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________________ कठिनतम पर कोमलतम सदा जीतता है चंगीज उसी भ्रांति में हैं-शक्ति की भ्रांति! लाओत्से, बुद्ध और जीसस उस भ्रांति से पार हैं। उन्होंने उस गहन सूत्र को पकड़ लिया जो शांति में शक्ति को देखता है, शक्ति में नहीं। उन्होंने निर्बल होने की कला सीख ली। उन्होंने मजबूत वृक्ष की तरह तूफान से लड़ना नहीं चाहा; वे कोमल घास के पौधे की भांति झुक गए। और इस झुकने में उन्होंने तूफान को हरा दिया। - ये सूत्र उलटे मालूम पड़ेंगे, लेकिन इसे सूत्रबद्ध कर लेना जरूरी है। जो लड़ेगा वह हारेगा; और जो हारने को राजी है उसे हराने का कोई भी उपाय नहीं। जो अकड़ेगा वह टूटेगा; जो सहजता से झुक जाता है उसे कोई भी तोड़ नहीं सकता। लेकिन हमारी सारी शिक्षा, समाज, संस्कृति अकड़ना सिखाती है। परिणाम है कि हम सब टूटे हुए हैं; हम सब खंडहरों की भांति हैं। हम सिर्फ अस्थिपंजर हैं-हारे हुए, थके हुए, टूटे हुए। हर आदमी की जिंदगी एक उदास कहानी है। और हर आदमी से अंत में पूछे तो वह कहेगा, सिर्फ थक गया हूं, टूट गया हूं, कुछ पाया नहीं। मगर कोई नहीं पूछता कि इसमें भ्रांति कहां हो गई? इसमें भ्रांति वहीं हो गई जहां हमने जीतना सिखाया; लड़ना सिखाया; शक्ति की धारणा दे दी। हम शक्ति को पूजते हैं। हमने शक्ति की प्रतिमाएं बना रखी हैं; शक्ति के भक्त हैं। और सब तरफ हमारी पूजा शक्ति की है। जहां भी शक्ति हो वहां हमारा सिर झुकता है। क्योंकि वही हमारी आकांक्षा है। और शक्ति की इतनी पूजा के बाद भी हम पहुंचते कहां हैं? कोई विजय नहीं। लाओत्से सूत्र दे रहा है विजय का। ___ 'संसार का कोमलतम तत्व कठिनतम के भीतर से गुजर जाता है। और जो रूपरहित है वह उसमें प्रवेश कर जाता है जो दरारहीन है। इसके जरिए मैं जानता हूं कि अक्रियता का लाभ क्या है। शब्दों के बिना उपदेश और अक्रियता का जो लाभ है वह इस पूरे ब्रह्मांड में अतुलनीय है।' एक तो उपदेश है जो शब्द से दिया जा सके। लेकिन शब्द से जो भी दिया जा सकता है वह बहुत मूल्यवान नहीं है। उसका ज्यादा से ज्यादा मूल्य इतना ही हो सकता है कि वह आपको निशब्द में ले जाने के लिए इंगित करे, इशारा करे चुप हो जाने के लिए। यह बड़ी उलटी बात है। शब्द का इतना ही मूल्य है कि आपको निशब्द में ले जाए, और बोलने की इतनी ही सार्थकता है कि आपको मौन होने के लिए राजी कर ले। इससे ज्यादा शब्द का कोई मूल्य नहीं है। लेकिन शब्द ही अगर आपको पकड़ जाए और निशब्द में न ले जाए, और वाणी से ही आप सम्मोहित हो जाएं, शास्त्र ही आपके सिर पर बैठ जाए, निर्विचार और मौन में जाने का रास्ता उससे न खुले, तो शब्द आपका शत्रु सिद्ध हुआ। इस जगत में बहुत कम लोग हैं जो शब्द को मित्र बना पाते हैं। अधिक लोगों के लिए शब्द शत्रु सिद्ध होता है, और उनके हाथ में राख ही रहती है। मैंने सुना है कि अपनी वृद्धावस्था में मुल्ला नसरुद्दीन को गांव का जे पी, जस्टिस ऑफ पीस बना दिया गया। वह न्यायाधीश हो गया। और एक दिन उसकी अदालत में एक मामला आया। एक लकड़हारे ने-जो रोज जंगल से लकड़ियां काटता था और गांव में बेचता था-आकर नसरुद्दीन को कहा कि मैं बड़ी मुसीबत में पड़ गया हूं। उसके साथ एक और आदमी भी था जो बड़ा शक्तिशाली मालूम पड़ता था और खूखार भी मालूम पड़ता था। उस लकड़हारे ने कहा कि मैं कल दिन भर जंगल में लकड़ियां काटा हूं। और यह जो आदमी है, यह सिर्फ एक चट्टान पर, मैं जहां लकड़ियां काट रहा था, वहां बैठा रहा। और जब भी मैं कुल्हाड़ी मारता था वृक्ष में तो यह जोर से कहता था-हूं! जैसा कि मारने वाले को कहना चाहिए। और अब यह कहता है कि आधे दाम मेरे हैं, क्योंकि आधा काम मैंने किया है। लकड़हारे ने कहा कि यह बात सच है कि यह रहा पूरे दिन वहां और जितनी बार भी मैंने कुल्हाड़ी वृक्ष पर मारी इसने जोर से हूं कहा।। नसरुद्दीन ने कहा कि रुपए कहां हैं जो लकड़ी बेचने से मिले? उस लकड़हारे ने रुपए नसरुद्दीन के हाथ में दे 311
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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