SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 386 क्योंकि जब आप प्रेम में पड़े, तो न तो आंख का आपने विचार किया था और न नाक का आपने विचार किया था। ये तो पीछे से सोची गई बातें हैं। आप कहते हैं, वह सुंदर है, इसलिए मैं प्रेम में पड़ गया। लेकिन मनसविद कहते हैं कि आप प्रेम में पड़ गए, इसलिए वह सुंदर दिखाई पड़ रही है। क्योंकि वही स्त्री किसी और को सुंदर नहीं दिखाई पड़ रही है। और किन्हीं को वही स्त्री कुरूप भी दिखाई पड़ रही है। और कोई सोचेंगे अपने मन में कि तुम भी किस पागलपन में पड़े हो! इस स्त्री को सुंदर देख रहे हो ! तुम्हारी बुद्धि मारी गई है ! पर आपको सुंदर दिखाई पड़ रही है। इसलिए कभी भी जब किसी को कोई सुंदर दिखाई पड़े तो आप आलोचना मत करना। यह आलोचना का काम ही नहीं है। आप चुप रह जाना; आपको न भी दिखाई पड़े तो समझना कि अपनी भूल है । आप शांत रहना । उसमें बीच में बोलना मत; क्योंकि सुंदर का कोई वस्तु से संबंध नहीं है। सुंदर दिखाई पड़ने लगता है कोई भी व्यक्ति, अगर प्रेम हो जाए। और प्रेम क्यों हो गया? तब बड़ी अड़चन है, कि प्रेम क्यों हो गया? तो लोग उसके भी रास्ते खोजते हैं। कोई सोचता है कि शायद पिछले जन्म में कुछ संबंध रहा होगा, इसलिए प्रेम हो गया । पर यह कोई हल नहीं होता । क्योंकि पिछले जन्म में क्यों प्रेम हो गया था ? कहां तक पीछे ले जाइएगा? कहीं तो शुरुआत करनी पड़ेगी। पीछे हटाने से क्या होगा ? आपको पता नहीं है, प्रेम की घटना अचेतन है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, अनकांशस है। आपको पता नहीं कि क्यों हो गया। और आपका मन खोला जाए, तो जो बातें आप बता रहे हैं कि इसकी नाक ऐसी है, और आंख ऐसी है, और शरीर ऐसा है, ये सब बातें कुछ भी नहीं पाई जातीं; कुछ और ही पाया जाता है। अचेतन में आपके उतरा जाए तो कुछ और ही पाया जाता है। उसको मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आपके भीतर अचेतन में बचपन से ही स्त्री की जो छापें पड़ रही हैं, जैसे कि एक बच्चे ने आंख खोली, नर्स दिखाई पड़ी; वह पहली स्त्री है। या मां दिखाई पड़ी, या नौकरानी दिखाई पड़ी, या कोई दिखाई पड़ा; वह पहली स्त्री है। पहली स्त्री का बिंब उसके भीतर अचेतन में उतर गया। अब इस बिंब पर बिंब जुड़ते चले जाएंगे। और बच्चा कोई एक वर्ष तक अचेतन में बिंब इकट्ठे करता रहता है। जितनी स्त्रियों से संबंध होगा, वे बिंब इकट्ठे हो जाएंगे। और इन सब बिंबों से मिल कर अचेतन में एक प्रतिमा बन जाएगी; वह जिंदगी भर इसी प्रतिमा की तलाश करेगा। जब किसी स्त्री से यह प्रतिमा मेल खा जाएगी, वह तत्काल कहेगा, प्रेम हो गया। लेकिन इसका आपकी बुद्धि और विचार से कुछ लेना-देना नहीं है। इसको वे कहते हैं कि यह तो एक्सपोजर पर निर्भर है। और इसलिए बहुत सी बातें घटती हैं, जो आपके खयाल में नहीं हैं। सभी पुरुष स्त्रियों के स्तन में बहुत उत्सुक होते हैं। वह एक्सपोजर है; क्योंकि मां का स्तन उनका पहला अनुभव है। और उसी स्तन से उन्होंने दूध पाया, भोजन पाया, पहला स्पर्श पाया। उस स्तन में उन्होंने प्रेम भी अनुभव किया। उस स्तन के साथ उनके पहले संबंध जुड़े। इसलिए स्तन के प्रति उनका एक एक्सपोजर है । इसलिए आप ऐसी स्त्री के प्रेम में न पड़ पाएंगे, जिसके स्तन न हों। बिलकुल न पड़ जाएंगे। बिलकुल न पड़ पाएंगे। क्योंकि बिना स्तन की स्त्री के प्रेम में पड़ने का मतलब यह होगा कि या तो आपको बचपन से पुरुष के पास बड़ा किया गया ह और आपके मन में कोई स्तन की प्रतिमा न बनी हो, नहीं तो मुश्किल हो जाएगा। इसलिए स्त्रियां भी जाने-अनजाने स्तन को उभार कर दिखाने की कोशिश में लगी रहती हैं। झूठे स्तन भी बाजार में बिकते हैं। अमरीका में एक मुकदमा उन्नीस सौ बीस में चला। एक अभिनेत्री, नाटक की अभिनेत्री - बड़ी प्रसिद्ध अभिनेत्री थी, उसकी बड़ी ख्याति थी— नाटक के एक दृश्य में अभिनेता और उसमें छीन-झपट होती है। उस छीन-झपट में उसका झूठा स्तन बाहर आ गया। तो उसने अदालत में लाखों डालर का मुकदमा किया; क्योंकि उसकी
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy