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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ लाओत्से कहता है कि अगर कोई व्यक्ति अपने निसर्ग के साथ जी रहा हो, जैसा परमात्मा ने, जैसा ताओ ने उसे चाहा है, जैसी उसकी नियति है उसके अनुकूल बह रहा हो, तो उसके पास एक स्वामित्व होता है, एक नेतृत्व, एक गुरुत्व, जो आरोपित नहीं है, जो चेष्टित नहीं है, जिसको उसने किसी के ऊपर डाला नहीं है, जो उसकी सहज मालकियत है। और तब उसे एक स्वामित्व मिल जाता है, जो संसार उसे स्वेच्छा से देता है। ___'जब स्वर्ग और पृथ्वी आलिंगन में होते हैं...।' स्वर्ग और पृथ्वी-लाओत्से के लिए प्रतीक है। आपके भीतर भी दोनों हैं; आपके भीतर स्वर्ग और पृथ्वी दोनों हैं। और जब आप अपने स्वभाव के अनुकूल चल रहे होते हैं, तब स्वर्ग और पृथ्वी आलिंगन में होते हैं, आपकी परिधि और आपका केंद्र आलिंगन में होते हैं। और जब आप स्वभाव को छोड़ कर चल रहे होते हैं, जब आप कुछ और होने की कोशिश कर रहे होते हैं जो कि आपकी नियति नहीं है, तब आपकी परिधि और आपके केंद्र का संबंध टूट जाता है। तब आपका व्यक्तित्व और आपकी आत्मा दो हो जाती हैं। तब व्यक्तित्व तो आप जबरदस्ती थोपते रहते हैं अपने ऊपर, और आत्मा और आपके बीच का फासला बढ़ता चला जाता है। लाओत्से की भाषा में, तब पृथ्वी और स्वर्ग का संबंध टूट गया, उनका आलिंगन समाप्त हो गया। और इस आलिंगन के टूटने से ही पीड़ा और संताप और दुख पैदा होता है। लाओत्से को बहुत प्रेम करने वाले एक व्यक्ति ने अभी-अभी एक किताब लिखी है। किताब बड़ी अनूठी और चौंकाने वाली है। किताब है कैंसर के ऊपर। और उस व्यक्ति का खयाल ठीक मालूम पड़ता है। कैंसर नई बीमारी है; और अब तक उसका कोई इलाज नहीं। इस व्यक्ति ने लिखा है कि कैंसर इस बात की खबर है कि व्यक्ति के भीतर के स्वर्ग और पृथ्वी का संबंध बिलकुल टूट गया। और बीमारी इसीलिए पैदा हो गई है, जिसका कोई इलाज नहीं है; क्योंकि बीमारी शरीर की होती तो इलाज हो जाता। बीमारी सिर्फ शरीर की नहीं है कैंसर; अगर शरीर की ही होती तो इलाज हो जाता। बीमारी शरीर और आत्मा के बीच के फासले के कारण पैदा हुई है; मात्र शरीर की नहीं है। शायद शरीर और आत्मा, दोनों के बीच जो फासला है, उस फासले के कारण पैदा हो रही है। जितना फासला बढ़ता जाएगा . उतना कैंसर बढ़ता जाएगा। एक लिहाज से शुभ लक्षण है, अगर हम चेत सकें तो। अगर हम चेत सकें तो शभ लक्षण है; अगर न चेत सकें तो बहुत खतरनाक है। कैंसर बीमारी नहीं है, यह बात समझने जैसी है। कैंसर एक आंतरिक दुर्घटना है जिसमें हमारे भीतर के सारे सेतु टूट गए हैं। परिधि अलग हो गई है। केंद्र अलग हो गया है। और हम परिधि के साथ पकड़े हुए हैं अपने को, और हमारा अपने ही अंतस्तल से सारा संबंध क्षीण होता जा रहा है। इस तनाव से जो पैदा हो रही है बीमारी वह कैंसर है। कैंसर बढ़ता जाएगा। अगर स्वभाव के अनुकूल जीने की क्षमता नहीं बढ़ती तो कैंसर बढ़ता जाएगा। कैंसर सामान्य बीमारी हो जाएगी। और उसका इलाज खोजना कठिन है। शायद इलाज खोज भी लिया जाए तो कैंसर से बड़ी बीमारियां पैदा हो जाएंगी। क्योंकि वह जो भीतर की विच्छेद-स्थिति है, भीतर का जो फासला है, वह अगर कैंसर से प्रकट न हुआ, कैंसर को किसी तरह रोका जा सका, तो वह मवाद किसी और बड़ी बीमारी से बहने लगेगी। यह पिछले दो सौ वर्ष का इतिहास है कि एक बीमारी सबसे ऊपर होती है। हम किसी तरह उसका इलाज कर लेते हैं, तो उससे बड़ी बीमारी पैदा हो जाती है। हम उस बीमारी का उपाय कर लेते हैं, तो उससे बड़ी बीमारी पैदा हो जाती है। लेकिन एक मजे की बात है कि बड़ी बीमारी तत्काल पैदा हो जाती है, जैसे ही हम पुरानी बड़ी बीमारी का इलाज खोजते हैं। शायद कोई बहुत आंतरिक वेदना प्रकट होना चाह रही है और हम उसके दरवाजे रोकते जाते हैं; वह नए दरवाजे खोज लेती है। 16
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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