SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुद्र आचरण नीति है, परम आचरण धर्म यह जो आदमी है, ऐसे आदमी प्रमाण नहीं देते। केशवचंद्र उस दिन तो चले गए भीड़-भाड़ में, लेकिन रात वापस आ गए। और रामकृष्ण से कहा कि तुम जिस भांति हो गए हो ऐसा होने का मेरे लिए भी कोई उपाय है? रामकृष्ण ने विवाद किया होता तो केशवचंद्र दुबारा वापस आने वाले नहीं थे। लेकिन क्या खींच लाया होगा रात अंधेरे में? इस आदमी का होना, इस आदमी का बीइंग, इसका अस्तित्व, इसका यह आनंद! यह कुछ जानता है, जो प्रमाणों से टूट नहीं सकता। यह कुछ जानता है, सारी दुनिया कहे गलत तो गलत नहीं हो सकता। इसने कुछ देखा है, इसने कुछ जीया है, इसने कुछ पा लिया है। लाओत्से कहता है, 'उसके प्रमाण उसमें ही प्रच्छन्न हैं। प्राचीन काल से आज तक इसकी नाम-रूपात्मक अभिव्यक्तियों का अंत नहीं आया।' वह जो प्रकृति है, वह जो ताओ है, वह जो स्वभाव है, वह जो सागर है अस्तित्व का, वह अनंत-अनंत रूपों में अनंत काल से प्रकट होता रहा है। उसकी अभिव्यक्तियों का कोई अंत नहीं है। सतत है धारा उसकी। 'और हम उसमें देख सकते हैं सभी वस्तुओं के जनक को।' सभी उसमें से पैदा होती हैं, उसी स्वभाव में से, और सभी उसमें लीन हो जाती हैं। 'लेकिन सभी वस्तुओं के जनक के आकार को मैं कैसे जानता हूं?' लेकिन कैसे बताऊं उसका आकार? कैसे कहूं, क्या है उपाय? तुम अगर मुझसे पूछो कि कैसे जानते हो उसके आकार को तो भी बड़ी कठिनाई है। लाओत्से कहता है, 'इन्हीं के द्वारा, इन्हीं अनंत-अनंत अभिव्यक्तियों के द्वारा उसे जानता हूं।' यह जो दिखाई पड़ता है, इनके द्वारा ही उसे पहचानता हूं, जो इनके पीछे छिपा है और दिखाई नहीं पड़ता है। एक कवि को आप कैसे पहचानते हैं? उसके काव्य के द्वारा। और एक चित्रकार को कैसे पहचानते हैं? उसके चित्र के द्वारा। और अगर चित्रकार खो भी जाए, अंधेरे में छिप जाए और चित्र भर मौजूद हो, तो भी हम जानते हैं। जो दिखाई पड़ रहा है, उससे हम उसे जानते हैं जो दिखाई नहीं पड़ रहा है। लेकिन ये सारे आकार उसके हैं, फिर भी उसका कोई आकार नहीं है। यह आखिरी बात खयाल में ले लें। जो सब आकारों में प्रकट होता है, उसका अपना आकार नहीं हो सकता। जिसका अपना आकार होता है, वह सब आकारों में प्रकट नहीं हो सकता। सब आक्रारों में तो वही प्रकट हो सकता है जो निराकार हो, जिसका अपना कोई निश्चित आकार न हो। जो सिर्फ एक संभावना हो, एक पोटेंशियलिटी हो; अनंत की संभावना हो। लाओत्से कहता है, लेकिन इसके लिए मैं कोई प्रमाण न दूंगा। अगर प्रमाण देखना है तो चारों तरफ प्रमाण मौजूद है। अगर उसके हस्ताक्षर देखने हैं तो चारों तरफ खुदे हैं। तुम भी उसके ही हस्ताक्षर हो। वृक्ष भी, पत्थर भी, तारे भी, फूल भी, पक्षी भी, सभी उसके हस्ताक्षर हैं। अनंत-अनंत रूपों में वह मौजूद है। लेकिन तुम उसे देख तभी पाओगे, जब तुम कम से कम अपने आकार के भीतर उसका अनुभव कर लो। तब वह तुम्हें सब आकारों में दिखाई पड़ने लगेगा। और इसका कोई प्रमाण, बुद्धिगत प्रमाण नहीं दिया जा सकता। अनुभवगत प्रमाण हो सकता है। और जिस दिन कोई व्यक्ति अपने भीतर, अपने आकार के भीतर डूबकर उस निराकार को जान लेता है, उस दिन उसके जीवन में जो क्रांति घटित होती है, उस क्रांति का नाम परम आचरण है। जिस दिन कोई व्यक्ति अपने भीतर छिपे हुए उस सत्य को अनुभव कर लेता है, पहचान लेता है, कहें हम परमात्मा, आत्मा, जो नाम देना हो-लाओत्से नाम भी नहीं देता, वह कहता है ताओ, ताओ का अर्थ होता है ऋत, नियम, दि लॉ, वह कहता है कि वह जो नियम है जीवन का आत्यंतिक, वही-उसे जिस दिन कोई जान लेता है, उसके बाद उसका आचरण 59
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy