________________
-
सा में कौन उत्सुक है? हत्या में किसका रस है? और विध्वंस किसकी अभीप्सा बन जाती है? इसे हम थोड़ा समझ लें; फिर इस सूत्र पर विचार आसान होगा। सिगमंड फ्रायड ने इस सदी में मनुष्य के मन में गहरा से गहरा प्रवेश किया है। इस सदी का पतंजलि कहें उसे। सिगमंड फ्रायड की गहनतम खोज मनुष्य की दो आकांक्षाओं के संबंध में है। उन दो को सिगमंड फ्रायड ने कहा है-एक को जीवेषणा और दूसरे को मृत्यु-एषणा। आदमी जीना भी चाहता है, इसकी भी वासना है, और आदमी के भीतर मरने की भी वासना है। दूसरा सूत्र समझना कठिन है। लेकिन अनेक कारणों से दूसरा सूत्र उतना ही अपरिहार्य है, जितना पहला। हर आदमी जीना चाहता, इसमें तो कोई शक
नहीं है। जीने की आकांक्षा सभी को जन्म के साथ मिली है। लेकिन दूसरी आकांक्षा, जो जीने के विपरीत है, मरने की आकांक्षा, वह भी हर आदमी के भीतर छिपी है। इसीलिए कोई आत्मघात कर पाता है; अन्यथा आत्मघात असंभव हो जाए। इसीलिए कोई अपने को नष्ट कर पाता है। अगर भीतर मरने की कोई आकांक्षा ही न हो तो आदमी अपने को नष्ट ही न कर सके।
जैसे-जैसे उम्र व्यतीत होती है, वैसे-वैसे जीवन का ज्वार कम हो जाता है और मृत्यु की आकांक्षा प्रबल होने लगती है। बूढ़े व्यक्ति निरंतर कहते हुए सुने जाते हैं, अब परमात्मा उठा ले। बूढ़ा आदमी सच में ही चाहता है अब विदा हो जाए। क्योंकि अब होने का कोई अर्थ भी नहीं है।
मरने का कहीं कोई गहरा खयाल जवान के भीतर भी है। ऐसा जवान आदमी भी खोजना मुश्किल है, जिसे कभी न कभी मरने का खयाल न आ जाता हो कि मैं मर जाऊं, समाप्त कर लूं। या इस सब में क्या अर्थ है? इस जीवन में क्या प्रयोजन है?
आज ही एक युवती मेरे पास थी। वह कह रही थी कि हर महीने यह बात बार-बार लौट आती है कि जीवन में कोई अर्थ नहीं है, मर जाना चाहिए। अभी तो उसने जीवन देखा भी नहीं है।
छोटे बच्चों तक के मन में मरने का खयाल आ जाता है।
तो अगर मृत्यु की कोई आकांक्षा भीतर न हो तो ये मरने के खयाल कहां से अंकुरित होते हैं? मृत्यु की आकांक्षा भी भीतर है। और जब हम पाते हैं कि जीवन संभव नहीं रहा, तो मृत्यु की आकांक्षा हमें पकड़ लेती है।
यह बात इसलिए भी जरूरी है कि जगत में हर चीजें द्वंद्व में होती हैं। प्रकाश है, तो अंधेरा है; अकेला प्रकाश नहीं हो सकता। और जीवन है, तो मृत्यु है; अकेला जीवन नहीं हो सकता। तो अगर भीतर जीवेषणा है, तो मृत्यु-एषणा भी होनी ही चाहिए। यह सारा जगत द्वंद्व पर खड़ा है। यहां हर चीज अपने विपरीत के साथ बंधी है। विपरीत न हो, यह संभव नहीं मालूम होता।
375