फूलों पर थोड़ी नजर लाएं। जैसे-जैसे फूल ज्यादा दिखाई पड़ने लगेंगे वैसे-वैसे कांटे खो जाएंगे। और एक घड़ी ऐसी भी आती है संतोष की जब कांटा भी फूल दिखाई पड़ने लगता है। उस क्षण रूपांतरण है। उस क्षण उसकी मर्जी पूरी होने लगती है। असंतोष का अर्थ है, मेरी मर्जी तेरे ऊपर। संतोष का अर्थ है, मेरी कोई मर्जी नहीं; बस तेरी मर्जी ही मेरा जीवन है। आज इतना ही। 384
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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