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ताओ उपनिषद भाग ३
होकर आप देखें तो लगता है, दूर से फेनोज्ज्वल, फेन के शिखर से लदी भागती चली आ रही है लहर। आती है, चली आती है, तट से टकराती है, बिखर जाती है। लेकिन बैज्ञानिक कहते हैं कि लहरें अपनी जगह नहीं छोड़तीं। सागर में जो लहर आपको दिखती है आती हुई, वह सिर्फ आँखों का भ्रम है, इल्यूजन है। एक लहर उठती है, नीचे गड्डा हो जाती है। एक लहर गिरती है, पास का पानी ऊपर उठ जाता है। वह जो पास का पानी ऊपर उठ जाता है और पहला पानी नीचे गिर जाता है, आपको लगता है पहली लहर आगे आ गई। कोई लहर आगे नहीं आती।
इसीलिए तो स्टेज पर नाटक में आसानी से लहरों का भ्रम पैदा किया जा सकता है। कोई अड़चन नहीं है। आप जो बिजली के बल्बों को देखते हैं शादी-विवाह के मंडप पर लगे हुए, लगते हैं भागे चले जा रहे हैं। वह कोई भाग नहीं रहा है। बल्ब अपनी जगह जलता है, बुझ जाता है। एक बल्ब बुझा, दूसरा जल जाता है; वहम पैदा होता है कि बिजली यात्रा कर गई।
सागर की लहरों में भी वैसा ही वहम है। एक लहर उठती है, नीचे गड्डा हो जाता है। वह गिरती है, पास का पानी ऊपर उठ जाता है। आपको लगता है लहर यात्रा कर गई। कोई लहर यात्रा नहीं करती; सब अपनी जगह उठती-गिरती रहती हैं। सागर में यात्रा है ही नहीं। सागर घिर है। इसलिए सागर को हमने कहा है धीरः। उसमें अधैर्य है ही नहीं। अधैर्य का मतलब क्या होता है? अधैर्य का मतलब होता है कि कहीं पहुंचना है। जब तक नहीं पहुंचे हैं, तब तक धैर्य कैसे हो? सिर्फ धैर्य में तो वही हो सकता है, जिसे कहीं पहुंचना नहीं है। पहुंचने वाले को तो अधैर्य में जीना ही पड़ेगा। और जितनी जल्दी होगी पहुंचने की, उतना अधैर्य होगा।
पश्चिम में देखते हैं, अधैर्य ज्यादा है पूर्व की बजाय। और कारण? कारण सिर्फ एक छोटा सा है; या बड़ा भी कह सकते हैं। कारण सिर्फ इतना है कि पश्चिम में ईसाइयत, यहूदी और इसलाम, तीनों धर्मों ने एक ही जन्म को स्वीकार किया है। एक ही जिंदगी है, समय बहुत कम है, पहुंचना जल्दी है। भारत में, पूरब में, अधैर्य नहीं है। उसका कारण ? उस कारण यह नहीं है कि आप बहुत धीर हैं। आपके पास टाइम एक्सटेंशन ज्यादा है, जन्मों-जन्मों का। इसमें नहीं तो अगले में पहुंच जाएंगे, अगले में नहीं तो और अगले में पहुंच जाएंगे। ऐसी जल्दी क्या है? चूंकि हमने धारणा बनाई है पुनर्जन्मों की, अनंत जन्मों की श्रृंखला की, हमारे पास समय बहुत है। इसलिए हमें घड़ी की बहुत चिंता नहीं है। समय इतनी ज्यादा है कि नाप-नाप कर भी क्या करना है? सागर को कोई नापता है? सागर को क्या नापिएगा? हमारे पास इतना समय है कि क्या नापना है?
इसलिए हम धीरज में हैं। दौड़ भी रहे हैं, तो बड़े आहिस्ता से, सुस्ताते भी हैं। और कोई जल्दी नहीं है। पश्चिम में बहुत जल्दी पैदा हो गई; क्योंकि ईसाइयत ने एक ही जन्म को स्वीकार किया। यह मौत जो होने वाली है, यह आखिरी है। इसके बाद फिर समय नहीं है। स्वभावतः समय कम पड़ गया, घबड़ाहट बढ़ गई। और पहुंचना है।
और चूक गए तो सदा के लिए चूक गए। हमारे मुल्क में चूकने में कोई डर नहीं है। चूकने का मतलब सदा के लिए चूकना नहीं होती। सिर्फ इस बार चूक गए, अगली बार देखेंगे। और परमात्मा अनंत धैर्यशाली है हमारा। वह प्रतीक्षा करेगा, कोई ऐसी जल्दी कहीं भी नहीं है। इसलिए टाइम-काशसनेस, जो कील-चेतना है, वह पूर्व में पैदा नहीं हो सकी। टाइम-कांशसनेस पश्चिम में पैदा हुई। और टाइम-काशसनेस पैदा करने में जीसस का हाथ है। क्योंकि एक ही जिंदगी है तो घबड़ाहट हो गई है।
सागर को हम कहते हैं धीर। ठसे कहीं पहचनी ही नहीं है। नदी तो अधीर होगी ही। इसलिए नदी शोरगुल करेगी, भागेगी, तड़पेगी। उसमें बेचैनी दिखाई भी पड़ेगी। सागर बेचैन नहीं है।
लाओत्से कहता है, इन सब भागते हुए लोगों के बीच, जो गवार हैं, वे विज्ञ और तेजोमय; मैं ही मंद और भात। जो गवार हैं, वे चालाक और आश्वस्त; मैं ही उदास, अवनमित, समुद्र की तरह धीर, इधर-उधर बहता