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ताओ उपनिषद भाग ४
सत्य या परमात्मा या ताओ-या जो भी नाम हम देना चाहें-वह हमारा अप्रकट मूल स्रोत है। उस मूल स्रोत में ही सारी शक्ति का उदगम है। और जब तक हम ऊपर-ऊपर शक्ति को खोजते हैं तब तक हम निर्बल बने रहते हैं। और जब हम उतरते हैं गहरे वृक्ष की जड़ों में तो महा शक्ति मिल जाती है, जिसका कोई अंत नहीं, जो अनंत है।
जो दिखाई पड़ता है, उससे उस तरफ चलें जो दिखाई नहीं पड़ता। जो सुनाई पड़ता है, उससे उस तरफ चलें जो सुनाई नहीं पड़ता। जिसका रूप है, उससे उस तरफ चलें जिसका कोई रूप नहीं है। जिसका नाम है, उससे उस तरफ चलें जो अनाम है। तो आप परमात्मा के मंदिर में प्रविष्ट हो जाएंगे। वह मंदिर बहुत दूर नहीं, यहीं छिपा है। लेकिन छिपा है। इसलिए जो उसे प्रकट मंदिरों में खोजता है वह व्यर्थ ही भटकता है। जो उसे अप्रकट के मंदिर में खोजने लगता है उसे राह मिल गई और उसकी मंजिल दूर नहीं है।
पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें, और फिर जाएं।
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