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प्रार्थना मांग बही, धन्यवाद है
'जब संसार ताओ के प्रतिकूल चलता है, तब गांव-गांव में अश्वारोही सेना भर जाती है।'
जब कोई व्यक्ति ताओ के प्रतिकूल चलता है तो उसके भीतर सिवाय घृणा, क्रोध, द्वेष और ईर्ष्या के कुछ भी नहीं बचता। हर आदमी जलता हुआ है। सब आदमी अपनी-अपनी राख में छिपाए अपनी आग को चल रहे हैं। ऊपर से राख दिखाई पड़ती है तो आप सोचते हैं, कोई खतरा नहीं है। सबके भीतर अंगारा है। जरा सी हवा का झोंका, और अंगारा प्रकट हो जाता है और लपटें निकलने लगती हैं।
इससे केवल एक बात की सूचना मिलती है कि आपके भीतर कोई संगीत, कोई संतोष, कोई सुख की धारा नहीं बह रही है। आपका क्रोध केवल लक्षण है, आपकी घृणा लक्षण है; बीमारी नहीं है। इसलिए जो धर्मगुरु सिखाते हैं कि क्रोध मत करो, घृणा मत करो, व्यर्थ की बातें सिखा रहे हैं। उनकी बातें ऐसी हैं जैसे किसी को बुखार चढ़ा हो
और कोई उसको समझा रहा हो कि गर्म मत होओ। उसके हाथ के बाहर है। गरमी होना कोई बीमारी नहीं है। वह जो शरीर पर तापमान बढ़ रहा है वह तो केवल लक्षण है। बीमारी कहीं भीतर है। लाओत्से के हिसाब से, स्वभाव से अलग हो जाना, या स्वभाव के प्रतिकूल हो जाना बीमारी है। फिर सब चीजें पैदा होंगी। इसलिए आप लाख उपाय करें कि क्रोध न करें, कुछ हल न होगा। यह हो सकता है कि आप क्रोध को निकलने से रोक लें, दबा लें, छिपा लें। आज नहीं कल निकलेगा; कल नहीं परसों निकलेगा। ज्यादा होकर निकलेगा। और आज निकलने में शायद कोई तुक भी होती, जब परसों निकलेगा तो कोई तुक भी न होगी। आज शायद कोई परिस्थिति में संगत भी मालूम होता, जब दबा लेंगे उसको, पीछे असंगत परिस्थिति में निकल आएगा, तब और भी पीड़ा होगी।
जो लोग छोटा-छोटा क्रोध कर लेते हैं वे बड़े अपराध नहीं करते। जो लोग छोटा-छोटा क्रोध रोक लेते हैं वे बड़े अपराध करते हैं। अब तक ऐसा नहीं हुआ है कि सहज, सामान्य परिस्थिति में क्रोध करने वाले आदमियों ने हत्याएं की हों या आत्महत्याएं की हों। हत्याएं करने वाले लोग वे ही होते हैं जो क्रोध को पीने और इकट्ठा करने की कला जानते हैं। फिर इतना इकट्ठा हो जाता है कि उसका विस्फोट प्राण ले लेता है।
यह करीब-करीब ऐसा है। वैज्ञानिक कहते हैं कि चाय में जहर है। निकोटिन जहर है। आप अगर दिन में दो कप चाप पीते हैं तो आप बीस साल में जितनी चाय पीएंगे, उतना निकोटिन अगर आप इकट्ठा एक दिन में पी लें तो आप अभी मर जाएंगे, एक क्षण में। लेकिन दो कप चाय रोज पीने से कोई मरता नहीं। बीस साल-और वह बीस साल नहीं, आप बीस जन्म भी दो कप रोज पीते रहें तो भी नहीं मरेंगे। क्योंकि निकोटिन कोई इकट्ठा नहीं हो रहा है कि बीस साल में इकट्ठा होकर जान ले लेगा। वह रोज बहता जा रहा है। . जो आदमी रोज छोटा-मोटा क्रोध कर लेता है, खतरनाक नहीं है। जो आदमी बीस साल तक क्रोध को रोक ले, उसके पास भी मत फटकना। वह बिलकुल विस्फोटक है, इनफ्लेमेबल है। वह कभी भी किसी भी वक्त लपट पकड़ सकता है। और जब लपट पकड़ेगा तो छोटी घटना घटने वाली नहीं है। क्रोध को दबाने से केवल क्रोध इकट्ठा होगा, घृणा को दबाने से घृणा इकट्ठी होगी। और जो भी इकट्ठा होगा, अगर वह छोटी मात्रा में बुरा था तो बड़ी मात्रा में तो और भी बुरा होगा।
लाओत्से दमन के पक्ष में नहीं है। लाओत्से कहता है, ये तो केवल संकेत हैं कि तुम्हें क्रोध उठता है, घृणा उठती है, ईर्ष्या उठती है, द्वेष उठता है। ये सूचनाएं हैं कि तुम स्वभाव से हट गए हो। इनकी फिक्र छोड़ो। स्वभाव के साथ एक होने की फिक्र करो। जैसे ही तुम स्वभाव से एक हो जाओगे, ये घटनाएं बंद हो जाएंगी, ये घटनाएं तिरोहित हो जाएंगी। क्रोध को दबाना नहीं पड़ेगा, क्रोध तुम अचानक पाओगे कि होना बंद हो गया। तुम्हारी चेतना की स्थिति बदलनी चाहिए तो तुम्हारे मन के रोग बदलेंगे। चेतना की स्थिति पुरानी ही रहे और तुम मन को बदल लो, ऐसा न कभी हुआ है, न हो सकता है। चेतना बदलनी चाहिए। चेतना के तल हैं। जैसे-जैसे चेतना गहरी होने लगती है
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