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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ बहुत बार हुआ तो हक्सले की पत्नी को समझ में आया कि उन क्षणों में जब वह इतना शून्य होता है, तब वह जो भी करता है, वह करना शून्य से ही निकलता है और उसकी कोई स्मृति नहीं बनती। जब आप इतने अक्रिया में होते हैं कि कहीं कोई विचार नहीं, कहीं कोई तरंग नहीं, तो अगर आप कुछ करेंगे भी तो वह ऐसे ही है जैसे अस्तित्व ने आपके द्वारा कुछ किया। वह आपका निजी कृत्य नहीं है; उसकी कोई स्मृति नहीं बनती। यह बड़े मजे की बात है कि आपके अहंकार पर चोट लगे तो स्मृति शीघ्रता से बनती है। इसलिए आप जान कर हैरान होंगे कि अगर आपके जीवन में कभी भी अहंकार को चोट लगने की कोई घटना हो तो उसकी बात आपको कभी नहीं भूलती। चाहे कितनी ही क्षुद्र बात हो। पचास साल पहले आप छोटे बच्चे रहे होंगे और रास्ते से गुजर रहे थे और कोई आपको देख कर हंस दिया था, वह आपको अभी भी याद है। सब भूल गया और। हजारों घटनाएं घटीं और भूल गईं। लेकिन शिक्षक ने आपको स्कूल में खड़ा कर दिया था और सब लड़कों के सामने कहा था कि देखो, बिलकुल गधा है! वह अभी तक याद है। अभी भी आप आंख बंद करें तो आप अपने को कक्षा में खड़ा हुआ, सारे लड़कों की नजर आपके ऊपर। आपके अहंकार को जो चोट लगी थी, वह गहरी स्मृति है। अगर अहंकार बिलकुल शांत हो तो घटना घट सकती है और स्मृति नहीं बने, जैसे पानी पर खींची गई । लकीर खींचते ही मिट जाए। जो व्यक्ति इस अक्रियता को साध लेते हैं वे करते हुए भी कर्म से नहीं बंधते, क्योंकि कर्म की कोई रेखा नहीं बनती। इसलिए कृष्ण ने बहुत जोर गीता में दिया है अकर्म पर। करते हुए भी कर्ता से मुक्ति, तो अकर्म हो जाता है; न करते हुए भी कृत्य से गुजर जाना, तो कोई स्मृति नहीं बनती। हक्सले अनूठे प्रयोग करने वाले लोगों में एक था। और कठिन कुछ भी नहीं है; आप भी कर ले सकते हैं। एक घंटा चौबीस घंटे में से निकाल लें और उस अतुलनीय घटना में डूब जाएं; कुछ न करें। मंत्र नहीं, स्मरण नहीं, प्रभु का नाम नहीं, जाप नहीं, कुछ भी नहीं। मन कुछ न कुछ करता रहेगा, आप चुपचाप बैठे उसे भी देखते रहें कि वह कुछ कर रहा है, पुरानी आदत है; खटर-पटर करेगा, करने दें। निरपेक्ष, उदास, उदासीन, तटस्थ, उपेक्षा से देखते रहें करने को। थोड़ी देर में, जब आप उसमें कोई रस न लेंगे, तो अपने आप शांत होने लगेगा, कुछ दिनों में शांत हो जाएगा। और एक बार भी आपको झलक मिल जाएगी कि शून्य होने में, अक्रिय होने में क्या घटता है, फिर इस जीवन में कोई आसक्ति बांध नहीं सकती, कोई मोह ग्रस्त नहीं कर सकता, कोई लोभ आकर्षित नहीं कर सकता, कोई वासना खींच नहीं सकती। अक्रिया को उपलब्ध हुआ व्यक्ति उस महाशक्ति को उपलब्ध हो जाता है जिस पर कोई भी प्रभाव अंकित नहीं होते हैं। आज इतना ही। 324
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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