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________________ पैगंबर ताओ के विले पुल है सभी बच्चे की तरह पैदा होते हैं, लेकिन बच्चा होने के लिए पैदा नहीं होते। बच्चे के पार जाना है। आपको खयाल शायद न हो कि आम आदमी पांच प्रतिशत बुद्धि का उपयोग करता है पूरे जीवन में। जो आंकड़ा सौ तक पहुंच सकता था वह केवल पांच तक ही उपयोग किया जाता है। आप सौ कदम चल सकते थे प्रतिभा के, आप पांच कदम ही चलते हैं। और जिनको हम बहुत प्रतिभाशाली कहते हैं वे भी पंद्रह प्रतिशत प्रतिभा का उपयोग करते हैं। जिनको नोबल प्राइज मिलती हैं वे भी पंद्रह प्रतिशत उपयोग करते हैं। मनुष्य की संभावना अनंत मालूम पड़ती है। अगर हमारे प्रतिभाशाली लोग भी पंद्रह कदम ही चलते हैं, जब कि जन्म से सौ कदम चलने की क्षमता लेकर आए थे, तो लगता है मनुष्यता बहुत अधूरे में जी रही है; अधूरे में भी कहना ठीक नहीं, बहुत छोटे से खंड में जी रही है। आपके मस्तिष्क के अधिकांश हिस्से बिना उपयोग के पड़े रह जाते हैं। आधा मस्तिष्क तो वैज्ञानिक कहते हैं समझ में ही नहीं आता कि क्यों है। क्योंकि उसका कोई उपयोग ही नहीं करता है। मनुष्य तो पूरी क्षमता लेकर पैदा होता है, लेकिन उस क्षमता का शायद पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है। मनुष्य की शिक्षा में कहीं भूल है, स्वभाव में नहीं। मनुष्य के समाज में कहीं भूल है, क्योंकि समाज मनुष्य के द्वारा निर्मित है; मनुष्य की प्रकृति में कहीं भूल नहीं। क्योंकि वह प्रकृति तो जागतिक है, परमात्मा की है। भूल स्वभाव में नहीं है; भूल समाज में है, व्यवस्था में है। समझें कि एक बीज हम बोते हैं। और बीज सौ फीट ऊंचा वृक्ष हो सकता था जो आकाश में बदलियों को चूमता। लेकिन उसे ठीक पानी नहीं मिलता, क्योंकि पानी देना माली के हाथ में है। बीज परमात्मा ने दिया है। पानी देना माली के हाथ में है। उसे ठीक खाद नहीं मिलता, उसे ठीक सुरक्षा नहीं मिलती। या माली पागल है और माली उसे बढ़ने नहीं देता। या माली को इस तरह का सपना मन में है कि इस पौधे को छोटा रखा जाए तो ज्यादा सुंदर मालूम पड़ेगा। तो वह उसको काटता रहता है, वह उसकी जड़ों को काटता रहता है, उसके पत्तों को, शाखाओं को काटता रहता है। उसे बढ़ने नहीं देता। या माली को खयाल है, या समाज में ऐसा फैशन है कि वृक्ष को उसके स्वाभाविक ढंग से बढ़ने दिया जाए तो वह कुरूप हो जाएगा, इसलिए माली उसे एक ढांचा पहना देता है तारों का, ताकि वह वैसा बढ़े जैसा समाज कहता है सौंदर्य है; समाज की धारणा जो सौंदर्य की है वैसा बढ़े। तो फिर पौधा बढ़ता है, लेकिन पौधा वैसा नहीं बढ़ता जैसा बीज लेकर आया था। और फिर अगर पौधा प्रसन्न न हो पाए और खुले आकाश में न उठ पाए और बदलियों को न छू सके और पौधे के जीवन में गीत पैदा न हो, तो हम कहेंगे कि बीज में कुछ भूल थी। करीब-करीब स्थिति ऐसी है। प्रत्येक मनुष्य बुद्ध होने की क्षमता लेकर पैदा होता है। बुद्धत्व प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। जो बुद्ध नहीं पाता तो समझना चाहिए, कहीं शिक्षा में, यात्रा में, मार्ग में, माली ने, पिता ने, मां ने, शिक्षकों ने, गुरुओं ने, धर्मों ने, कहीं न कहीं कोई उपद्रव खड़ा किया है। लाओत्से इसी उपद्रव की तरफ इशारा कर रहा है। वह कहता है, जब धर्म का लोप हो जाता है, स्वभाव का, ताओ का, तब मनुष्यता का सिद्धांत जन्म लेता है। और जब मनुष्यता का भी लोप हो जाता है, तब न्याय का सिद्धांत जन्म लेता है। और जब न्याय का भी लोप हो जाता है, तो कर्मकांड पैदा होता है। स्वभाव के लिए फिर कोई नियम नहीं है; न कोई मनुष्यता है, न कोई न्याय है, न कोई कर्मकांड है। स्वभाव पर्याप्त है। इसलिए हमने उपनिषदों में कहा है कि जो व्यक्ति स्वभाव को उपलब्ध हो जाए वह फिर सारे सामाजिक नियमों के पार हो गया। फिर उस पर कोई बंधन नहीं है। फिर उससे हम नहीं कह सकते कि तुम ऐसा करो। फिर हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा करना उचित है और ऐसा करना अनुचित है। उपनिषदों ने कहा है, जो व्यक्ति स्वभाव को उपलब्ध हो गया वह जो भी करता है वही उचित है, और वह जो नहीं करता वही अनुचित है। हमारी परिभाषाएं उस पर लागू नहीं होती; उसका आचरण ही हमारी परिभाषाएं बनता है। 173
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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