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________________ अस्तित्व अबस्तित्व से घिरा है बन जाता है। नदी फिर सागर में गिरती है; फिर बादल बनते हैं; फिर पानी उठता है; फिर स्रोत पर गिरता है; फिर नदी सागर की तरफ बहती है। एक वर्तुल है। मनुष्य का जीवन भी एक वर्तुल है। समय भी वर्तुलाकार है। इसलिए हमने इस देश में समय की जो धारणा की है वह वर्तुल में है। इसलिए हमने इतिहास लिखने में बहुत रस नहीं लिया। पश्चिम के इतिहासविद बहुत हैरान होते हैं कि पूरब की कौमों ने बहुत कुछ लिखा है, लेकिन इतिहास नहीं लिखा। हमने पुराण लिखे हैं। पुराण बड़ी और बात है। इतिहास बड़ी और बात है। इतिहास का मतलब है कि जो घटना घटी है वह यूनीक है, इसलिए उसकी तिथि, समय, वर्ष, काल, सब सुनिश्चित लिखा जाना चाहिए। पुराण का अर्थ है कि जो घटना घटी है वह एक कथा है जो बहुत बार घट चुकी है और बहुत बार घटेगी। समय, स्थान मूल्यहीन हैं, क्योंकि घटना बेजोड़ नहीं है। जैसे राम का जन्म हुआ। अगर राम पश्चिम में पैदा होते तो उन्होंने बराबर हिसाब रखा होता, कब पैदा हुए, किस दिन पैदा हुए, किस दिन मरे, किस दिन दफनाए गए; सब हिसाब रखा होता। हमने कोई हिसाब नहीं रखा है। राम का जन्म होता है, राम का जीवन होता है, राम की जीवन की लीला होती है; सब होता है; लेकिन हमने कोई ऐतिहासिक कालबद्ध हिसाब नहीं रखा। कारण? कारण हमारा यह है कि हर युग में राम होते रहे हैं और हर युग में राम होते रहेंगे। यह एक वर्तुल है जो घूमता ही रहता है। जैसे गाड़ी का चाक घूमता है तो उसका एक आरा ऊपर आता है; इसको लिखने की, नोट करने की, इतिहास बनाने की कोई भी जरूरत नहीं। क्योंकि अनंत बार यह आरा ऊपर आ चुका है। और फिर भी अनंत बार यह आरा ऊपर आता रहेगा। यह चाक है जो घूम रहा है। इसलिए हम संसार को संसार नाम दिए हैं। संसार का अर्थ है-दि व्हील, चाक। अशोक ने अपने राज्य के चिह्न में चाक को निर्मित किया था। फिर अभी भारत के स्वतंत्र होने पर हमने चाक को भारत के झंडे पर लिया है। लेकिन शायद हमें खयाल नहीं कि वह चाक किस बात का प्रतीक है। वह पश्चिम से बिलकुल विपरीत धारणा है। उसके पीछे पूरा एक जीवन का एक दर्शन है। और वह दर्शन यह है कि घटनाएं बेजोड़ नहीं हैं। इसलिए न हमें पक्का पता है कि बुद्ध किस सन में पैदा होते, किस दिन पर पैदा होते; न हमें पता है कृष्ण कब पैदा होते, कब विदा हो जाते; लेकिन कृष्ण के जीवन में जो भी सारभूत है वह हमें पता है। इसे हम असार कहते हैं, नॉन-एसेंशियल; इसका 'कोई मतलब ही नहीं है हिसाब रखने का।। . सृष्टि बनती है, फिर प्रलय होता है। फिर सृष्टि बनती है, फिर प्रलय होता है। फिर सृष्टि बनती है, फिर प्रलय होता है। और जहां से सृष्टि बनती है, ठीक जब वर्तुल वहीं आकर मिलता है समय का, तो प्रलय हो जाता है। जितने काल तक सृष्टि रहती है, फिर उतने ही काल तक प्रलय रहता है। फिर सृष्टि होती है, फिर प्रलय होता है। और ऐसे प्रत्येक सृष्टि और प्रलय के एक वर्तुल को हम एक कल्प कहते हैं। उसे हमने ब्रह्मा का एक दिन कहा है। सृष्टि का समय दिन है और प्रलय का समय रात्रि है। वह ब्रह्मा के चौबीस घंटे हैं। फिर सुबह होती है, फिर सूरज निकलता है, फिर सृष्टि होती है। फिर सांझ अस्त हो जाता है सूरज, विश्राम को चली जाती है जीवन की सारी ऊर्जा, शक्ति। फिर सुबह होती है। हर युग में, हर कल्प में राम होंगे, हर कल्प में कृष्ण होंगे, हर कल्प में महावीर-बुद्ध होंगे। इसलिए हिसाब क्या रखना है? इसलिए जो सार है वह बचा लेना है। बहुत मीठी कथा है कि वाल्मीकि ने राम के जन्म के पहले ही रामायण लिखी। राम का जन्म पीछे हुआ; रामकथा पहले लिखी गई। यह सिर्फ पूरब में हो सकता है। क्योंकि हमारी जो धारणा है, क्योंकि अनंत-अनंत कल्पों में राम हो चुके हैं, उनका सार पता है। घटनाएं गौण हैं, उनके जीवन का सार अर्थ पता है। तो वाल्मीकि ने सार अर्थ के आधार पर कथा लिख दी। फिर राम हुए। और राम के जीवन ने वही पूरा किया जो वाल्मीकि ने लिखा था। जो कवि को पहले दिख गया था, वह राम के जीवन में पूरा हुआ। 229
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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