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समर्पण हैं सार ताओ
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उसकी खुशामद बन जाती है। जब आप ऐसे लगते हैं कि दूसरे से बिलकुल प्रभावित हो गए, पानी-पानी उसके चरणों में हो गए, तब आपको पता नहीं है कि उस आदमी को भी आपने पानी-पानी कर लिया। अब जरा ही धक्के की जरूरत है कि आपके पैरों में गिरा ।
खुशामद में इतना क्यों छूती है ? उसका कारण यह है कि खुशामदी बताता है कि मैं कितना प्रभावित हूं, आपसे कितना प्रभावित हूं। हम जानते हैं कई दफा कि खुशामद बिलकुल झूठी है; फिर भी कोई आदमी हमें खुशामद करने के योग्य मान रहा है, यह भी दिल को बहुत बहलाता है। खुशामद उतना नहीं छूती, जितनी यह बात छूती है कि किसी ने हमें इस योग्य माना है कि खुशामद करे। यह भी क्या कम है? और इस जगत में जहां हर आदमी अपने अहंकार से जीता है, वहां दूसरे के अहंकार को जरा सा भी फुसलाना बड़ी चमत्कारिक घटना मालूम पड़ती है। लेकिन खुशामदी आपको प्रभावित करने के लिए प्रभावित हो रहा है। आप दूसरे को प्रभावित कर पाएंगे, इसकी संभावना कम है। हां, एक बात पक्की है कि आप अपनी ऊर्जा व्यय कर रहे हैं, आप अपने को खो रहे हैं।
झेन फकीर हुआ रिझाई । जब भी कोई उसके पास आता तो वह कहता, दो बातें पहले तय हो जाएं। एक कि तेरा इरादा अपने को प्रकट करने का तो नहीं है? मेरा शिष्य बनने आया है, तब उसका कुल कारण इतना ही तो नहीं है कि गांव में जाकर तू कह सके कि रिंझाई का शिष्य हूं?
रिझाई महान संत है। शिष्य अपने गुरु के बाबत सदा प्रचार करते हैं। लेकिन यह गुरु का प्रचार नहीं होता; क्योंकि गुरु जैसे-जैसे बड़ा होने लगता है, वैसे-वैसे शिष्य भी बड़ा होने लगता है। बड़े गुरु का बड़ा शिष्य होता है। अगर किसी के गुरु को आप कुछ गलत कह दें तो शिष्य को जो चोट लगती है वह इसलिए नहीं कि गुरु को गलत कह दिया; गुरु के गलत होते ही शिष्य की गति बिगड़ जाती है। शिष्य की क्या स्थिति रह जाती है! अगर गुरु गलत है तो शिष्य ? शिष्य भी गलत हो गया। गुरु बड़ा है तो शिष्य भी बड़ा है।
ठीक से हम गौर करके देखें कि अगर कोई आपके मुल्क को गाली देता है तो आपको तकलीफ इसलिए नहीं होती कि मुल्क को गाली दे रहा है। किसको मतलब है मुल्क से ? कोई आपके धर्म को गाली देता है तो आपको क्या मतलब है? कोई राम को, कृष्ण को, महावीर को गाली देता है, आपको क्या प्रयोजन है?
नहीं, लेकिन उनको गाली देने का मतलब गाली आपको लग जाती है। हिंदू मानना चाहता है कि हिंदू जो है श्रेष्ठतम धर्म है; क्योंकि मैं हिंदू हूं। मुसलमान मानना चाहता है, इसलाम श्रेष्ठतम धर्म है; क्योंकि मैं मुसलमान हूं। इसलाम श्रेष्ठ है तो ही मुसलमान श्रेष्ठ हो सकता है। हिंदू धर्म श्रेष्ठ है तो हिंदू श्रेष्ठ हो सकता है। और अगर भारत ऐसी भूमि है कि देवता भी वहां पैदा होने को तरसते हैं तो फिर आपने पैदा होकर भारत पर जो कृपा की है उसका कोई अंत नहीं है। जब देवता तरसते हैं और आपको पैदा होने का मौका मिला तो देवता दो इंच नीचे छूट गए। मन को यह बात जो खुशी देती है, यह खुशी कोई मुल्क की जमीन से कुछ लेना-देना नहीं है।
अहंकार सब तरफ से अपने को भरता है। और अहंकार का सूत्र है : अपने को प्रकट करना। क्योंकि अहंकार अगर अप्रकट रहे तो मर जाता है। यह खयाल रखें। अहंकार प्रकट होने में जीता है। कितने दूसरे लोग मुझे मान लें, उसमें ही उसके प्राण हैं । अहंकार के प्राण दूसरे लोगों के प्रभावित होने में हैं। अगर मुझे कोई भी नहीं जानता तो अहंकार कहां टिकेगा? आप अकेले हैं जमीन पर तो आपके अहंकार को खड़े होने की कोई जगह नहीं रह जाएगी। अहंकार होता भीतर है, बनता दूसरों के कंधों पर है। दूसरों के कंधे न मिलें तो अहंकार के खड़े होने का कोई उपाय नहीं रह जाता।
यह जो अहंकार है, संतत्व के लिए पहली बाधा है। आत्मा को जिसे जानना हो, उसे अहंकार से छुटकारा चाहिए। अहंकार से छुटकारा, अर्थात दूसरे को प्रभावित करने की वासना से छुटकारा । और ध्यान रहे, दूसरे को