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मुद्र आचरण बीति है, परम आचरण धर्म
उपलब्ध हो जाएंगी। चोर धीरे-धीरे अंधेरे में देखते-देखते हमसे ज्यादा अंधेरे में देखने लगता है। आंख का अभ्यास हो जाता है। तो आपके घर में आपको दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन उसे दिखाई पड़ता है।
सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन के घर में एक रात चोर घुस गए। उसकी पत्नी ने उसे जगाया और कहा, नसरुद्दीन, उठो, चोर मालूम होते हैं। नसरुद्दीन ने कहा, शांत भी रहो, हमें तो जिंदगी भर इस घर में खोजते हो गया, कुछ मिला नहीं; शायद उन्हें मिल जाए। सुना है, चोरों की आंखें अंधेरे में देख लेती हैं। शांत रहो, कहीं भाग न जाएं। और फिर यह भी हो सकता है, उन्हें कुछ न मिलेघबड़ाहट में उनके पास कुछ हो, छोड़ जाएं। शांत रहो।
ऐसी एक घटना और नसरुद्दीन के जीवन में है। एक रात अकेला ही था घर में, पत्नी भी नहीं थी, और चोर घुस गए। पत्नी थी तो उसके सामने बहादुरी बताने में आसानी थी। पत्नी बड़ी कारगर है पतियों की बहादुरी बताने के लिए। संसार में कहीं तो नहीं दिखा पाते, घर आकर पत्नी के सामने बहादुर हो जाते हैं। हालांकि मजा यह है कि चाहे कितने ही बड़े बहादुर हों, पति को पत्नी कभी बहादुर मानती नहीं। चाहे सिकंदर ही हों आप, पत्नी के सामने कुछ आपकी कीमत नहीं। लेकिन फिर यह एक समझौता है। पिटे-कुटे जिंदगी से लौटते हैं, पत्नी पर थोड़ी अकड़ बता लेते हैं; एक दुनिया निर्मित हो जाती है कि हम भी कुछ हैं।
उस दिन पत्नी भी घर में नहीं थी। मुल्ला बहुत घबड़ा गया; डर के मारे एक अलमारी में घुस गया। पीठ दरवाजे की तरफ करके छिप कर खड़ा हो गया। चोर सब जगह खोजते-खोजते आखिर अलमारी पर भी पहुंचे। अलमारी खोली, मुल्ला की पीठ दिखी। तो चोरों ने कहा, नसरुद्दीन, यह क्या कर रहे हो? नसरुद्दीन ने कहा, शर्म के कारण यहां छिपा हूं, घर में कुछ भी नहीं है। बड़ी शर्म आती है। आए हो न मालूम कितनी दूर से, घर में कुछ भी नहीं है। कुछ मिल जाए तो मुझे खबर करते जाना। खोजते हमें भी बहुत समय हो गया।
चोर को दिख सकता है अंधेरे में। हमसे तो ज्यादा दिखता है। अभ्यास से सरलता से दिखने लगता है।
भीतर का अंधेरा भी पहले आपको आंख को निर्मित करने की चुनौती है। अगर आप बाहर भाग आते हैं तो चूक जाते हैं। ईसाई साधकों ने तो उसे डार्क नाइट ऑफ दि सोल कहा है; अंधेरी रात आत्मा की। और उसको पार करने की पूरी व्यवस्था और साधनाएं बनाई हैं कि उसे कैसे पार करें। प्रकाश तो मिलेगा, लेकिन अंधेरी रात को पार करने के बाद। सुबह होती भी नहीं है रात को बिना पार किए। कहीं सूरज निकला है बिना रात को पार किए? तो भीतर भी प्रकाश का अनुभव आता है, लेकिन रात को पार करने के बाद। एक अर्थ!
दूसरा अर्थ, जो ताओ का अपना निज है, लाओत्से का अपना निज है। लाओत्से प्रकाश से अंधेरे को ज्यादा मूल्य देता है। लाओत्से कहता है, प्रकाश तो एक उत्तेजना है, अंधेरा परम शांति है। प्रकाश की तो सीमा है, अंधेरा असीम है। कभी खयाल किया? प्रकाश की तो सीमा है, अंधेरा असीम है। और प्रकाश में तो उत्तेजना है। इसीलिए तो प्रकाश हो तो रात में आप सो नहीं पाते। जितना गहन हो अंधेरा, उतना विश्राम कर पाते हैं। प्रकाश आंखों पर चोट करता रहता है। प्रकाश में थोड़ी हिंसा है, अंधेरा परम अहिंसक है।
लाओत्से कहता है कि प्रकाश तो पैदा करना पड़ता है, फिर भी बुझ-बुझ जाता है; अंधेरा शाश्वत है। उसे पैदा नहीं करना पड़ता; वह है। प्रकाश तो जलाओ-चाहे दीए का प्रकाश हो और चाहे महा सूर्यों का। सूर्य भी चुक जाते हैं, उनका ईंधन भी चुक जाता है।
वैज्ञानिक कहते हैं, हमारा यह सूर्य चार हजार साल से ज्यादा अब नहीं चलेगा। इसका ईंधन चुक रहा है। यह रोज अपनी अग्नि को फेंक रहा है। चार हजार साल में इसकी अग्नि चुक जाएगी; यह ठंडा पड़ जाएगा। अरबों-अरबों वर्ष जल चुका है। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है? समय की अनंत धारा में एक दीया रात भर जलता है, एक सूरज अरबों वर्ष जलता है; लेकिन बुझ जाते हैं। प्रकाश बुझता है; अंधेरा कभी बुझता नहीं।