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इन दोनों छोरों से एक ही सागर में छलांग लगती है। वह सागर एक है। जहां लाओत्से पहुंचता है, वहीं रमण पहुंचते हैं। लेकिन उनके यात्रा-पथ बिलकुल भिन्न हैं। ताओ का यात्रा-पथ बड़ा सुखद है। ताओ का यात्रा-पथ बड़ा सरल है। ताओ सहज योग है।
सहजता और सभ्यता में तालमेल
- एक मित्र ने पूछा कि ताओ के सहज स्वभाव के अनुकूल जीवन के साथ भांतिक सभ्यता के विकास का क्या तालमेल रहेगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि मनुष्य समाज को उस स्थिति में आदिम अवस्था में लौटना पड़े?
डर भी क्या है? लौटना भी पड़े तो डर क्या है? हर्ज क्या हो जाएगा? पा क्या लिया है? खोया ही है कुछ; पाया कुछ भी नहीं है।
तो पहली तो बात यह है कि आदिम से डरने की कोई जरूरत नहीं। क्योंकि जिसको हम आज सभ्यता कह रहे हैं वह सिवाय महारोग के और क्या है? लेकिन मैं नहीं मानता कि लौटना पड़ेगा। लौटना होता ही नहीं जगत में। लेकिन लौटना पड़े तो हर्ज कुछ भी नहीं है। क्योंकि आपके पास कुछ है नहीं जो खो जाए। कुछ है ही नहीं। आपकी हालत वैसी है जैसे नंगा नहाए और सोचे कि निचोड़ेंगे कहां? सुखाएंगे कहां?
निचोड़ने को है क्या, सुखाने को है क्या? खो क्या जाएगा? आपने पा क्या लिया है ? शोर-शराबा है, उपद्रव है चारों तरफ। उससे लगता है कि कुछ उपलब्धि हो रही है। खो जाए तो हर्ज कुछ भी नहीं है; क्योंकि कुछ पाया नहीं है। पा लिया होता तब कुछ चिंता की बात होती। लेकिन खोएगा नहीं, क्योंकि कुछ खोता नहीं।
और बाहरी परिस्थिति से ताओ का बहुत संबंध नहीं है। ताओ का संबंध भीतरी मनोदशा से है। भीतरी मनोदशा अगर सहज हो जाए, तो आप जहां भी हैं, जिस भौतिक स्थिति में हैं, उस भौतिक स्थिति में भी आप प्राकृतिक हो सकते हैं। कोई प्राकृतिक होने के लिए पहाड़ पर ही जाने की जरूरत नहीं है। प्राकृतिक होना एक मनोभाव है। आप अपने मकान में भी हो सकते हैं। कोई प्राकृतिक होने के लिए सब वस्त्र उतार कर नग्न हो जाने की जरूरत नहीं है। आप वस्त्रों के भीतर भी पूरी तरह नग्न हो सकते हैं। हैं ही। सिर्फ खयाल है कि नहीं हैं। पूरी तरह नग्न हैं ही। सिर्फ भ्रांति है कि नहीं हैं। आप जहां हैं वहीं प्राकृतिक हो सकते हैं। प्राकृतिक होने के लिए कुछ बाहर की दुनिया को बहुत बदलने की जरूरत नहीं।
लेकिन फिर भी अगर लोग प्राकृतिक होने शुरू हो जाएं तो भौतिक सभ्यता में से बहुत कुछ निश्चित ही खो जाएगा। वह जो-जो रुग्ण है, और जो-जो व्यर्थ है, और जो-जो अकारण है, और जो-जो हमारे बुखार के कारण पैदा हुआ है, वह खो जाएगा। कुछ चीजें तो हमारे बुखार के कारण ही पैदा हुई हैं।
अब जैसे हर आदमी जल्दी में है; हर आदमी जल्दी में है, बिना इसकी फिक्र किए कि कहां पहुंचना है। इतनी जल्दी है कि मिनट न चूक जाए। इतनी परेशानी है कि समय न खो जाए। लेकिन जाना कहां है? और समय बचा कर क्या करिएगा? और लोग समय बचा लेते हैं, फिर पूछते हैं, अब क्या करें? समय का क्या करें? और इसको बचाने में जीवन दांव पर लगाए रखते हैं।
एक आदमी कार से भागा चला जा रहा है। वह जीवन दांव पर लगा सकता है, क्योंकि कहीं पांच मिनट ज्यादा न लग जाएं। और पांच मिनट बचा कर—जिसके लिए उसने जीवन खतरे पर लगाया-पांच-दस मिनट बचा कर वह पांच-दस मिनट पहले पहुंच जाएगा अपने मकान पर। फिर अब वह लेट कर सोच रहा है, अब क्या करना है? टेलीविजन चलाऊं? रेडियो शुरू करूं? सिनेमा देखने जाऊं? समय कैसे काटूं? इस आदमी को पूछे कि पहले समय बचा रहा है, फिर पूछ रहा है समय कैसे काटें?
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