________________
ताओ उपनिषद भाग ४
बद्ध के पास स्वभावतः जो जाएंगे, वे अज्ञानी हैं। लेकिन वे धन्यभागी अज्ञानी हैं, क्योंकि उन्हें जाने का खयाल आ गया। इतना भी ज्ञान कुछ कम नहीं। जो नहीं जाते, वे महामढ़ हैं। वे अपने में बंद हैं, उनके खुलने का उपाय नहीं है। कहीं से चोट जरूरी है। नहीं तो आप अपनी खोल में बंद रह सकते हैं जन्मों-जन्मों तक। कहीं से चिनगारी पड़नी जरूरी है। और बड़ी जरूरत इस बात की है कि कोई आनंदित व्यक्ति आपके जीवन-अनुभव का हिस्सा हो जाए। क्योंकि आपको आनंद की कोई खबर नहीं। जिसकी खबर ही नहीं है उसकी खोज भी कैसे हो? और जिसका कोई स्वाद नहीं, वह होता भी है, इसका भरोसा भी कैसे हो?
बुद्ध आपको आनंद नहीं दे सकते और न ज्ञान दे सकते हैं, लेकिन बुद्ध की मौजूदगी आपको स्वाद दे सकती है। आपको इतना तो लग सकता है कि कुछ इस आदमी को हुआ है जो अगर मुझे भी हो जाए तो जीवन सार्थक है। बुद्ध की छाया में आपको जो शांति की झलक मिले वह आपकी अपनी शांति की खोज बन सकती है। तो बुद्ध प्यास दे सकते हैं। परमात्मा तो दुनिया में कोई किसी को नहीं दे सकता; लेकिन परमात्मा की प्यास किसी के सान्निध्य में जग सकती है। वह जग जाए और अज्ञानी अपने अज्ञान के प्रति सचेत हो तो धीरे-धीरे अज्ञान विसर्जित हो जाता है।
लेकिन अगर अज्ञानी अपने अज्ञान को ही बुद्ध से भरने लगे तो कठिनाई हो जाती है। आप भर सकते हैं। बुद्ध . निरुपाय हैं, कुछ भी नहीं कर सकते। आप अपने अज्ञान को भर सकते हैं उनसे भी। उनसे जो बातें सुनें, वे आपकी स्मृति में चली जाएं, आपका जीवन-आचरण न बनें; तो खतरा है। तो आप पंडित हो जाएंगे, ज्ञानी नहीं हो पाएंगे। और अज्ञानी जब पंडित हो जाता है तो भयंकर रोग से ग्रस्त हो जाता है।
चाँथा प्रश्न : नागसेन ने कहा है, नागसेन नहीं हैं। विश्लेषण से यह सत्य निरुपित हुआ। क्या संश्लेषण के द्वारा भी इसी तथ्य का निरूपण छोना संभव है? स्पष्ट करें।
कथा मैंने कही कि नागसेन आया सम्राट के पास और उसने कहा कि रथ का एक-एक अंग अलग कर लो। अंग अलग होते चले गए, रथ खोता चला गया। जब सारे अंग अलग हो गए तो पीछे शून्य बचा; वहां कोई रथ न था। और नागसेन ने कहा, अब रथ कहां है? ऐसा ही मैं भी हूं। मेरे एक-एक अंग अलग कर लो, मैं खो जाऊंगा। यह विश्लेषण की प्रक्रिया है, एनालिसिस की। एक-एक चीज को अलग कर लिया।
प्रश्न कीमती है कि चीजें अलग कर लेने से तो सिद्ध हुआ कि नागसेन नहीं है, लेकिन क्या संश्लेषण से, सिंथीसिस से भी यही सत्य सिद्ध होगा?
यही सिद्ध होगा। क्योंकि जो सत्य है वह विश्लेषण और संश्लेषण पर निर्भर नहीं होता। सत्य सिद्ध नहीं होता, सिर्फ आविष्कृत होता है। इस विश्लेषण की प्रक्रिया से सिद्ध हुआ कि नागसेन नहीं है; एक-एक हिस्से को अलग करते गए तो पता चला कि नागसेन खो गया।
यह बौद्धों की प्रक्रिया है; शून्य की प्रक्रिया है। इसलिए बुद्ध कहते हैं, कोई आत्मा नहीं है। और इस आत्मा के न होने को जान लेना ही सत्य की उपलब्धि है, निर्वाण है। वेदांत की प्रक्रिया संश्लेषण की प्रक्रिया है। वेदांत कहता है, जोड़ते जाओ, और इतना जोड़ो कि जोड़ के बाहर कुछ भी न बचे।
नागसेन है, पास में वृक्ष है, पास में सम्राट खड़ा है, आकाश है, बादल हैं; सब को जोड़ते चले जाओ। जब सब जुड़ जाएगा तब भी नागसेन बचेगा नहीं, क्योंकि तब परमात्मा ही बचेगा, ब्रह्म बचेगा। अगर हम सब जोड़ते चले जाएं तो एक बचेगा। नागसेन के बचने के लिए तो अनेक की जरूरत है; कम से कम दो की जरूरत है। कम से कम दो तो चाहिए कि सम्राट अलग हो और नागसेन अलग हो। इतना फासला तो चाहिए। अगर हम
278