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________________ ताओ सब से परे है इसे थोड़ा प्रयोग करके देखें, कि अगर जीवन में किसी चीज की कमी मालूम पड़ती हो, लगता हो कि दया की कमी है, करुणा की कमी है, तो थोड़ा समझने की फिक्र करें। उसका मतलब होगा, आपका क्रोध अप्रामाणिक है, क्रोध बनावटी है। वह वास्तविक नहीं है। जहां करना है वहां आप नहीं करते, और जहां नहीं करना है वहां आप करते हैं। ऐसे झूठे क्रोध के साथ जो जी रहा है, वह लाख उपाय करे तो भी अहिंसक नहीं हो सकता। उसकी अहिंसा भी इतनी ही थोथी और उथली होगी। जैसे घड़ी का पेंडुलम जितनी दूर तक बाएं जाएगा उतनी ही दूर तक दाएं जा सकता है। आप सोचते हों कि बाएं तो बिलकुल न जाए और दाएं खूब दूर तक जाए, तो आप गलती में हैं। क्योंकि दाएं जाने के लिए बाएं जाकर ही शक्ति इकट्ठी की जाती है। इसलिए पश्चिम में मनोवैज्ञानिक एक बहुत नया शिक्षण दे रहे हैं। वह पूरब को बहुत हैरान करने वाला है; पश्चिम को भी हैरान करने वाला है। और वह यह है कि आपके जो भी मनोभाव हैं उनमें आप ईमानदार हों। अगर पति-पत्नी के बीच कोई लगाव नहीं रह गया है और सब चीजें सूखी हो गई हैं, रसहीन हो गई हैं, तो उन्हें कितना ही समझाया जाए कि वे प्रेमपूर्ण हो जाएं, व्यर्थ होगा। उन्हें समझाना होगा कि वे प्रामाणिक हो जाएं। अभी कल ही एक युवक और युवती मेरे पास आए। दोनों प्रेम में हैं और विवाह करना चाहते हैं। युवती ने मुझे कहा कि हम विवाह तो करना चाहते हैं, लेकिन इधर कुछ दिनों से आपस में काफी क्रोध पैदा हो जाता है, छोटी-छोटी चीज में चिड़चिड़ाहट, नाराजगी और एक-दूसरे पर टूट पड़ने की वृत्ति हो गई है। तो मैंने उन्हें पूछा कि सिर्फ टूट पड़ने की वृत्ति या तुम टूट भी पड़ते हो? उन्होंने कहा कि नहीं, आप भी कैसी बात करते हैं! हम ऐसा तो नहीं कर सकते कि टूट पड़ें। शारीरिक रूप से हमने कोई एक-दूसरे पर हमला नहीं किया है। - तो मैंने उनको कहा कि जब तुम प्रेम करोगे तब वह प्रेम भी फिर शारीरिक रूप से नहीं हो सकता। अगर तुम शारीरिक रूप से प्रेम की गहराई में उतरना चाहते हो तो क्रोध के क्षण में भी फिर मन से नीचे शरीर तक आओ। और डर क्या है? सिर्फ क्रोध को सोचते क्यों हो? और प्रेम को इतना कमजोर क्यों मानते हो कि झगड़ पड़ोगे, एक-दूसरे को चोट पहुंचा दोगे, तो प्रेम टूट जाएगा। इतना कमजोर प्रेम चलेगा भी कैसे? तो मैंने कहा, तुम एक प्रयोग करो। अब जब तुम्हें दुबारा क्रोध आए तो तुम सिर्फ सोचना ही मत और दबाना मत, तुम उसे निकाल देना। और फिर लौट कर मुझे खबर देना। सुबह ही वे आए थे, सांझ उन्होंने मुझे खबर भेजी कि आश्चर्यजनक है कि क्रोध के बाद हम इतने हलके हो गए हैं! और पहली दफा इन महीनों में एक-दूसरे के प्रति प्रेम का भाव उदय हुआ है, और हम इतने करीब हैं जितने हम पहले कभी नहीं थे। विपरीत में एक संबंध है। और मनसविद कहते हैं कि प्रेमी लड़ कर दूर हो जाते हैं, ताकि फिर पास आने का आनंद ले सकें। अगर दूर होने का डर है तो पास होने का आनंद भी नष्ट हो जाएगा। जब दो प्रेमी लड़ कर दूर हो जाते हैं तो फिर नए-ताजे हो गए, जैसे वे पहले दिन जब मिले होंगे दूर थे, उस दिन की स्थिति में पहुंच गए। फिर से पास आना, फिर एक नया हनीमून है; फिर एक नई शुरुआत है; फिर वे ताजे हैं। - अगर जीवन के द्वंद्व को हम ठीक से समझें तो इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। प्रेम किया है तो क्रोध के लिए तैयार होना चाहिए। और अगर यह खयाल में हो कि इस क्रोध के माध्यम से हम प्रेम की क्षमता को पुनः पा रहे हैं तो यह क्रोध भी दुखद नहीं रह जाएगा, यह भी खेल हो जाएगा। और जो व्यक्ति प्रेम भी कर सकता है और क्रोध भी कर सकता है और दोनों में प्रामाणिक है, बहुत शीघ्र ही उसे क्रोध और प्रेम के बीच में जो लयबद्धता है उसकी प्रतीति होनी शुरू हो जाएगी। और तब प्रेम भी गौण हो जाएगा, क्रोध भी गौण हो जाएगा; लयबद्धता ही प्रमुख हो जाएगी। ये दोनों किनारे गौण हो जाएंगे, बीच की सरिता ही...। 295
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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