________________
ताओ उपनिषद भाग ३
मेरे पास लोग आते हैं, वे मुझे तक सलाह देने आ जाते हैं। वे कहते हैं, आप ऐसा करिए तो बहुत अच्छा होगा। मैं उनसे पूछता हूं कि तुम्हारी सलाह से कम से कम तुम तो चले ही होओगे, और अगर तुम्हारे जीवन में आनंद आ गया हो, तो ही मुझे सलाह दो। वे कहते हैं, नहीं, हमारे जीवन में तो कुछ नहीं आया; उसके लिए तो हम आपके पास आए हुए हैं। तो मैं उनसे कहता हूं कि तुम्हारी सलाह सम्हाल कर रखो, और किसी को देना मत! क्योंकि तुम्हारी सलाह के तुम भी उदाहरण नहीं हो।
मुझे याद आता है, हेनरी फोर्ड एक दुकान में गया, एक किताब खरीदी। जब वह किताब देख रहा था, तो किताब थी: हाउ टु ग्रो रिच, कैसे अमीर हो जाएं। हेनरी फोर्ड तो अमीर हो चुका था, फिर भी उसने सोचा कि शायद कोई और बातें इसमें हों। और तभी दुकानदार ने कहा कि फोर्ड महोदय, आप बड़े आनंदित होंगे, इस किताब का लेखक भी दुकान में भीतर है। वह कुछ काम से आया हुआ है, हम आपको उससे मिला देते हैं।
उससे सारी बात बिगड़ गई। वह लेखक बाहर आया। हेनरी फोर्ड ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा और कहा कि यह किताब वापस ले लो, यह मुझे खरीदनी नहीं है। वह दुकानदार हैरान हुआ कि आप क्या कह रहे हैं! इस किताब की लाखों कापियां बिक चुकी हैं।
वह कितनी ही बिक चुकी हों, लेकिन लेखक को देख लिया, अब किताब को क्या करें! कोट फटा था; हाउ टु ग्रो रिच किताब लिखी है उन्होंने! हेनरी फोर्ड ने पूछा कि अपनी ही कार से आए हो कि बस में आए हो? लेखक ने कहा, आया तो बस में ही हूं। तो हेनरी फोर्ड ने कहा कि मैं फोर्ड हूं, और कभी कार की जरूरत पड़े तो मेरे पास आना, सस्ते में निबटा दूंगा। लेकिन अभी ये किताबें मत लिखो। क्योंकि जिस सलाह से तुम नहीं कुछ पा सके, उससे कोई और क्या पा सकेगा?
जिंदगी बड़ी जटिल है। अगर आपको न मिला हो आनंद तो अपने बेटे को अपना ढांचा मत देना। अगर आपको न मिला हो आनंद तो अपनी सलाह किसी को मत देना। वह जहर है। उसी सलाह के आप परिणाम हैं। दूसरों ने आपके साथ ज्यादती की कि आपको ढांचा दे दिया; अब आप दूसरों के साथ ज्यादती मत करना कि उनको अपना ढांचा दे जाएं।
इसीलिए हमें पता नहीं चलता कि क्या है प्रकृति की अनुकूलता। क्योंकि प्रतिकूलता में ही हम बड़े होते हैं। मनुष्य का सारा का सारा संस्थान प्रतिकूल है। इसलिए लाओत्से कहता है कि निसर्ग के जितने अनुकूल हो सकें, उतने अनुकूल हो जाना। क्यों हो गया है प्रतिकूल आखिर? इसको हम थोड़ा समझ लें। इसका पूरा शास्त्र है कि आखिर क्या कारण है कि आदमी प्रतिकूल हो गया है।
कारण है। हर व्यक्ति अनुकूल पैदा होता है। प्रकृति से ही पैदा होता है, इसलिए अनुकूल होगा ही। लेकिन हम किसी व्यक्ति को उसकी निसर्गता में स्वीकार नहीं करते। हम उस पर आदर्श ढालते हैं। हम लोगों से कहते हैं कि महावीर बन जाओ, बुद्ध बन जाओ, कुछ न बने तो कम से कम विवेकानंद बन जाओ! लेकिन आपको पता है कि महावीर दुबारा पैदा नहीं होते? अभी पच्चीस सौ साल में तो नहीं पैदा हुए; हालांकि कई लोगों ने समझाया अपने बेटों को कि महावीर बन जाओ। कोई आदमी इस जमीन पर दुबारा पैदा हुआ है, ऐसी आपको खबर है? कोई राम, कोई कृष्ण, कोई बुद्ध-कोई कभी दुबारा पैदा हुआ है?
हर आदमी अनूठा पैदा होता है। और हम आदर्श देते हैं उसको कुछ होने के कि तू यह हो जा! कठिनाई है मां-बाप की, क्योंकि उनको भी पता नहीं कि घर में जो पैदा हुआ है, वह क्या हो सकता है। किसी को भी पता नहीं। अभी तो वह जो पैदा हुआ है, उसको भी पता नहीं कि वह क्या हो सकता है। सारा जीवन अज्ञात में विकास है। तो मां-बाप की बेचैनी यह है कि कोई ढांचा क्या दें वे?
400