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________________ प्रार्थना मांग नहीं, धन्यवाद है 'स्वामित्व की इच्छा से बड़ा कोई पाप नहीं। इसलिए जो संतोष से संतुष्ट है, वह सदा भरा-पूरा रहेगा।' और जो असंतोष से भरा है वह सदा खाली है; उसे भरा नहीं जा सकता। उसे हम सारा संसार भी दे दें, तो भी उसका भिक्षा-पात्र खाली रहेगा। वह कहेगा, बस इतना ही! और कुछ नहीं? वह यही पूछेगा कि बस हो गया समाप्त संसार? इससे ज्यादा पाने को कुछ भी नहीं? वह उसके मन की आदत है। जब भी उसे कुछ मिलता है तब वह यही पूछता रहा है। उसे सब मिल जाए, उसे परमात्मा भी मिल जाए, तो वह परमात्मा के सामने उदास खड़ा हो जाएगा और वह कहेगा, बस इतना ही? वह मन जो है, असंतोष से भरा हुआ है। उसमें कोई पेंदी नहीं है। उसे आप कितना ही भरते चले जाएं उस बर्तन को, उसमें नीचे कोई पेंदी नहीं है कि बर्तन भर जाए। पानी सब बहता चला जाता है। और वह जो संतोष से भरा हुआ मन है वह बर्तन नहीं है, सिर्फ पेंदी है। उसे एक बूंद भी भर देती है। इसे फिर से दोहरा दूं: वह जो असंतुष्ट मन है वह पेंदी से रहित बर्तन है; उसमें हम पानी डालते जाएं, वह खाली होता जाता है। इधर हम डालते हैं, उधर वह खाली होता है। कितना ही डालें, वह खाली रहेगा। सारे महासागर हम उसमें डाल दें तो भी वह खाली रहेगा। क्षण भर को भरा हुआ दिख सकता है, जब पानी गिर रहा है। और वह जो संतुष्ट मन है वह सिर्फ पेंदी है, उसमें कोई बर्तन नहीं है। वह खाली भी हो तो भरा हुआ है। उसमें एक बूंद भी काफी है। ___ 'जो संतोष से संतुष्ट है, वह सदा भरा-पूरा रहेगा।' पहचानें अपने को। आपको कभी भी ऐसा लगता है, आप भरे-पूरे हैं? कभी भी ऐसा लगता है कि धन्यवाद दे सकें आप परमात्मा को कि तूने बहुत दिया? कभी भी ऐसा लगता है कि सब कुछ पा लिया, कुछ पाने को नहीं है? ऐसा कभी नहीं लगता। शिकायत बनी रहती है। हमारी प्रार्थनाएं, पूजाएं, सब हमारी शिकायतें हैं। जब कि वास्तविक प्रार्थना केवल धन्यवाद हो सकती है, शिकायत नहीं। लोग मंदिरों में जाकर कह रहे हैं कि क्यों मुझे इस गरीबी में डाल रखा है? क्यों मुझे बीमारी में डाल रखा है? क्यों मुझे इतनी असफलता मिल रही है? मंदिर शिकायतों से भरे हैं, प्रार्थनाएं शिकायतों के आस-पास निर्मित होती हैं; जब कि वास्तविक प्रार्थना केवल धन्यवाद हो सकती है, केवल आभार हो सकती है, एक अहोभाव हो सकती है। जिस दिन आप मंदिर जाकर कह सकेंगे कि धन्य है मेरा भाग्य कि तूने इतना दिया, जरूरत से ज्यादा दिया, पात्रता से ज्यादा दिया, जो मेरे पास है उससे मैं तृप्त हूं! उस दिन आपकी प्रार्थना वास्तविक हो जाएगी, प्रामाणिक हो जाएगी। उस दिन आपकी प्रार्थना सुन ली जाएगी। उस दिन कोई अंतराल आप में और परमात्मा के बीच नहीं रह जाता। शिकायत अंतराल है। अहोभाव बीच की खाली जगह का मिट जाना है। जीसस मरते क्षण में, आखिरी क्षण में, एक शिकायत से भर गए कि हे परमात्मा, यह क्या दिखला रहा है! सूली पर हाथ में खीले ठोंके जा रहे हैं और एक क्षण को उनके मुंह से निकल गया कि हे परमात्मा, यह क्या दिखला रहा है। यह हम सब मनुष्यों का प्रतीक है। शिकायत बड़ी गहरी है। जीसस जैसे व्यक्तित्व में भी शिकायत आ गई। लेकिन जीसस ने होश सम्हाल लिया और दूसरा वचन उन्होंने कहा कि मुझे क्षमा कर, तेरी ही मर्जी पूरी हो। मेरे अपने जानने में, इन दो वाक्यों के बीच ही संसार और मोक्ष का फासला है। इस एक क्षण पहले तक जीसस संसार के हिस्से थे। जब तक शिकायत थी तब तक असंतोष था। जब तक असंतोष था तब तक प्रार्थना नहीं हो सकती थी, परमात्मा से कोई मिलन नहीं हो सकता था। जरा सा फासला बाकी था—यह मुझे क्यों दिखला रहा है? इसका मतलब यह है कि तू कुछ गलत कर रहा है। इसका मतलब है कि बेहतर था इससे, वह मैं जानता हूं कि क्या होना चाहिए था। इसमें सलाह है, मशविरा है, प्रार्थना है, आकांक्षा है, कोई इच्छा है, कोई असंतोष है। लेकिन जीसस को दिख गया होगा, उतने संवेदनशील व्यक्ति को, जिसकी चेतना संवेदना के आखिरी कगार पर पहुंच गई 383
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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