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सर्वाधिक मूल्यवान-स्वयं की बिजता
यह जो लाओत्से कहता है, इसलिए जो सर्वाधिक प्रेम करता है, वह सर्वाधिक खर्च करता है। वह बांटता है अपने को, लुटाता है, उलीचता है। और जितना अपने को लुटाता है, जितना अपने को उलीचता है, उतना ही पाता है कि जीवन नए स्रोतों से और भी ज्यादा समृद्ध हो गया। कुएं की भांति है आदमी का व्यक्तित्व। उससे पानी निकालो, नया पानी नए झरनों से भर जाता है। पानी मत निकालो, झरने धीरे-धीरे बंद हो जाते हैं। और जो पानी था वह सड़ जाता है, गंदा हो जाता है, दुर्गंध देने लगता है। उलीचो कुएं को, कुआं सदा ताजा और नया होता है।
जितना ही कोई व्यक्ति अपने प्रेम को उलीचता है उतना ही पाता है कि प्रेम के नए झरने खुल गए। धीरे-धीरे वैसा व्यक्ति प्रेम का सागर हो जाता है। उसे खाली करने का कोई उपाय नहीं। भय के कारण जो लोग अपने प्रेम को सम्हाले रखते हैं कि कहीं कम न हो जाए, कहीं बांटा, किसी को दिया, तो व्यय न हो जाए, उन्हें जीवन की अनंत संपदा का कोई पता नहीं। वे क्षुद्र संपत्ति से परिचित हैं जो खर्च करने से घटती है। तिजोड़ी में से कुछ भी खर्च करिए तो घटेगा, क्योंकि तिजोड़ी के पास कोई सागर से जुड़े हुए झरने नहीं हैं। आदमी के हृदय के पास परमात्मा से जुड़े हुए झरने हैं। यहां लुटाओ, वहां से भर दिया जाता है। __'जो बहुत संग्रह करता है, वह बहुत खोता है।'
जितना ही कोई इकट्ठा करता है वस्तुएं, धन, उतना ही अपने को खो रहा है। क्योंकि बांटने की कला वह भूल जाएगा; संग्रह करने की व्यवस्था में लुटाने की कला भूल जाएगा। और लुटाने से ही कोई बढ़ता है। यह खोना वास्तविक घटना है। इधर आप जोड़ते चले जाते हैं तो आपको खयाल में भी नहीं आता कि आप कुछ खो रहे हैं।
निकोडेमस, एक अमीर युवक, एक रात जीसस के पास गया। रात में गया, क्योंकि दिन में गांव के लोग देख लें और कोई अड़चन की बात खड़ी हो जाए, या गांव के लोगों के सामने जीसस के पास जाना किसी झंझट में डाल सकता है। जीसस से क्या बात हो, जीसस क्या कहें, उनका क्या प्रत्युत्तर हो, उससे भी अड़चन हो सकती है। इसलिए रात अंधेरे में जब कोई भी न था और जीसस के शिष्य जा चुके थे तब वह जीसस के पास गया। और उसने कहा, मुझे कुछ बताएं। मैं भी स्वयं को पाना चाहता हूं, कोई रास्ता! और मैं भला आदमी हूं। जो भी नियम हैं समाज के उनको मैं पूरी तरह पालन करता हूं। चरित्र में मेरे कोई कमी नहीं है। धर्म का जो भी क्रियाकांड है, उसे मैं निभाता हूं। सब पर्व, उत्सव मंदिर पर पहुंचता हूं। पूजा-पाठ, जैसा भी शास्त्रोचित है, वह सब मैंने किया है।
तो ऐसे मेरे जीवन में कोई बुराई नहीं है। फिर अब मैं और क्या करूं जिससे कि मैं स्वयं को पा सकू? जीसस ने कहा, इन सब बातों से कुछ भी न होगा; यह सब धोखा है। तुम एक काम करो, तुम्हारे पास जो भी है तुम उसे बांट कर आ जाओ। उस युवक ने कहा, यह जरा मुश्किल है। कोई और रास्ता नहीं है? जीसस ने कहा कि जब तक तुम्हारे पास जो है, उसे तुम बचाना चाहते हो, तब तक तुम स्वयं को न पा सकोगे।
यह युवक सब कुछ करने को राजी है। नियम पूरे पालन करता है। मंदिर, पूजा-पाठ, सब पूरे करता है, जो भी परंपरा ने कहा है। लीक पर चलता है, उसमें कहीं कोई भूल-चूक नहीं है। न शराबघर जाता है, न वेश्याघर जाता है। सब तरह से, जिसको हम कुलीन, सच्चरित्र, सज्जन कहें, वैसा व्यक्ति है, जिसमें भूल-चूक आप नहीं निकाल सकते। जिसमें कोई दोष नहीं है। जिस पर कोई कलंक नहीं है। गांव में कोई एक व्यक्ति नहीं कह सकता कि इस पर कोई दोष और कलंक है। उससे भी जीसस कहते हैं, इस सबसे कुछ भी न होगा। यह सब बेकार है। यह सब धोखा है। तेरे पास जो है, तू उसको छोड़ कर आ जा। सब छोड़ कर आ जा।
यह सवाल जीसस का उठाना महत्वपूर्ण है। इससे आप यह मत समझना कि आप सब छोड़ दें तो आपको आत्मा मिल जाएगी। सब आप नहीं छोड़ सकते हैं। उस सबको पकड़ने का यह जो इतना आग्रह है, वस्तु का इतना जो मूल्य है, उसके कारण आत्मा का आपके जीवन में कोई मूल्य नहीं हो सकता। और यह निकोडेमस पूछ रहा है
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