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________________ कोमलतम सदा जीतता हूँ कठिनतम 323 • अब यह जरा ज्यादा हो गया; शिष्यों के लिए और भारी हो गया। क्योंकि वे चुप बैठे हैं इतनी देर से, और कहते हैं, इतनी देर से मैं क्या कर रहा हूं, मैं बोल रहा हूं। और अगर तुम नहीं सुनते हो तो कसूर किसका है ? तब महाकाश्यप, जो दूर बैठा था और कभी नहीं बोला था, पहली दफा उसका पता चला संघ को, क्योंकि वह खिलखिला कर हंसने लगा। बुद्ध ने महाकाश्यप को कहा कि महाकाश्यप, यहां आ और यह फूल तू ले। जो शब्द से दिया जा सकता था, मैंने सबको दे दिया; जो सिर्फ मौन से दिया जा सकता है वह मैं तुझे देता हूं। फिर बड़ी खोज चलती रही इन सदियों में। क्योंकि महाकाश्यप के ऊपर एक भार गया कि अपने मरने के पहले कम से कम वह एक व्यक्ति को खोज ले जिसे वह दे सके जो बुद्ध ने उसे दिया है; अन्यथा संपत्ति, वह धरोहर उसके साथ खो जाएगी। ऐसा छह पीढ़ियों तक महाकाश्यप के बाद वह प्रक्रिया चलती रही। छठवां ग्रहण करने वाला व्यक्ति था बोधिधर्म । और वह खोज - खोज कर थक गया, फिर चीन गया, और सिर्फ इसीलिए चीन गया कि भारत में उसे कोई आदमी नहीं मिला जो मौन में लेने को तैयार हो । चीन में नौ साल उसने खोज की, तब एक आदमी मिल सका जिसे वह वह दे सके जो बुद्ध ने महाकाश्यप को दिया था चुप्पी में । वह प्रक्रिया अब भी चलती चली जाती है। उस प्रक्रिया को झेन फकीर कहते हैं: शब्द के बिना, शास्त्र के बिना हस्तांतरण | कभी मुश्किल से घटती है। क्योंकि घटने के लिए दो शिखरों का मिलना जरूरी है। एक जो पा गया हो, उलीचने को तैयार हो; और एक जो लेने को तैयार हो, और चुप होने को तैयार हो । एक भरा हुआ पात्र और एक खाली पात्र । और खाली पात्र भी, बिलकुल खाली । लेने के लिए भी तीव्रता और त्वरा न हो, बस खाली हो, तो यह घटना घट जाती है। लाओत्से कहता है, 'शब्दों के बिना उपदेश करना और अक्रियता का जो लाभ है, वे ब्रह्मांड में अतुलनीय हैं। दि टीचिंग विदाउट वर्ड्स एंड दि बेनीफिट ऑफ टेकिंग नो एक्शन आर विदाउट कम्पेयर इन दि यूनिवर्स ।' ये दो चीजें अतुलनीय हैं: एक शब्द के बिना संवाद और एक अक्रियता का लाभ । अक्रियता का लाभ परम लाभ है। पर जो भी मैं कहूं, उसका क्या मूल्य हो सकता है? सुना लाओत्से को; मैंने कहा, वह आपने सुना । उसका मूल्य हो सकता है? क्योंकि अक्रियता भी एक शब्द रह जाएगी और आप भी परिचित हो जाएंगे इस सिद्धांत से । यह किसी भांति अनुभव बनना चाहिए, रक्त-हड्डी-मांस-मज्जा बनना चाहिए, यह आप में छिद जाना चाहिए। चौबीस घंटे में एक घंटा निकाल लें - सब समझदारों के विपरीत, जो कहते हैं, समय का उपयोग करो, कुछ करो, खाली मत बैठे रहो — एक घंटा बिलकुल डूब जाएं निष्क्रियता में । पश्चिम में, अमरीका में बहुत बड़ा विचारक था, अभी -अभी कुछ दिन पहले मृत्यु हुई, अल्डुअस हक्सले । अडुअस हक्सले इसका प्रयोग कर रहा था वर्षों से, अक्रियता का। उसकी पत्नी लारा हक्सले ने अपने संस्मरण लिखे हैं। उसमें उसने लिखा है कि अभूतपूर्व घटना घटती थी, क्योंकि रोज एक घंटा तो नियमित और जब भी मौका मिल जाए, दोबारा, तीन बार, तो हक्सले अक्रिय हो जाता था। वह अपनी कुर्सी में बैठ जाता; अपनी पालथी में दोनों हाथ रख कर उसका सिर झुक जाता, उसकी दाढ़ी छाती से लग जाती, और वह शून्य हो जाता । लारा हक्सले ने लिखा है कि जब भी वह शून्य हो जाता था तो घर का पूरा वातावरण बदल जाता था। एक बिलकुल अपरिचित सुगंध, एक अपरिचित मौन और शांति पूरे घर को घेर लेती थी। कभी ऐसा भी होता कि उसकी पत्नी बाहर गई है और उसे पता नहीं है। घर में हक्सले अकेला है, तो वह अपनी कुर्सी पर बैठ जाएगा, शून्य होकर । लाओत्से के भक्तों में एक था। पत्नी को कुछ पता नहीं है। तो वह फोन कर दे, तो हक्सले उठेगा, फोन लेगा, जो भी सूचना दी गई है वह सूचना कागज पर लिख देगा, फिर अपनी जगह जाकर बैठ जाएगा। पत्नी जब आकर पूछेगी कि मैंने फोन किया था, आपको कोई अड़चन तो नहीं हुई। हक्सले कहेगा, कैसा फोन? और तब देखा जाएगा तो टेबल पर उसके हाथ का लिखा हुआ कागज भी रखा हुआ है। ऐसा
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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