SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ४ 92 लाओत्से बैठा है। कनफ्यूशियस उससे मिलने आया । कनफ्यूशियस डेल कार्नेगी की बात बिलकुल ठीक से समझता। कनफ्यूशियस तो बिलकुल मर्यादा पुरुषोत्तम था। हर चीज की मर्यादा थी; हर चीज का नियम था । और आप जानते हैं, चीन में तो लोग या जापान में लोग झगड़ें भी तो भी पहले झुक-झुक कर नमस्कार करते हैं। झगड़ा भी झुक-झुक कर नमस्कार से शुरू होता है। इतने विनम्र हो गए हैं। कनफ्यूशियस आया; उसने झुक कर नमस्कार किया। लेकिन वह बड़ा चौंका। क्योंकि लाओत्से बैठा था, और बैठा ही रहा। न उसने झुक कर नमस्कार का उत्तर दिया, न वह खड़ा हुआ । कनफ्यूशियस थोड़ा बेचैन हुआ, और उससे नहीं रहा गया। और उसने कहा कि आप समाज के किसी नियम और व्यवस्था को नहीं मानते हैं? तो लाओत्से हंसा और उसने कहा, तो तुम व्यवस्था और नियम के कारण झुक रहे हो? लाओत्से ने कहा, औपचारिक का क्या उतर देना ! फार्मल का क्या उत्तर देना ! हार्दिक के उत्तर की कोई बात होती है। तुम सिर्फ झुक रहे थे क्योंकि नियम है ! तो सब थोथा हो गया। हार्दिक का उतर हो सकता है; औपचारिक का क्या उत्तर ? और अच्छा था कि तुम्हें तुम्हारी औपचारिकता का पता चल जाए, क्योंकि औपचारिकता झूठ है। तुम जरा भी नहीं झुके, और झुक कर तुमने दिखाया। तुम झुकते तो मैं झुका ही हुआ हूं, कोई बाधा नहीं है । और तुम मेरे झुके हुए होने को नहीं देख सकते क्योंकि तुम सिर्फ औपचारिक झुकने को पहचानते हो। मुझे उठ कर खड़े होने और झुकने की जरूरत नहीं । तुम मुझे देखो, मैं झुका हुआ हूं। खड़े होकर झुकने की तो उसे जरूरत है जो भीतर झुका न हो, और बाहर से आयोजन कर रहा हो, प्रदर्शन कर रहा हो। कनफ्यूशियस बहुत घबड़ा गया होगा । उसकी थोड़ी सी जो चर्चा लाओत्से से हुई है, वह लौट कर अपने शिष्यों से उसने कहा कि इस आदमी के पास दुबारा मत जाना; यह आदमी बहुत खतरनाक है। लाओत्से का भद्रता से अर्थ है स्वभाव की भद्रता । इसे हम समझने की कोशिश करें। क्योंकि हमारे पास बहुत ऐसे शब्द हैं जो धोखे के हो गए हैं। एक आदमी लंगोटी लगा लेता है तो हम कहते हैं, कितना सादा आदमी है। सादगी लंगोटी लगाने से हो जाती है। लेकिन जो आदमी लंगोटी लगा रहा है, वह क्यों लंगोटी लगा रहा है? उसकी लंगोटी लगाने में कोई लोभ है ? कोई प्रलोभन है? कुछ पाने की आकांक्षा है ? तो फिर सादगी न रही; फिर तो यह व्यवस्था हो गई, व्यवसाय हो गया, इनवेस्टमेंट हो गया। वह लंगोटी लगा कर कुछ पाने की कोशिश कर रहा है। या यह हो सकता है कि आप सादगी को आदर देते हैं, इसलिए वह लंगोटी लगा कर खड़ा है। तो वह आपसे आदर पाने की कोशिश कर रहा है। तो फर्क क्या हुआ? एक आदमी कीमती, खूबसूरत टाई बांध कर खड़ा हुआ है, वह भी इस आशा में कि आप आदर देंगे; और एक आदमी लंगोटी लगा कर खड़ा हुआ वह भी इस आशा में कि आप आदर देंगे। दोनों की लंगोटियों में फर्क क्या है? बुनियादी आकांक्षा! वे प्रतीक्षा क्या कर रहे हैं? आप सुंदर वस्त्र पहन कर खड़े हो सकते हैं, आप नग्न खड़े हो सकते हैं; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह फर्क तो बहुत ऊपरी है। लेकिन भीतर आकांक्षा क्या है? भीतर आकांक्षा है सम्मान पाने की, समादर पाने की, इज्जत पाने की ? दूसरे देखें और जानें कि आप कौन हैं, क्या हैं, आप महत्वपूर्ण हैं, विशिष्ट हैं ? तो अगर यह आकांक्षा भीतर है, सादगी के पीछे भी, तो सादगी सादगी न रही; फिर सादगी तो जटिल हो गई, उसमें उलझाव हो गया। मैं अनेक सादगी वाले लोगों को जानता हूं। उनकी सादगी बिलकुल आरोपित है, आयोजित है । और ऐसा नहीं कि वे आदमी बुरे हैं। उन्हें पता ही नहीं कि वे... वे भी मान कर चल रहे हैं कि यह सादगी है। सादगी होती है हृदय की। लंगोटियों से उसे नापने का कोई उपाय नहीं है। और हृदय सादा हो तो बात और है। हृदय सादा न हो तो आप कितना ही इंतजाम कर लें, सादगी फलित न होगी। उसमें भी आप हिसाब लगा रहे
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy