________________
सर्वाधिक मूल्यवान-स्वयं की बिजता
__ और संयोग की बात कि सिकंदर लौटते वक्त आधे में ही मर गया। घर तक वापस नहीं पहुंच पाया। लेकिन कोई भी आधे में मरेगा। योजनाएं इतनी बड़ी हैं कि कभी पूरी नहीं होती। और इसके पहले कि एक योजना पूरी हो, उससे भी बड़ी योजना हमारा मन तैयार कर लेता है। इसलिए कभी भी कोई पूरी योजना करके नहीं मरता। हरेक व्यक्ति आधी योजना में ही मरता है, और यह जानते हुए भी कि अगर सारी योजनाएं भी पूरी हो जाएं तो क्या होगा।
सिकंदर ने डायोजनीज को कहा था कि अगर मुझे दुबारा जन्म मिले तो मैं परमात्मा से कहूंगा कि मुझे डायोजनीज बना। डायोजनीज बिलकुल नंगा फकीर था, ठीक महावीर जैसा। कपड़े भी नहीं थे उसके पास। भिक्षा-पात्र भी उसके पास नहीं था। पहले वह एक भिक्षा-पात्र रखता था, पानी पीने के लिए, या कोई भीख दे देता। फिर उसने एक दिन कुत्तों को पानी पीते देखा नदी में। उसने उसी दिन भिक्षा-पात्र भी फेंक दिया। उसने कहा, जब कुत्ते इतने समर्थ हैं कि बिना एक पात्र के जी लेते हैं तो मैं आदमी होकर इतना कमजोर! फिर वह अपने हाथ से ही पानी पीने लगा। फिर वह करपात्री हो गया।
सिकंदर ने उससे कहा, अगर दुबारा मुझे मौका मिला तो मैं परमात्मा से कहूंगा मुझे डायोजनीज बना। डायोजनीज ने कहा, और अगर मुझे मौका मिले तो मैं कहूंगा, तू कुछ भी बना देना, यह मेरा कुत्ता-उसका कुत्ता उसके पास ही बैठा था-यह कुत्ता भी मुझे बना देना तो भी चलेगा, लेकिन भूल कर मुझे सिकंदर मत बनाना।
सिकंदर एक प्रतीक है हमारे भागते हुए महत्वाकांक्षा का, पागल दौड़ का। लाओत्से पूछता है, 'कौन बुराई बड़ी है, स्वयं की हानि या पदार्थों का स्वामित्व? इसलिए...।'
यह बड़े मजे की बात है; वह सिर्फ प्रश्न उठाता है, और जवाब आप पर छोड़ देता है। ये तीन प्रश्न उसने उठाए हैं; जवाब दिया नहीं। क्योंकि वह मानता है जवाब इतना साफ है कि उसे देने की कोई जरूरत नहीं। और जिसको जवाब साफ नहीं है उसको कितना ही दिया जाए उसे मिलेगा नहीं। इसलिए सिर्फ प्रश्न उठाता है।
मनुष्य किसे अधिक प्रेम करता है, सुयश को या निजता को? किसका मूल्य है अधिक, निजता का या भौतिक पदार्थों का? और कौन बुराई बड़ी है, स्वयं की हानि या पदार्थों का स्वामित्व? ये सब प्रश्नवाची चिह्न हैं।
और जवाब देता नहीं, क्योंकि जवाब साफ है। और जिसे साफ नहीं है उसे देने से भी कोई फायदा नहीं है। सीधे निष्कर्ष पर पहुंच जाता है।
और निष्कर्ष है : 'इसलिए जो सर्वाधिक प्रेम करता है वह सर्वाधिक खर्च करता है।'
बीच में खाली जगह मालूम पड़ती है। यह देअरफोर, यह इसलिए एकदम छलांग लगा कर आया हुआ मालूम पड़ता है। अगर कोई तर्कशास्त्री इसको पढ़ेगा तो वह कहेगा कि इसमें कुछ पंक्तियां बीच में से खो गईं। क्योंकि यह इसलिए का क्या मतलब? पहले साफ होना चाहिए, पहले पूरा तर्कबद्ध विधि होनी चाहिए; इसलिए तो अंतिम चरण है। पर लाओत्से प्रश्न उठाता है, उत्तर नहीं देता। उत्तर साफ है। और जो व्यक्ति भी शांति से इन प्रश्नों को सोचेगा उसे उत्तर साफ हो जाएगा।
इसमें एक बात और समझ लेनी जरूरी है। अगर कोई भी प्रश्न ठीक से सोचा जाए तो उस प्रश्न में ही उत्तर छिपा होता है। और जो लोग प्रश्न पूछने की कला जानते हैं उन्हें उत्तर खोजने कहीं भी नहीं जाना होता; वे उस प्रश्न की तलहटी में ही उत्तर को छिपा हुआ पाते हैं। ये प्रश्न आपसे पूछे हैं, कोई उत्तर देने को नहीं; ये प्रश्न पूछे हैं, ताकि आप इन प्रश्नों को ठीक से अपने भीतर उठा सकें, और आप इन प्रश्नों के विस्तार में, इन प्रश्नों की प्रगाढ़ता में अपने जीवन को नाप सकें। उत्तर आपके पास है।
आप भी भलीभांति जानते हैं कि सारे संसार को पा लेने का भी कोई मूल्य नहीं है-स्वयं को खोना पड़े अगर। लेकिन फिर भी अपने को खोए चले जाते हैं। क्योंकि यह प्रश्न आपने सचेतन रूप से उठाया नहीं है। इस
र आप भी भलीभांति जानते हैं कि बसरे संसार को पा लेने का भी कोई मल्य नहीं है उवयं को लोन, पल्ले
335