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________________ अस्तित्व अबस्तित्व से घिरा है अपने को नुकसान पहुंचाना, असल में, दूसरे को नुकसान पहुंचाने का ही ढंग है। स्त्रैण ढंग है। पुरुष तो आक्रामक है; अगर वह किसी से क्रोध में आ जाए तो वह हमला करेगा। स्त्री अगर क्रोध में आ जाए तो वह खुद को पीटेगी। ये उन दोनों के मनोविज्ञान के फर्क हैं। स्त्री अपने को पीट रही है उसका यह मतलब नहीं कि वह अपने को पीट रही है; वह आपको ही पीट रही है। उसका आक्रमण ज्यादा जटिल है। अगर किसी स्त्री का बच्चा किसी के घर नुकसान पहुंचा आए, और आप शिकायत करने जाएं, वह अपने बेटे की पिटाई शुरू कर देगी। लेकिन आप यह मत समझना कि वह उसको पीट रही है। वह आपको पीट रही है। स्त्री का ढंग है, दूसरे को चोट पहुंचाना हो तो खुद को चोट पहुंचाना। बहुत सी स्त्रियां आत्महत्या कर लेती हैं, सिर्फ इसी सुख में-कि मैं मर जाऊं तब तुम्हें पता चलेगा, तब भोगोगे, तब मेरी कमी...। आत्महत्या करने से कोई मतलब नहीं है। पति की हत्या नहीं कर सकतीं। वह स्त्रैण भाव नहीं है। आक्रामक हिंसा नहीं है; हिंसा पैसिव है, निष्क्रिय है। तो वह खुद मर जाएगी, पर इसी आशा में। अगर उसको पक्का हो जाए कि इसको कोई दुख होने वाला नहीं तो स्त्री आत्महत्या करेगी ही नहीं। लेकिन पति को कुछ पता नहीं है, वह बेचारा कहता है कि तू मर मत जाना; मैं बहुत दुखी होऊंगा। उसको पता नहीं है कि वह उसको प्रोत्साहन दे रहा है। यही तो रस है। अगर पति कहे कि बिलकुल ठीक, कल की मरती तू आज मर जा, तो बहुत ही अच्छा है, छुटकारा हो गया। रस ही खो गया। मरने में कोई मतलब नहीं है। बल्कि अब तो जीना बिलकुल जरूरी है, क्योंकि अब जीकर ही दुख दिया जा सकता है। पहले मर कर दुख दिया जा सकता था। दुनिया में सौ हत्याओं में से निन्यानबे हत्याएं दूसरे की हत्या करने का ही ढंग होती हैं। तो पागल आदमी अपने को नुकसान पहुंचाने के लिए बाल लोंच सकता है। तो मनोविज्ञान से सिद्ध किया जा सकता है कि महावीर में कुछ पागलपन था, इसलिए बाल लोंचते थे। पागलों का एक वर्ग है जो नंगा होने में रस लेता है। अगर एकांत में सड़क पर कहीं कोई स्त्री वगैरह मिल जाए तो वह जल्दी से नंगा खड़ा हो जाएगा। एक्झिबीशनिस्ट उनको पश्चिम में कहते हैं; उनकी संख्या बढ़ती जाती है। महावीर नग्न खड़े थे। उन्होंने वस्त्र छोड़ दिए। उन्होंने वस्त्र इसलिए छोड़े कि वे बच्चे की तरह सरल और निर्दोष हो गए। लेकिन मनोविज्ञान से सिद्ध किया जा सकता है कि उनमें जरूर कोई वृत्ति थी कि वे चाहते थे लोग उनको नंगा देखें। और इसको गलत करना बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि महावीर तो कभी-कभी एक होता है। ऐसे हजार आदमी होते हैं जो दूसरे को अपने को नंगा दिखाना चाहते हैं। तो उन हजार के सामने महावीर एक अपवाद रह जाते हैं, उनको सिद्ध करना बहुत कठिन होगा। . आसान है क्योंकि जो पागल हैं वे भी समाज के बाहर गिर जाते हैं और जो संत हैं वे समाज के ऊपर उठ जाते हैं। दोनों समाज की सीमा के बाहर हो जाते हैं। उनमें कई चीजें समान मिल सकती हैं। तो पश्चिम में तय किया जा रहा है बहुत तरह से कि यह सब पागलों की जमात है। लाओत्से ने हजारों साल पहले कहा है कि यह जो तीसरी कोटि का मनुष्य है, यह जो शूद्र बुद्धि का मनुष्य है, जो ताओ को समझता है, उसको वह मानता है कि इसकी बुद्धि मंद मालूम पड़ती है। इसके पास बुद्धि नहीं है। इसमें कुछ गड़बड़ है; यह कुछ बीमार है, कि रुग्ण है, कि विक्षिप्त है, कि मूढ़ है। जो ताओ में खूब गतिवान है, वह तीसरी कोटि की बुद्धि के मनुष्य को, जीवन में बार-बार पिछड़ता हुआ मालूम पड़ता है। पड़ेगा ही। क्योंकि ताओ की गति, जीवन में हम जिसे गति कहते हैं, उससे बिलकुल विपरीत है। अब जो आदमी राजसिंहासन की तरफ चल रहा है, वह जब बुद्ध को देखेगा कि राजसिंहासन छोड़ कर भाग गए तो वह 243
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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