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________________ पैगंबर ताओ के खिले फूल है और सिर्फ मनुष्य में ही इस तरह के वचन सार्थक हो सकते हैं कि कोई बड़ा मनुष्य है, कोई छोटा मनुष्य है। दो तोतों में कौन बड़ा तोता है कौन छोटा तोता है? दोनों बराबर तोते हैं। उनका तोतापन जरा भी भिन्न नहीं है। दो कुत्तों में कौन कुत्ता बड़ा है और कौन कुत्ता छोटा है? जहां तक कुत्तापन का सवाल है, दोनों में बराबर है। लेकिन दो आदमियों में हम कह सकते हैं एक आदमी बड़ा और एक आदमी छोटा, और एक आदमी महान और एक आदमी क्षुद्र, और एक आदमी पूरा मनुष्य और एक आदमी अधूरा मनुष्य। इस तरह के शब्द, इस तरह के वचन केवल मनुष्य पर ही सार्थक हो सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य मनुष्य की तरह पैदा नहीं हो रहा है, सिर्फ संभावना लेकर पैदा होता है। फिर कोई बन पाता है, कोई नहीं बन पाता; कोई अधूरा बन पाता है, कोई विकृत हो जाता है; कोई भटक जाता है, कोई रास्ते से उतर जाता है। हजार लोग चलते हैं मनुष्य होने की राह पर, कभी कोई एक मनुष्य हो पाता है। होना तो नहीं चाहिए ऐसा। इससे विपरीत हो तो समझा जा सकता है कि हजार लोग पैदा हों और एक आदमी कभी आदमी न हो पाए तो समझ में आ सकता है-रुग्ण हो गया, बीमार हो गया, कुछ भूल हो गई। लेकिन जहां हजार आदमी पैदा होते हों और एक मुश्किल से कभी आदमी बन पाता हो, और नौ सौ निन्यानबे भटक जाते हों, तब तो मानना पड़ेगा कि भटकन ही रास्ता है। यह एक आदमी इस भटकने वाले रास्ते से किसी तरह भूल-चूक से बच गया। यह एक आदमी अपवाद हो गया, नियम न रहा। __लाओत्से कहता है, जब धर्म का लोप हो जाता है, तब मनुष्यता का धर्म, मनुष्यता की बातें, ह्यूमैनिटी, ह्यूमैनिटेरियनिज्म पैदा होता है। तब लोग कहते हैं मनुष्य बनो। लाओत्से कहता है, मूल खो गया हो तब इस तरह की छोटी शिक्षाएं पैदा होती हैं। लाओत्से कहता है, तुम सिर्फ प्राकृतिक बनो। सारी प्रकृति प्राकृतिक है, सिर्फ मनुष्य अप्राकृतिक है। सिर्फ मनुष्य अपने स्वभाव से इधर-उधर हटता है। कोई अपने स्वभाव से नहीं हटता। अग्नि जलाती है। पुराने शास्त्र कहते हैं, जलाना अग्नि का स्वभाव है। पानी नीचे की तरफ बहता है। पुराने शास्त्र कहते हैं, पानी का नीचे की तरफ बहना स्वभाव है। और पुराने शास्त्र कहते हैं कि मनुष्यता मनुष्य का स्वभाव है। लेकिन कभी आपने देखा है कि आग न जलाती हो? या कभी आपने देखा कि पानी अपने आपसे ऊपर की तरफ चढ़ता हो? लेकिन फिर मनुष्य कैसे, अगर मनुष्यता उसका स्वभाव है, तो जैसे आग जलाती है, वैसे ही मनुष्य को स्वाभाविक रूप से मनुष्य होना चाहिए। भला मनुष्य होना मनुष्य का स्वभाव हो। लेकिन स्वभाव से हम कहीं छिटक गए हैं, हट गए हैं। इस विचार पर बड़ी खोज चलती रही है, हजारों साल में न मालूम कितने चिंतकों ने कितनी-कितनी प्रस्तावनाएं पेश की हैं कि आदमी विकृत क्यों है? अभी नवीनतम एक प्रस्तावना है आर्थर कोयस्लर की। बहुत घबड़ाने वाली भी। कोयस्लर का खयाल है और कोयस्लर एक वैज्ञानिक चिंतक है-कोयस्लर का खयाल है कि मनुष्य-जाति के प्राथमिक क्षणों में ही, मनुष्य के मूल उदगम में ही मनुष्य के मस्तिष्क में कुछ विकृति हो गई, और हम विकृत मस्तिष्क को लेकर ही पैदा होते हैं। इसलिए कभी भूल-चूक से कोई बुद्ध हो जाता है, कभी भूल-चूक से कोई क्राइस्ट हो जाता है। वह भूल-चूक है। लेकिन नियम से मनुष्य विकृत पैदा होता है। इससे कुछ लोगों को सांत्वना भी मिलेगी-इस विचार से—कि चलो, हमारी झंझट समाप्त हुई। मूल में ही कोई उपद्रव है; मेरा निजी कोई दोष नहीं है। और पश्चिम में इस तरह के विचार प्रभावी हो जाते हैं। प्रभावी हो जाने का कारण यह है कि जो बात भी आपको सुविधा देती है गलत होने की, वह प्रभावी हो जाती है। उससे आप रिलैक्स होते हैं, उससे तनाव कम हो जाता है। आप आराम से कुर्सी पर बैठ जाते हैं कि ठीक है, कहीं मूल में, करोड़ों वर्ष पहले इतिहास के साथ ही कुछ भूल हो गई है। मनुष्य विकृत पैदा ही होता है, तो व्यक्तिगत दोष समाप्त हो गया। और जहां व्यक्तिगत दोष समाप्त हो जाता है वहीं आपको बुरे होने की पूरी सुविधा और छूट मिल जाती है। |171/
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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