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श्रेष्ठ चरित्र ऑर घटिया चनिन्न
लेकिन कृष्ण ने सीधा कह दिया कि हां, मैं शस्त्र न उठाऊंगा। यह वचन किसी कानूनी आदमी का वचन नहीं है। यह एक साधु का वचन है, जिसको न भविष्य का विचार है, न अतीत का हिसाब है। जो चालाक नहीं है। यह एक भोले आदमी का, एक बच्चे का, एक सरलता से निकला हुआ वचन है कि हां, नहीं उठाऊंगा। इसे कुछ पता नहीं है कि जो इससे वचन ले रहे हैं वे चालबाज हैं, जो इससे वचन ले रहे हैं वे होशियार हैं, वे कुशल हैं, जो इससे वचन ले रहे हैं वे इसे बांधने की कोशिश कर रहे हैं, वे इसके हाथ-पैर बांध देना चाहते हैं। कृष्ण को इसका कुछ पता नहीं है। उन्होंने वचन दे दिया। और फिर एक घड़ी आई, तब उन्होंने शस्त्र भी उठा लिया। अब नीतिशास्त्री को बड़ी अड़चन है कि कृष्ण को कैसे बिठाया जाए। वचन टूट गया। यह आदमी धोखेबाज है।
मुझे इसमें जरा भी धोखा नहीं मालूम पड़ता। यह आदमी धोखेबाज होता तो पहली बात वचन न देता। यह आदमी धोखेबाज होता तो वचन इस ढंग से देता कि तोड़ने की सुविधा रखता। यह आदमी इतना सरल है कि वचन भी दे दिया और वक्त आया तो तोड़ भी दिया। और इसको कोई अड़चन न मालूम पड़ी। एक दूसरी परिस्थिति में यही स्वाभाविक लगा कि शस्त्र हाथ में उठा लिया जाए। ये दो अलग क्षण हैं। चालाक आदमी दोनों को साथ जोड़ कर सोचता है; सरल आदमी क्षण-क्षण में जीता है। उसके क्षणों के बीच जोड़ नहीं होता; सिवाय उसकी सहजता के और कोई कंटिन्यूटी, और कोई सातत्य नहीं होता। इसलिए कृष्ण मुझे अनूठी सरलता के आदमी मालूम पड़ते हैं। आपके दूसरे महात्मागण उतने सरल नहीं हैं, बड़े चालाक हैं। वे बड़े दूर का हिसाब रखते हैं। उनको परमात्मा भी जब पूछेगा तो उनको फांस न पाएगा। वे सब कानूनन ढंग से चलते हैं। लेकिन कृष्ण बिलकुल सरल हैं।
यह सरलता ऐसी है जैसे बच्चे की है। अभी प्रेम कर रहा है आपको और क्षण भर बाद आग हो गया और आपकी जान लेने को तैयार है, और क्षण भर बाद शांत हो गया और फिर आपकी गोदी में आकर बैठ गया। आप कभी बच्चे को नहीं कहते कि धोखेबाज है। अभी क्षण भर पहले तू कह रहा था कि दुश्मनी है, और अभी क्षण भर बाद दोस्ती! लेकिन आप बच्चे को कभी धोखेबाज नहीं कहते, क्योंकि आप जानते हैं वह सहज है। धोखा आप दे सकते हैं; वह नहीं दे सकता। हर क्षण में वह सच्चा है। और दो क्षणों का हिसाब नहीं है। क्योंकि वह चालाक आदमी का गणित है। क्षण-क्षण में सच्चा है, और क्षण के प्रति जो सचाई है वह प्रकट कर रहा है।
__एक क्षण है जहां कृष्ण कहते हैं कि हां, शस्त्र नहीं उठाऊंगा। और एक क्षण है जब वे शस्त्र उठाते हैं। इन दोनों क्षणों में हमारे लिए हिसाब है, कृष्ण के लिए सिर्फ एक ही सहजता है। उस क्षण में यही सहज था; इस क्षण में यही सहज है। और इन दोनों में कोई कंट्राडिक्शन, कोई विरोध नहीं है। लेकिन हमें विरोध दिखाई पड़ता है। और जिस दिन आपको विरोध न दिखाई पड़े, समझना कि आप में भी चरित्र का जन्म हुआ है। और जब तक विरोध दिखाई पड़े तब तक समझना कि आपका चरित्र हिसाब है।
लेकिन हिंदू भी कृष्ण को ठीक से समझा नहीं पाते। उनको भी अड़चन है। क्योंकि उनके पास भी बुद्धि तो नैतिक चरित्र की है। और जब दूसरे धर्मों के लोग कृष्ण पर आक्षेप उठाते हैं तो हिंदू विचारक को टालमटोल करनी पड़ती है। फिर उसे कुछ बातें जबरदस्ती प्रस्तावित करनी पड़ती हैं। या तो वह कहता है कि यह अवतार का चरित्र है, अबूझ है। अबूझ बिलकुल नहीं है, सीधा-साफ है। चरित्र का जरा भी रहस्य नहीं है इसमें। यह सीधी-साफ बात है। एक बच्चे जैसा चरित्र है, इनोसेंट। इसमें क्या अबूझ है? लेकिन वे कहते हैं, अवतार का जीवन तो समझा नहीं जा सकता; वह बड़ा रहस्यपूर्ण है। उन्होंने किसी मतलब से उठाया होगा जो हमें पता नहीं है।
उन्होंने बिलकुल मतलब से नहीं उठाया। अगर मतलब से उठाया है तो वे चरित्र के व्यक्ति ही नहीं हैं। फिर प्रयोजन है। सुदर्शन उठ गया है। इसे कृष्ण ने उठाया नहीं है। इसमें जरा भी सोच-विचार नहीं है। सोचने में और कृत्य में जरा सा भी फासला नहीं है।
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