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________________ ताओ है झुकने वाली छोने व मिटने की कला लाओत्से कहता है, पूछो राज जीवन का छोटे घास के तिनकों से, जिनको बड़ी से बड़ी आंधी उखाड़ नहीं पाती। क्या है उनका राज? पूरे के पूरे सुरक्षित रह जाते हैं। इतने कमजोर कि जरा सा झोंका हवा का उन्हें तोड़ दे; लेकिन भयंकर झंझावात चलता है और उनकी जड़ें भी नहीं हिलतीं। और जरा सी उनकी जड़ें हैं। और बड़े-बड़े वृक्ष, जिनकी गहरी जड़े हैं जमीन में, वे भूमिसात हो जाते हैं। पूछो, उन बड़े वृक्षों की भूल क्या थी? उन बड़े वृक्षों ने लड़ना चाहा; उन बड़े वृक्षों ने जीतना चाहा; उन बड़े वृक्षों ने झंझावात से युद्ध मोल लिया। उन बड़े वृक्षों ने कहा, हम कुछ हैं। वे छोटे घास के तिनके चुपचाप झुक गए। 'टु यील्ड इज़ टु बी प्रिजर्ल्ड होल।' झक गए। उन्होंने कोई झगड़ा ही न लिया। उन्होंने झंझावात को दुश्मन ही न माना। उन्होंने झंझावात को प्रेम से अंगीकार कर लिया। उन्होंने खेल समझा, युद्ध न समझा। उन्होंने कहा, ठीक है, बह जाओ। उन्होंने रास्ता दे दिया। अगर ठीक से समझें तो बड़े वृक्ष जरूर अपने भीतर हीनता से भरे रहे होंगे। वे रास्ता न दे सके। उन्हें लगा कि यह इज्जत का सवाल है। उनकी इज्जत बड़ी कमजोर रही होगी। उन्हें लगा होगा कि यह झंझावात हमें उखाड़ने आया है। कौन झंझावात किसे उखाड़ने आता है? झंझावात अपनी गति से बहता है। आंधी को कोई प्रयोजन है बड़े से या छोटे से? आंधी अपनी गति से बहती है, अपने ताओ में, अपने स्वभाव में बहती है। किसी को तोड़ने, उखाड़ने, मिटाने का कोई सवाल नहीं है। लेकिन बड़े वृक्ष भीतर हीन रहे होंगे, डरे रहे होंगे। इज्जत का सवाल होगा, रिस्पेक्टबिलिटी का सवाल होगा। लोग क्या कहेंगे? चारों तरफ लोग क्या हंसी उड़ाएंगे? उन्होंने इसे चुनौती समझा। झंझावात का जो स्वभाव था, इसे अकारण बड़े वृक्षों ने चुनौती समझा, चैलेंज समझा। झंझावात को किसी के लिए कोई चुनौती नहीं थी। वृक्ष न होते तो भी झंझावात ऐसे ही बहता। यह वृक्ष न होगा, तब भी आंधियां बहेंगी। यह वृक्ष नहीं था, तब भी आंधियां बहती थीं। आंधियों को वृक्षों से क्या लेना-देना? लेकिन वृक्ष का अपना अहंकार आड़ में आ गया। और वृक्ष ने सोचा कि मुझे, जो मैं इतना बड़ा हूं, चुनौती है; लडूंगा, जीत कर बताऊंगा। आंधी टूट कर रहेगी। कभी कोई आंधी नहीं टूटती, वृक्ष ही टूटता है। फिर बड़ा वृक्ष टकराता है। टकराता है, तो जड़े हिल जाती हैं। ध्यान रखना, टकराने से हिल जाती हैं, आंधी से नहीं। वह जो रेसिस्टेंस है वृक्ष का, वह जो प्रतिरोध है, वही अपनी जड़ों पर आत्महत्या हो जाती है। वृक्ष गिरता है आंधी के कारण नहीं। क्योंकि छोटे-छोटे पौधे नहीं गिरते तो वृक्ष को गिरने का क्या कारण था? वृक्ष गिरता है प्रतिरोध के कारण, विरोध के कारण, संघर्ष के कारण, लड़ने की वृत्ति के कारण। विजय की आकांक्षा से गिरता है। उखड़ जाती हैं जड़ें, वृक्ष भूमिसात हो जाता है। और जो लड़ कर गिरता है, वह उठने की क्षमता खो देता है। जो लड़ कर गिरता है, वह उठने की क्षमता खो देता है; क्योंकि जड़ें ही टूट जाती हैं जो फिर उठा सकती थीं। छोटे पौधे झुक जाते हैं। आंधी गुजर जाती है, बड़ी-बड़ी आंधियां गुजर जाती हैं। और छोटे पौधे फिर खड़े हैं, मुस्कुरा रहे हैं-वैसे के वैसे जीवित, शायद और भी जीवित। यह आंधी का जो संस्पर्श है उन्हें, और जीवन दे गया। यह जो आंधी उनके ऊपर से बह गई, उनकी धूल-धवांस भी हटा गई। यह जो आंधी उनके पास से गुजर गई, इसमें वे स्नान कर लिए। सद्यःस्नात, वे पुनः खड़े हो गए हैं। यह आंधी उनके लिए शत्रु न रही, मित्र हो गई। यह आंधी उन्हें जीवन की एक पुलक दे गई, एक जीवन का अनुभव दे गई। यह आंधी उनके ऊपर से गुजरी मित्र की तरह। जैसे कोई रात चादर ओढ़ कर सो जाए, ऐसे वे आंधी को ओढ़ कर सो गए। चुनौती नहीं थी आंधी उनके लिए; संघर्ष नहीं था। आंधी जा चुकी है, वे छोटे पौधे वापस अपनी जगह खड़े हैं और भी ज्यादा प्रसन्न, और भी ज्यादा अनुभव से भरे। और उनकी जड़ें और भी मजबूत हो गई हैं। क्योंकि हर अनुभव जड़ों को मजबूत कर जाता है। वे और
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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