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शक्ति पर भद्रता की विजय होती है
हैं-स्वर्ग, मोक्ष, क्या मिलेगा, क्या नहीं मिलेगा। क्योंकि आपने लंगोटी लगा ली है। गजब का सौदा कर रहे हैं! एक लंगोटी लगा कर लोग बिलकुल मोक्ष का इंतजाम कर लेते हैं। या कि कोई नग्न खड़ा हो गया तो वह सोचता है कि परम दिगंबरत्व उपलब्ध हो गया। अब, अब तो क्या कमी रही! तो सिर्फ इतनी ही कमी थी कि आप कपड़े पहने थे; वे बाधा डाल रहे थे मोक्ष में। या आप एक बार खाना खा सकते हैं; तो सादगी नहीं हो जाएगी। अभ्यास की बात है।
अफ्रीका में एक पूरी की पूरी जाति एक ही बार भोजन करती है। जब उनको पहली दफा पता चला, योरोपियन वहां पहुंचे और उनको पता चला कि चार-चार, पांच-पांच दफा दिन में खाते हैं-कभी चाय, कभी नाश्ता, कभी खाना-तो वे हैरान ही हो गए। उनको पता ही नहीं था, सदियों से वे एक ही बार खा रहे थे, जैसे आप दो बार खा रहे हैं। तो पेट उसके लिए राजी हो जाता है, फिर चौबीस घंटे में एक बार भूख लगती है। दो बार खाते हैं तो दो बार लगती है; पांच बार खाते हैं तो पांच बार लगती है। पेट हर चीज से राजी हो जाता है।
तो जो पांच बार खा रहा है, उसका भी पांच बार का अभ्यास है। जो एक बार खा रहा है, उसका एक बार का अभ्यास है। अभ्यास बदलने में थोड़ी तकलीफ हो सकती है शुरू में, लेकिन थोड़े ही दिनों में कंडीशनिंग हो जाती है, अभ्यास हो जाता है। फिर कोई अड़चन नहीं है। लेकिन सादगी से इसका कोई संबंध नहीं है। सादगी से संबंध इसका नहीं है कि आप क्या करते हैं; सादगी से संबंध है कि आप क्या हैं।
एक मित्र थे मेरे, उनके साथ एक दफा यात्रा पर गया। तो वे भोजन के लिए इतना उपद्रव मचाते थे-सादा भोजन। उसके लिए वे इतना उपद्रव मचाते थे कि मैंने कोई उपद्रवी नहीं देखा जो भोजन के लिए इतना ऑब्सेशन से भरा हो। सादा भोजन के लिए वे इतना उपद्रव मचाते थे कि गैर-सादा भोजन वाला इतना उपद्रव कभी करता ही नहीं। चौबीस घंटा उनका भोजन में ही चिंतन में लगता।
कितने घंटे पहले दूध लगाया गया गाय से! क्योंकि उनका हिसाब कि इतने घंटे के बाद उसमें जीवाणु पड़ जाएंगे, यह हो जाएगा। घी कितने घंटे पहले का निकाला हुआ! गाय का ही है दूध ? भैंस का न होना चाहिए, गाय का ही चाहिए। पानी कौन भर कर लाया? वे सारा हिसाब कर लेते थे। और लोग कहते, कितना सादा जीवन! और वे चौबीस घंटे सादा जीवन में ही लगे हैं। उनका कुल एक ही लक्ष्य हो गया है कि चौबीस घंटे वे इसकी व्यवस्था जमाएं। और उससे उन्हें सम्मान मिल रहा है, उन्हें आदर मिल रहा है। लोग कष्ट उठा रहे हैं, सब तरह का इंतजाम कर रहे हैं। और उनको बड़ा सम्मान मिल रहा है। और वे चौबीस घंटे भोजन को ब्रह्म मान कर चिंतन कर रहे हैं। - सादगी वहां मुझे जरा भी न दिखाई पड़ी। यह तो बहुत ही गैर-सादा जीवन मालूम पड़ा। यह तो बहुत उलझा हुआ मालूम पड़ा। और अकेले का ही नहीं उलझा, और अनेक लोगों का उलझाए हुए हैं। और सब भयभीत हैं, डरे हुए हैं, कि जरा भूल-चूक हो जाए तो वे भोजन नहीं लेंगे, वे भूखे रह जाएंगे। उनका भूखा रहना ऐसा है जैसे सबके ऊपर अपराध है। और सब अनुभव करेंगे कि भूल हो गई, अपराध हो गया; बड़ा कष्ट हो गया।
आप सादगी को भी जटिलता कर सकते हैं, अगर आपका जटिल मन है। और अगर आपका सादा मन है, सादा हृदय है, तो कितनी ही जटिलता में आप रह सकते हैं, जटिलता पैदा नहीं होगी। इसलिए असली सवाल यह नहीं कि आप क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, क्या पहनते हैं। असली सवाल यह है कि कैसा आपके पास हृदय है, कैसे आप हैं। और आप उलझे हुए तो नहीं हैं! गणित तो नहीं बिठा रहे हैं!
सुना है मैंने कि एक सूफी फकीर यात्रा कर रहा था, मक्का जा रहा था। और उसने और उसके मित्रों ने एक महीने का उपवास किया हुआ था। उपवास तोड़ेंगे वे मक्का जाकर। एक गांव में आए, लेकिन बड़ी मुश्किल हो गई। चार-छह दिन ही हुए थे यात्रा के। और गांव के एक गरीब आदमी ने, जो उस सूफी का भक्त था, अपना सब खेती,
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