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________________ विश्व-शांति का सूत्रः सहजता व सरलता सका सरलता की गरिमा और ही है। होता है। प हाता है; वह जानता भी है अपनी एकदम उदास और टूटा हुआ है। कई बार ऐसा लगता है कि शायद आदमी को यह वहम कि मैं कुछ कर सकता हूं, सबसे ज्यादा घातक सिद्ध हुआ है। लाओत्से कहता है, ताओ कभी कर्मरत नहीं है तो भी सभी कुछ उसके द्वारा होता है। आप भी कर्म से अपने को हटा लें। इसका यह मतलब नहीं कि आप खाली होकर बैठ जाएं; इसका यह मतलब भी नहीं कि आप भाग जाएं। इसका यह मतलब भी नहीं कि आप जिंदगी को छोड़ दें, काहिल हो जाएं, सुस्त हो जाएं, लेट जाएं अपने बिस्तर पर, उठे ही नहीं। इसका यह मतलब नहीं है। इसका कुल मतलब इतना है कि जो भी हो रहा है उसे आप अपना कर्म न समझें, उसे होने दें जीवन की धारा। नदियां जैसे बह रही हैं वैसे आप भी बह रहे हैं। और विराट ही उसका मूल स्रोत है। आप खुद स्रोत न रहें; आप सिर्फ उसके हाथ के उपकरण रह जाएं। तो कर्म तो होगा; व्यर्थ कर्म बंद हो जाएगा। व्यर्थ कर्म अपने आप गिर जाएगा; सिर्फ कर्म रह जाएगा। जो भी अनिवार्य है वह होगा। न आप उसको रोकेंगे, न आप उसको करेंगे। वह होगा। और आप सरल हो जाएंगे, पशु-पक्षियों की भांति सरल। निश्चित ही, मनुष्य जब पशु-पक्षियों की भांति सरल होता है तब उसकी सरलता की गरिमा और ही है। क्योंकि वह बोधपूर्ण सरल होता है; वह जानता भी है अपनी सरलता को; वह इस सरलता का जागरूक द्रष्टा भी होता है। पशु-पक्षी सरल हैं, लेकिन उनकी सरलता मजबूरी है, क्योंकि वे जटिल नहीं हो सकते। उनकी सरलता कोई गुण नहीं है; उनकी सरलता एक तरह की मूर्छा है। लेकिन मनुष्य जब सरल होता है पशु-पक्षियों की भांति तब उसकी सरलता परम शिखर है जीवन के आनंद का, और जीवन के चैतन्य की आखिरी ऊंचाई है, और जीवन के भाव का आखिरी विस्तार है। ताओ कर्मरत नहीं है। इसलिए जब भी आप कर्मरत हैं तब आप धार्मिक नहीं हैं। प्रार्थना करें मत, प्रार्थना होने दें। इस फर्क को समझ लें। मंदिर में जाकर बैठ गए हैं आप; प्रार्थना की जा सकती है। तब आपके पास रटे हुए शब्द हैं, वे आप दोहराते हैं। करके जल्दी निबटा लेते हैं। कभी जल्दी होती है तो तेजी से कर लेते हैं; कभी सुविधा होती है तो जरा ज्यादा देर बैठे रहते हैं। लेकिन एक और ढंग है-जो कि वास्तविक ढंग है कि आप मंदिर में गए हैं, बैठ गए हैं। अब प्रार्थना को होने दें, करें मत। बैठे रहें, शांत बैठे रहें; होने दें प्रार्थना को। ईसाइयों का एक छोटा सा संप्रदाय है जो अनूठा है। उस संप्रदाय की प्रार्थना बड़ी अदभुत है। वह तो आपको समझ में भी एकदम से न आए; लेकिन ताओ के बहुत अनुकूल है। उस संप्रदाय को कोई गति नहीं मिल सकी ज्यादा, क्योंकि उनकी प्रार्थना ने ही उनको नुकसान पहुंचा दिया। उनकी प्रार्थना की वजह से ही लोग समझे कि यह तो पागलपन है। उनकी प्रार्थना का एक ही नियम है कि आप उनके चर्च में जाकर बैठ जाएं और जो भी भाषा आप जानते हैं उस भाषा को बीच में मत आने दें। जैसे आप हिंदी जानते हैं, अंग्रेजी जानते हैं, गुजराती जानते हैं, तो इसका उपयोग मत करें। आप सिर्फ शांत बैठे रहें; और कुछ भी बेबूझ ध्वनियां आपके भीतर से आनी शुरू हो जाएं, उनसे ही प्रार्थना करें। भाषा का उपयोग न करें। ऐसा कोई शब्द उपयोग न करें जो आप जानते हैं। क्योंकि उसमें डर है कि आप उसका उपयोग कर रहे हैं कि आप कहते हैं, हे प्रभु! हे पतित पावन! यह मत करें। इसमें कोई सार नहीं है बहुत। यह आप बहुत दफे कह चुके हैं। यह आपकी बुद्धि में समाया हुआ है, इसको आप कह सकते हैं। यह रिकार्डिंग है, इसको आप दोहरा सकते हैं। यह ग्रामोफोन का रिकार्ड है; यह रोज आप दोहरा कर वापस जा सकते हैं। इसका कोई भी मूल्य नहीं है। तो वह संप्रदाय ईसाइयों का कहता है कि आप भाषा का उपयोग न करें, जो भी आप जानते हैं। निश्चित ही, इसका बड़ा गहरा परिणाम होगा। इसका मतलब हुआ कि आपकी बुद्धि को अब कोई उपाय न रहा। क्योंकि बुद्धि सब भाषा है। आप जो भी भाषा जानते हैं, उसका उपयोग मत करें। आप सिर्फ बैठे रहें; और कुछ 113
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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