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________________ ताओ उपविषद भाग ४ समझेगा, बुद्ध है। आपको पता है कि बुद्ध से ही बुद्ध शब्द बना है! तीसरी कोटि के आदमियों ने कहा होगा, कैसा बुद्ध, सब छोड़ कर चला आया। सुंदर पत्नी थी, महल था, राज्य था। इसके लिए तो आदमी कामना करता है। अभी भी, अभी भी घर में कोई हाथ-पांव बांध कर पद्मासन में बैठ जाए तो आप कहेंगे, छोड़ो, यह क्या बुद्धूपन कर रहे हो। यह बुद्ध जैसे बैठने से कुछ न होगा, उठो, काम-धाम में लगो, कुछ कमाओ। तीसरी कोटि के मनुष्य ने बुद्ध को अपमानित करने के लिए बुद्ध शब्द विकसित किया है। उसे तो लगेगा ही कि यह आदमी पिछड़ रहा है। सिंहासन से और बड़े सिंहासन पर जाना चाहिए था। यह सिंहासन छोड़ कर भाग रहा है। या तो इसकी बुद्धि कमजोर है, या यह जीवन में हार गया; पलायनवादी है, एस्केपिस्ट है। और जो समतल पथ पर चलता है, सत्य के समतल पथ पर-क्योंकि वहां कोई उतार-चढ़ाव नहीं है, और जैसे-जैसे सत्य की निकटता बढ़ती है वैसे-वैसे पथ समतल होता जाता है वह इस तीसरी कोटि के मनुष्य को ऊपर-नीचा होता हुआ दिखाई पड़ता है। इस तीसरी कोटि के मनुष्य को सभी कुछ उलटा दिखाई पड़ेगा, स्वभावतः। क्योंकि वह ताओ, सत्य की तरफ जाने वाला आदमी इसके जीवन-दृष्टिकोण से बिलकुल विपरीत जा रहा है। जहां यह धन को पकड़ता है, वहां वह धन को छोड़ देता है। जहां यह स्त्री के पीछे भागता है, वहां वह स्त्री की तरफ मुंह कर लेता है। जहां सिंहासन के लिए यह जीवन देने को तैयार है, वहां उसको अगर हम मारने को भी तैयार हों और कहें कि सिंहासन पर बैठो, नहीं तो हत्या कर देंगे, तो भी वह सिंहासन से उतरने को तैयार है। बिलकुल विपरीत है। साधारण आदमी बहता है नदी की धार में उलटी तरफ, अप-स्ट्रीम; और ताओ की तरफ बहने वाला आदमी तैरना छोड़ देता है और नदी की धार में बहता है, डाउन-स्ट्रीम। दोनों उलटे मालूम पड़ते हैं। तो जो आदमी तैर रहा है उलटा, धारा में, और लड़ रहा है धारा से, जब भी आप लड़ना छोड़ेंगे, वे कहेंगेः कमजोर, कायर, नपुंसक, भाग रहे हो? बुद्ध को समझाने लोग आते थे। बुद्ध जब अपने राज्य को छोड़ कर दूसरे राज्य में गए तो दूसरे राज्य के सम्राट को पता चला। वह बुद्ध के पिता का मित्र था, शुद्धोधन का। वह बुद्ध के पास आया। उसने कहा कि इस उम्र में, जवान हो, स्वस्थ हो, हृष्ट-पुष्ट हो, भागते हो; शर्म नहीं आती? संकोच नहीं आता? यह तो कायरों का काम है भागना। तो बुद्ध ने कहा, मकान में आग लगी हो, और कोई आदमी मकान के बाहर आए, तो क्या आप उससे कहते हो-कायर, भागता है? जब मकान में आग लगी है तो भीतर बैठ! तो बुद्ध ने कहा, अगर आपकी भाषा में यह कायरता हो तो भी मुझे स्वीकार। आपकी बहादुरी को नमस्कार! उस बहादुरी में मैं नहीं पड़ने वाला। मकान में आग लगी है, मैं तो बाहर निकलूंगा। दुनिया कहे कि यह कायरपन है तो कहने दो। लेकिन जिसको आप महल कह रहे हैं वह जलता हुआ मकान है; वहां आग ही आग है, लपटों के सिवाय मैंने वहां कुछ भी नहीं पाया। तो जो हमें पलायन मालूम पड़ता है, तृतीय कोटि के मनुष्य को, वह उसके लिए विजय-यात्रा है। और जो हमारे लिए विजय-यात्रा है वह उसके लिए आग का पथ है। ये तीन तरह के लोग हैं। यह किन्हीं और के संबंध में बात नहीं है। तीनों तरह के लोग यहां मौजूद हैं। और आपका मन होगा मानने का कि आप पहले तरह के मनुष्य हैं। लेकिन जल्दी मत करना। पहली तरह का मनुष्य बहुत मुश्किल है। बेमन से शायद आप मानने को राजी हो जाएं कि चलो, दूसरी तरह के मनुष्य हैं। लेकिन दूसरी तरह का मनुष्य भी सौ में एकाध-दो होते हैं। क्योंकि दूसरी तरह के मनुष्य को बड़ी बेचैनी में जीना पड़ता है। पहली तरह का मनुष्य बेचैनी में नहीं जीता; तीसरी तरह का मनुष्य भी बेचैनी में नहीं जीता। वे आश्वस्त होते हैं। पहला वाला आश्वस्त चलता है, तीसरा वाला आश्वस्त रूप से छोड़ देता है कि यह सब फिजूल है, बकवास है, इसमें पड़ना नहीं है। दोनों निश्चित होते हैं। दूसरा मध्य वाला आदमी हमेशा चिंतित और बेचैन होता है। वह भी बहुत कम संख्या में
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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