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एक साधे सब सो
इकहार्ट ने, मेस्टर इकहार्ट ने-ईसाई जगत में जो संत हुए हैं उनमें इकहार्ट का मुकाबला नहीं है, इकहार्ट अनूठा है-इकहार्ट ने एक वचन लिखा है, जिसकी वजह से उसे ईसाइयों ने तिरस्कृत किया और ईसाइयों ने उसे समाज-बहिष्कृत माना। और ईसाई उसे करीब-करीब भुलाने की कोशिश करते रहे हैं, कम से कम संगठनबद्ध पोप, चर्च इकहार्ट की बात नहीं करते। और इकहार्ट जैसा आदमी जीसस के बाद ईसाइयत में हुआ ही नहीं। पर इकहार्ट के वचन खतरनाक हैं। उसका एक वचन है जिसमें वह ईश्वर से प्रार्थना में कहता है कि तुमने मुझे जन्म दिया और मैंने तुम्हें जन्म दिया! और ध्यान रहे, तुम्हारे बिना मैं न बचूंगा, मेरे बिना तुम भी न बचोगे।
इससे घबड़ाहट तो हो ही जाएगी, अगर कोई संत ऐसा ईश्वर से कहे कि मेरे बिना तुम भी न बचोगे। तुम मेरे जीवनदाता हो, तो ध्यान रखना, मैं भी तुम्हारा जीवनदाता हूं।
पर लाओत्से के वचन से बात साफ हो जाएगी। इकहार्ट के कहने का ढंग अदभुत है, बड़ी चोट का है। लेकिन बात वह यही कह रहा है कि ईश्वर नहीं हो सकता जब तक कि मनुष्य उसे आध्यात्मिक जीवन-ऊर्जा न दे। एक पारस्परिक लेन-देन है। ईश्वर कोई ऐसी घटना नहीं है जो हमसे अलग हो सके। आदमी के साथ ही ईश्वर अस्तित्व में आता है। अस्तित्व का अर्थ यह कि ईश्वर का बोध, ईश्वर के होने की बात आदमी के साथ आती है। आदमी को हटा दें पृथ्वी से; पशु होंगे, पक्षी होंगे। आदमी नहीं होगा; ईश्वर भी नहीं होगा। सोच सकते हैं आदमी के बिना मंदिर और मूर्तियां और मस्जिद? आदमी खो जाएगा तो कौन तुम्हारी मूर्तियों को फूल चढ़ाएगा? आदमी की चेतना ही उस जगह आ गई है जहां से ईश्वर का आविर्भाव हो सकता है; जहां से आदमी अपनी चेतना से ईश्वर को जन्म दे सकता है। यह बहुत कठिन बात है खयाल में लेना। इसलिए जब भी ईश्वर खो जाता है तो उसका अर्थ है आदमी की चेतना नीचे गिर गई। क्योंकि उस ऊंचाई पर ही वह दिखाई पड़ता है। जहां आप ईश्वर को जन्म दे सकते हैं वहीं वह दिखाई पड़ता है।
___ तो इकहार्ट कहता है कि हम तुम्हारे पुत्र ही नहीं, तुम्हारे पिता भी हैं। तुम हमें जन्म देते हो, यह सच है; पर हम तुम्हारे जन्म की घटना को वापस लौटा देते हैं। हम ऋणी नहीं रहते; हम भी तुम्हें जन्म देते हैं। बड़ी छाती का आदमी रहा होगा। और संत, इतनी बड़ी छाती न हो, तो कोई हो भी नहीं सकता। __ लाओत्से कहता है, 'आध्यात्मिक शक्ति के बिना देवता नष्ट-भ्रष्ट हो जाएंगे।'
क्योंकि तुम्हीं उनके प्राणदाता हो। तुम्हारी ऊर्जा उनका भोजन है। तुम कितनी ऊंचाई पर हो उतनी ही ऊंचाई पर वे भी रहेंगे। तुम्हारी ऊंचाई ही उनके मंदिर की ऊंचाई है।
- इसे थोड़ा ऐसा देखें, जिस चेतना की अवस्था में आदमी होता है, उसी तरह के वह देवता भी निर्मित करता है। जैसे-जैसे आदमी की चेतना बढ़ती है वैसे-वैसे देवता परिष्कृत होने लगता है। आदिवासी का देवता देखें, तो वह आदिवासी जहां जीता है, जिस तल पर उसकी चेतना होती है, वैसा ही होगा। पीछे लौटें, जितना ज्यादा अविकसित समाज होगा और चेतना जितनी क्षीण होगी, वैसा ही देवता होगा। उस देवता की परिभाषा भी वैसी ही होगी।
अगर पुराना, ओल्ड टेस्टामेंट, बाइबिल में तो देवता जो है वह बहुत खतरनाक है, बहुत दुष्ट है। दया भी करता है, लेकिन उन पर ही दया करता है जो उसके अनुगत हैं। सशर्त उसका प्रेम है। और नाराज इतने जल्दी होता है, और जब नाराज हो जाता है तो बिलकुल विक्षिप्त व्यवहार करता है। नष्ट कर देता है गांव के गांव; पृथ्वी को डुबा देता है पानी में; क्योंकि लोग उसकी पूजा और प्रार्थना नहीं कर रहे। इसका ईश्वर से कोई लेना-देना नहीं है; जिन लोगों ने ये वचन लिखे उनकी चेतना की खबर है। ऐसे ही ईश्वर को वे जन्म दे सकते हैं; यह उनकी धारणा है।
लौटें पीछे; आपके देवी-देवता हैं पुराणों के। उनका चरित्र देखें, उनके काम देखें। तो शर्म मालूम होगी कि ये देवी-देवता हैं! ऐसा कोई पाप नहीं जो वे न करते हों। चोरी वे करें; मित्र को धोखा देकर उसकी पत्नी के साथ
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