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ताओ उपनिषद भाग ४
प्रश्न को आपने अपने मन के सामने नहीं रखा है। और यह प्रश्न ऐसा है कि प्रतिपल पूछने जैसा है। एक-एक कदम जब आप उठाएं तब यह पूछने जैसा है हर बार कि मैं क्या कर रहा हूं? इससे मेरी निजता बढ़ेगी या मेरी संपत्ति बढ़ेगी? इससे मैं बदूंगा या मेरे आस-पास का सामान बढ़ेगा? इससे मेरे जीवन की ऊंचाई और गहराई बढ़ेगी या लोगों की नजरों में मेरी प्रतिष्ठा कम और ज्यादा होगी? मैं यह किसलिए कर रहा हूं? यह प्रश्न प्रतिपल पूछने जैसा है। यह कोई तार्किक प्रश्न नहीं है जिसका कोई उत्तर दिया जा सके। यह प्रश्न तो एक विधि है, एक मेथड है कि अगर आप इसको पूछते चले जाएं तो धीरे-धीरे आपके जीवन में वह निखार आ जाएगा जो कि उत्तर है।
और इसलिए लाओत्से छलांग लेता है। वह कहता है, 'इसलिए: जो सर्वाधिक प्रेम करता है वह सर्वाधिक खर्च करता है। जो बहुत संग्रह करता है वह बहुत खोता है। संतुष्ट आदमी को अप्रतिष्ठा नहीं मिलती। जो जानता है कि कहां रुकना है, उसे कोई खतरा नहीं है। वह दीर्घजीवी हो सकता है।'
पहली बात, 'जो सर्वाधिक प्रेम करता है वह सर्वाधिक खर्च करता है।'
कई कारणों से। पहला कारण, क्योंकि जो प्रेम करता है उसी के पास कुछ खर्च करने को है भी। जो प्रेम नहीं करता उसके पास कुछ खर्च करने को है भी नहीं, उसके पास देने को कुछ है भी नहीं। और अगर वह कभी कुछ देता भी है तो सिर्फ अपनी दीनता छिपाता है। इसे थोड़ा समझना जरूरी है। जिनके जीवन में प्रेम नहीं है, वे भी कुछ देते हैं। सच तो यह है कि कई बार देते हुए दिखाई पड़ते हैं। लेकिन तब वे कुछ दे नहीं रहे हैं; कुछ नहीं दे सकते हैं भीतर का, इसलिए बाहर का कुछ देकर छिपा रहे हैं।
इसे थोड़ा जीवन के रोजमर्रा के ढांचे में देखें। अगर पति पत्नी को प्रेम नहीं दे सकता तो हीरे-जवाहरात देता है, सोना-चांदी देता है, आभूषण देता है। इसलिए नहीं-इसलिए नहीं कि उसके भीतर कुछ है जो वह सोना-चांदी के बहाने देना चाह रहा है, बल्कि इसलिए कि भीतर देने को कुछ भी नहीं है। और अगर वह सोना-चांदी भी न दे तो भीतर की दीनता बड़ी प्रगाढ़ होकर प्रकट हो जाएगी। वह छिपा रहा है; भीतर की दरिद्रता को ढांक रहा है। अगर प्रेम देने को हो तो सोना-चांदी देने जैसा लगेगा भी नहीं, निर्मूल्य मालूम होगा, क्षुद्र मालूम होगा। हीरे-जवाहरात का क्या मूल्य है अगर प्रेम का एक टुकड़ा भी देने को पास हो? लेकिन वह नहीं है। और ऐसा कोई भी मानना नहीं चाहता कि मेरे पास देने को प्रेम नहीं है। तो हम कुछ और देकर...ये बहाने हैं।
__ मनसविद तो यहां तक कहते हैं कि जिस दिन पति अपने को गिल्टी या अपराधी अनुभव करता है उस दिन कोई भेंट लेकर घर आता है। किसी खूबसूरत स्त्री को रास्ते पर देख लिया, तो उस दिन वह फूल खरीद कर घर ले आता है। यह अपराध, मन में जो एक, अंतःकरण को जो एक चोट लगी है कि कुछ गलती की, कुछ भूल की।
तो जब पति घर फूल लेकर आए तो पत्नी को सजग हो जाना चाहिए। बिना अपराध किए वह ऐसा करेगा नहीं। कुछ छिपाना न हो तो देने की जरूरत नहीं है। मेरे अनुभव में सैकड़ों संपन्न परिवारों की महिलाएं हैं, और जिन का दुख यही है कि उनका पति उन्हें सब कुछ दे रहा है, फिर भी उन्हें कुछ मिल नहीं रहा। जो भी दिया जा सकता है दृश्य, उनके पति उन्हें सब कुछ दे रहे हैं।
लेकिन इस मामले में स्त्री और पुरुष के मन में भी बड़े बुनियादी फर्क हैं। स्त्री और पुरुष के तर्क भी बड़े भिन्न हैं। स्त्री को धोखा देना बहुत मुश्किल है। कितना ही उसे दिया जाए, अगर प्रेम को छिपाने के लिए दिया जा रहा है तो स्त्री उसे उघाड़ ही लेगी, वह उसे पहचान ही जाएगी। प्रेम पर उसकी पकड़ बड़ी गहरी और साफ है। कितना ही जगमगाता हीरा हो तो भी वह पहचान लेगी कि पीछे प्रेम नहीं है। इसलिए पुरुषों को मैं देखता हूं कि वे मुझसे कहते हैं कि हम सब पत्नी के लिए कर रहे हैं, फिर भी कोई तृप्ति नहीं है। और पत्नियां कहती हैं, पति सब दे रहे हैं, उसमें कोई कमी नहीं है, लेकिन जो मिलना था वह नहीं मिला है।
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