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- समर्पण है सार ताओ का
बेकसूर हूं। लेकिन जीसस चुप रह जाते हैं। सूली पर जाना उचित मालूम पड़ता है, बजाय औचित्य सिद्ध करने के कि मैं जस्टीफाइड हूं। क्या कारण होगा? उचित यही हुआ होता, हम भी कहेंगे, किसी वकील से सलाह ले लेनी थी। ऐसी क्या सूली पर जाने की जल्दी थी? सिद्ध करना था कि मैं जो कहता हूं, ठीक कहता हूं। मेरे अर्थ और हैं।
ईसाइयत दो हजार साल से सिद्ध कर रही है कि जीसस के अर्थ और थे। गलत समझे लोग। लेकिन जीसस ने खुद क्यों न सिद्ध कर दिया? ज्यादा आसान होता। जीसस के लिए गवाही दी जा रही है दो हजार साल से कि जीसस का मतलब और था, और जिन्होंने सूली दी वे उस मतलब को नहीं समझ पाए। जीसस ने कहा था, किंगडम ऑफ गॉड; तो वह ईश्वर के राज्य की बात थी, इस जगत के राज्य की बात नहीं थी। इस जगत में जो राजा हैं, वे घबड़ा गए। वे समझे कि यह जीसस जो है, इस जगत का सिंहासन पाने की कोशिश कर रहा है। मगर जीसस खुद ही कह सकते थे। इतनी सीधी सी बात थी। एक वक्तव्य देते और कहते कि मेरा मतलब यह है, मेरा मतलब ऐसा नहीं है। जीसस क्यों चुप रह गए? यह औचित्य सिद्ध क्यों न किया?
असल में, औचित्य सिद्ध करने की जो चेष्टा है, वह दूसरे को मालिक मान लेना है। किसके सामने औचित्य? संत उत्तरदायी नहीं है किसी के प्रति। आप जाकर पूछे लाओत्से से कि सिद्ध करो कि तुम साधु हो! लाओत्से कहेगा कि तुम्हें असाधु मानना हो, असाधु मान लो; साधु मानना हो, साधु मान लो; यह तुम्हारा धंधा है; हमसे कुछ लेना-देना नहीं है। आप यह भी कह सकते हैं कि हम मान कर चले जाएंगे कि तुम असाधु हो। तो लाओत्से कहेगा, मौज है तुम्हारी; लेकिन तुम्हारे सामने मैं सिद्ध करने जाऊं कि मैं साधु हूं तो इसका मतलब यह हुआ कि मेरी साधुता के लिए तुम्हारी प्रामाणिकता की कोई जरूरत है, तुम्हारे प्रमाण की, तुम्हारे सील की, तुम्हारे हस्ताक्षर की कोई जरूरत है।
ऐसा मजेदार हुआ कि मैं एक नौकरी की तलाश में था। उस राज्य के शिक्षा मंत्री से मिला। तो उन्होंने कहा, नौकरी तो हम आपको अभी दे दें; किसी भी युनिवर्सिटी या कालेज में आप चले जाएं; लेकिन आपके चरित्र का प्रमाणपत्र, कैरेक्टर सर्टिफिकेट चाहिए। तो आप वाइस चांसलर का, जिस युनिवर्सिटी में आप पढ़े हों; किसी प्रिंसिपल का, जिस कालेज में आप पढ़े हों; उनका कैरेक्टर सर्टिफिकेट ले आएं।
___तो मैंने उनको कहा कि अभी तक मुझे ऐसा आदमी नहीं मिला, जिसके कैरेक्टर का मैं सर्टिफिकेट दे सकू-न कोई प्रिंसिपल, न कोई वाइस चांसलर। तो जिसके कैरेक्टर का सर्टिफिकेट मैं नहीं लिख सकता, उससे मैं कैरेक्टर का सर्टिफिकेट लिखवा कर लाऊं तो बड़ी अजीब सी बात होगी। तो अगर बिना कैरेक्टर सर्टिफिकेट के नौकरी मिलती हो तो दे दें। अन्यथा बिना नौकरी के रह जाना ठीक है, बजाय इसके कि चरित्रहीनों से चरित्र का और प्रमाण लाया जाए। आखिर चरित्र का प्रमाण कौन दे सकता है? और कैसे दे सकता है? और फिर मैं चरित्रवान हूं या नहीं, इसकी जिम्मेवारी मेरे और परमात्मा के बीच है। और मैंने उनको कहा कि नौकरी में आप जो मुझे तनख्वाह देंगे, वह पढ़ाने की देंगे। मेरे चरित्र की देंगे? कोई मेरे चरित्र की कीमत आप चुकाने वाले हों तो चरित्र की चिंता की जाए।
लेकिन हमारा जो जिसे हम जगत कहते हैं, हमारा जो जीवन है, वहां सब औचित्य पर निर्भर है, वहां सब सिद्ध करना होता है। वहां सब सिद्ध करना होता है, और सिद्ध करने की तरकीबें बड़ी मजेदार हैं।
क्वेकर ईसाई अदालत में कसम नहीं खाते। अदालत में कसम खानी चाहिए कि मैं कसम खाता हूं कि सत्य बोलूंगा। क्वेकर ईसाई कहते हैं कि अगर मैं झूठ ही बोलने वाला हूं तो यह कसम भी झूठ खा सकता हूं।
यह बड़ी अजीब पागलपन की बात है! एक आदमी से, जो झूठ बोलने वाला है, निष्णात झूठ बोलने वाला है, अदालत में हम कसम खिलवाते हैं कि तुम कसम खाओ कि सच बोलेंगे। वह कसम खाता है कि हम कसम खाते हैं, सच बोलेंगे। बड़े आश्चर्य की बात है कि क्या कसम खाने से किसी आदमी का झूठ बोलना मिट जाता है!
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