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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 80 सम्राट पैर पकड़ लिया और कहा कि महाराज, बड़ी भूल हो गई। साधु ने कहा, लौट चल सकता हूं, कोई हर्जा मुझे नहीं है। लेकिन तुम फिर मुसीबत में पड़ जाओगे। अब तुम लौट ही जाओ, मुझे कोई अड़चन नहीं है, वापस...। जैसे ही उस साधु ने कहा वापस, सम्राट का पसीना छूट गया। साधु ने कहा, फिर तुम पूछोगे कि महाराज, फर्क क्या है? मुझे तुम जाने ही दो, ताकि तुम्हें फर्क याद रहे । अन्यथा और कोई कारण मेरे जाने का नहीं है। वापस चल सकता हूं। क्या है आपके पास, यह सवाल नहीं है; कितना आपके भीतर चला गया है, यही सवाल है। भीतर न गया हो तो आप खाली हैं। अभाव है । उस अभाव में ही विश्रांति है, आनंद है, मुक्ति है। 'इसलिए संत उस एक का ही आलिंगन करते हैं; और बन जाते हैं संसार का आदर्श।' इस एक नियम का, एक ताओ का, इस खाली होने के सूत्र का, इस झुक जाने की कला का, इस मिट जाने की तैयारी का, इस एक नियम का पालन करते हैं; और बन जाते हैं संसार का आदर्श । बनना नहीं चाहते संसार का आदर्श, नहीं तो कभी नहीं बन पाएंगे। जो बनना चाहते हैं, वे कभी नहीं बन पाते। जो इन कलाओं को जानता है जीवन की, वह अनजाने संसार का आदर्श बन जाता है। आज इतना ही । कीर्तन करें, फिर जाएं।
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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