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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ टाल्सटाय ने कहा है कि जिस दिन समाज समझदारी से भरा होगा उस दिन जिन कामों को करने को कोई भी राजी नहीं है उन कामों के लिए सर्वाधिक पैसा दिया जाएगा। दिया ही जाना चाहिए। राष्ट्रपति बनने को कोई भी तैयार है, इतनी तनख्वाह देने की कोई जरूरत नहीं है। मेहतर बनने को कोई भी तैयार नहीं है, उसकी तनख्वाह राष्ट्रपति से ज्यादा होनी चाहिए। जो तैयार है वह हिम्मत वाला आदमी है। और राष्ट्रपति से कोई अड़चन नहीं पड़ती, हों या न हों। वहां एक मिट्टी का गुड्डा भी बिठाल दो तो भी चलेगा। लेकिन यह मेहतर बहुत जरूरी है। यहां मिट्टी के गुड़े से काम होने वाला नहीं है। अगर समाज एक रथ है तो सभी अंग समान मूल्य के हो गए। छोटे-बड़े का भेद न रहा; एक कील भी मूल्यवान हो गई। बहुत मूल्यवान हो गई। रथ की एक कील भी निकल जाए तो रथ व्यर्थ हो जाएगा। तो कील कितनी छोटी है, इससे कोई सवाल नहीं है। उपयोगिता सामूहिक है। समता का यही अर्थ हो सकता है। समता का यह अर्थ नहीं हो सकता कि सभी लोग एक सा काम करें तब समान हैं। समता का यह भी अर्थ नहीं हो सकता कि कोई कुछ भी करे तो भी उसको समान ही मूल्य मिले। यह भी नासमझी की बात है। समता का एक ही अर्थ हो सकता है कि समाज एक संयुक्तता है, एक जोड़ है, और उसमें छोटा और बड़ा कोई अर्थ नहीं रखता। उसमें सब जरूरी हैं, और एक भी वहां से हट जाए तो रथ गिर जाता है। अगर ऐसा आप देख पाएं तो आपके मन से वैषम्य का भाव, किसी को नीचा देखने का भाव...। आपके घर में नौकर है; फिर नौकर को आप नीचा देखने के भाव से मुक्त हो जाएंगे। क्योंकि वह भी दान दे रहा है अपने ढंग से; वह भी आपके जीवन का हिस्सा है। और बड़े मजे की बात है कि वह आपके बिना शायद हो भी सके, आप उसके बिना नहीं हो सकते। तो आदर योग्य है, समादर योग्य है। लेकिन नौकर की तरफ कोई व्यक्ति की तरह भी नहीं देखता। आप घर में बैठ कर गपशप कर रहे हैं; नौकर आकर झाडू लगा जाता है। आप आंख भी उठा कर नहीं देखते कि उसको देखना भी जरूरी है, कि उसको भी नमस्कार करना जरूरी है, या कोई आया इसका बोध भी लेना जरूरी है। उपेक्षा से बैठे रहते हैं, जैसे कोई आया ही नहीं। वह नौकर शायद आदमी नहीं है, सिर्फ एक फंक्शन है; एक यंत्र की तरह आया, झाडू-बुहारी लगाई, चला गया। आपने उसकी आदमियत को जरा भी नहीं स्वीकारा। तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप सोच रहे हैं कि आप उसके बिना हो सकेंगे। इसका यह अर्थ हुआ कि वह अनिवार्य नहीं है। तो फिर आपका बोध बहुत संकीर्ण है और आपको जीवन के रहस्य का कोई भी पता नहीं। आप उसके बिना नहीं हो सकेंगे। और जिस शान से आप अपने बैठकखाने में बैठे हैं, उस बैठकखाने का सौंदर्य, उसकी सफाई और शान आपके कारण नहीं है। आपके कारण तो रोज कचरा इकट्ठा होता जिसको नौकर साफ करता है। आप तो कचराघर हैं; नौकर रोज साफ करता है। वह शान जो आपके बैठकघर की है वह नौकर की वजह से है। लेकिन अगर इसका बोध हो तो आप अनुगृहीत होंगे, और वह अनुग्रह आपको धीरे-धीरे द्वंद्व से हटाएगा। और धीरे-धीरे लगेगा कि चीजें इतनी जुड़ी हैं कि कौन जिम्मेवार है, कहना कठिन है। चीजें इतनी संयुक्त हैं कि हम सभी सहभागी हैं। और जीवन इतना घनेपन से जुड़ा है कि आपको खयाल नहीं आता। आप अपने दायरे बना कर जीते हैं; आप सोचते हैं आप अलग जी रहे हैं। आपको खयाल ही नहीं है कि कितने लोग आपके जीवन के लिए दान कर रहे हैं, और कितने लोगों के हाथ आपके जीवन को सहारा दे रहे हैं। अनजान, अपरिचित लोग खेतों में काम कर रहे हैं; वह आपका भोजन बनता है। और लोग ही नहीं, अभी तो इकोलाजी का सारी दुनिया में आंदोलन चलता है और नई खोजें होती हैं और खोज बड़ी चकित करने वाली हैं कि आप सोच ही नहीं सकते कि जीवन कितना सघन रूप से संयुक्त है। इसे थोड़ा हम समझें। |2201
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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