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________________ कठिनतम पर कोमलतम सदा जीतता है स्वाभाविक नहीं हो रहा है। क्योंकि मैं देखता हूं कि आप, दो घंटे मैं बोल रहा हूं, तो सुनते रहेंगे, खांसी नहीं आएगी। और अगर ध्यान करने के लिए मैं आपसे कहूं कि पांच मिनट शांत बैठ जाएं। आप अचानक पाएंगे, खांसी सता रही है। दो घंटे आप बैठे थे। लेकिन तब आप कुछ कर रहे थे, सुन रहे थे। तब आप सिर्फ बैठे नहीं थे। कोई काम बंधा हुआ था। शरीर संलग्न था। मन जुटा हुआ था, व्यस्त था, आकुपाइड था; तब कोई अड़चन न थी। अगर आपको कहा कि चुपचाप बैठ जाओ। सब अड़चनें शुरू हो जाएंगी, पच्चीस तरह की व्याधियां अचानक उठती हुई मालूम पड़ने लगेंगी। बीस साल झेन साधक बैठता है, सिर्फ बैठता है। कठिनतम और सरलतम दोनों है उसकी साधना। क्योंकि गुरु इसके सिवाय कुछ कहता नहीं कि तुम बैठो। वह कहता है, सिर्फ बैठे रहो। आदतें पुरानी छोड़ दो करने की; चार घंटे, छह घंटे, आठ घंटे, दस घंटे, जब भी मौका मिले, बस बैठे रहो। और एक ही बात का ध्यान रखो कि वह जो पुराने मन की जकड़ है कि कुछ करो, उसको शिथिल करते जाओ। एक दिन ऐसा आता है कि मन की जकड़ चली जाती है। आप कुछ भी नहीं कर रहे होते, बस होते हैं। उस होने में ही समाधि फलित होती है। वही बुद्ध कर रहे हैं। और जिस दिन आप भी कर लेंगे उस दिन आप में और बुद्ध में कोई रत्ती भर का फर्क नहीं रह जाएगा। लाओत्से कहता है, 'मैं जानता हूं अक्रियता का लाभ क्या है।' लाभ है आत्म-उपलब्धि, लाभ है मुक्ति, लाभ है आत्मज्ञान। इस दिशा में थोड़ा सा बढ़ना शुरू करें। एक घंटा निकाल लें, ध्यान भी न करें उस घंटे में, उस घंटे में सिर्फ हों, बस बैठ जाएं, जैसे संसार खो गया। टेलीफोन की घंटी बजती रहे, सुनते रहें, जैसे किसी और के घर में बज रही है। कोई दरवाजे पर दस्तक दे, सुनते रहें; आप हैं ही नहीं, उठ कर कौन दरवाजा खोले! पत्नी बोले कि उठो, कुछ करो। बस देखते रहें, जैसे किसी और से कह रही है। एक घंटा आप अक्रिय हो जाएं। और जो भी इस जगत में पाने योग्य है, वह आपका हो जाएगा। बड़ी अड़चनें आएंगी। और मन बड़े बहाने खोजेगा। मन समझाएगा कि क्या कर रहे हो! एक घंटे में जा सकते थे दफ्तर, कि दुकान, कि हजार का सौदा हो सकता था, कि लाख की कमाई हो सकती थी। इतनी देर में कम से कम अखबार ही पढ़ लेते, कि रेडियो सुन लेते, कि किसी मित्र से गपशप कर लेते। घंटे भर में तो न मालूम क्या-क्या करने का हो सकता था। क्यों खो रहे हो समय? जिंदगी छोटी है। समय को ऐसे व्यर्थ मत गंवाओ। और इन पागलों ने बड़ी बुद्धिमानी की बातें कह रखी हैं। वे कहते हैं, टाइम इज़ मनी, समय धन है, बचाओ। और समय को जितनी जल्दी जितने ज्यादा धन में बदल लो, उतनी ही तुम्हारी सफलता है। जितना समय तुम्हें मिला है सबको तुम रुपए में बदल कर बैंक में जमा कर दो। टाइम इज़ मनी। बस मरते वक्त परमात्मा तुमसे यही पूछेगा आखिरी समय में कि तुम अपने समय को धन बना पाए कि नहीं? जब एक घंटा आप खाली बैठेंगे तो बड़ी बेचैनी मालम होगी, बड़ी अड़चनें आएंगी। हजार बहाने शरीर खोजेगा, मन खोजेगा-कुछ करो। पर आप सब सुनते रहना और कहना एक घंटा कुछ भी नहीं करना है। थोड़े ही दिन में आप पाओगे कि एक नये तरह की शांति आपके रोएं-रोएं में उतरने लगी; कोई एक नया द्वार खुलने लगा; एक नया आकाश, जहां से बादल हट गए हैं। और जैसे-जैसे यह शांति घनी होने लगेगी वैसे-वैसे समझ में आएगा कि अक्रियता का लाभ क्या है। और तब समझ में आएगा कुछ है जो करके पाया जा सकता है, और कुछ है जो केवल न करके पाया जा सकता है। जो करके पाया जा सकता है वह संसार का हिस्सा होगा, और आपसे छीन लिया जाएगा। जो न करके पाया जा सकता है वह संसार का हिस्सा नहीं है, और उसको कोई भी आपसे छीन नहीं सकता। जो भी करके मिलेगा, मौत उसे नष्ट कर देगी। जो न करके मिलेगा, मौत का अतिक्रमण कर जाता है। 321
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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