SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ सच्ची संपत्ति की खोज नहीं शुरू होती। जब तक तुम माने ही जाओगे कि तुम सम्राट हो, तब तक तुम उसे न खोज पाओगे, जिसे मैंने खोज लिया है। क्योंकि जो झूठे साम्राज्य को सच्चा मान कर जी रहा हो, वह सच्चे साम्राज्य से वंचित रह जाता है। _स्वभावतः, सीधा गणित है यह। अगर मैं झूठी चीज से मन को बहला रहा हूं, और बहला लिया है मैंने अपने मन को, तो फिर मैं सच्चे की तलाश बंद कर दूंगा। तो बुद्ध ने कहा, इस भीतरी साम्राज्य की खोज के दो चरण हैं। पहला तो यह कि तुम जिसे साम्राज्य समझे हो उसे साम्राज्य न समझो; और दूसरा कि अब तक तुमने बाहर खोजा है, अब तुम भीतर खोजो। जो तुम्हारे पास है, मेरे भी पास था। और जो आज मेरे पास है, वह अभी भी तुम्हारे पास मौजूद है। सिर्फ तुम्हें उसका पता नहीं है। ' लाओत्से कहता है, 'दुनिया के लोग काफी संपन्न हैं, इतने कि दूसरों को भी दे सकें। एक अकेला मैं मानो इस परिधि के बाहर हूं। मानो मेरा हृदय किसी मूर्ख के हृदय जैसा हो, व्यवस्था-शून्य और कोहरे से भरा हुआ।' यहां सभी बुद्धिमान हैं। यहां सभी बुद्धिमान हैं, यहां ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, जो बुद्धिमान न हो। या कि कभी आपको कोई आदमी मिला, जो बुद्धिमान न हो? खोजें, ऐसा आदमी मिल न सकेगा। ऐसा आदमी मिलना मुश्किल है, जो अपने को समझता हो कि मैं बुद्धिमान नहीं हूं; यद्यपि यह बुद्धिमत्ता का पहला लक्षण है। यहां सभी अपने को बुद्धिमान मान कर जीते हैं; इसलिए वास्तविक बुद्धि से वंचित रह जाते हैं। झूठी संपत्ति को समझते हैं संपदा, झूठी बुद्धि को समझते हैं बुद्धिमानी; तो फिर जो वास्तविक है, उससे वंचित रह जाते हैं। उस तरफ पैर ही नहीं उठते, उस मंदिर की तरफ जाना ही नहीं होता, उस राह पर चलना ही नहीं होता। वह खोज का द्वार बंद ही हो जाता है। हम सब बुद्धिमान हैं। और कोई हमसे पूछे कि हमने क्या बुद्धिमानी की है जिसकी वजह से हम बुद्धिमान हैं? लौटें, अपनी जिंदगी को खोजें, क्या बुद्धिमानी की है जिसकी वजह से हम बुद्धिमान हैं? तो मूढ़ताओं का अंबार मिलेगा, ढेर मिलेगा। लेकिन अहंकार को चोट लगती है यह जान कर कि मैं नासमझ हूं। तो हम अपनी नासमझियों पर भी सोने के पलस्तर चढ़ा लेते हैं। हम अपनी नासमझियों पर भी सुंदर वस्त्र ढांक लेते हैं। हम अपनी व्यर्थताओं पर, अपनी विक्षिप्तताओं पर भी रंग-रोगन कर लेते हैं; रंग-रोगन करके हम व्यवस्था जमाए चलते हैं। जीसस ने कहा है कि तुम्हारे शुभ्र वस्त्रों में मुझे सिर्फ सफेद पुती हुई कब्र के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। कब्र को कितना ही सफेद पोत दो, इससे क्या फर्क पड़ता है! हम भी अपने को पोते हुए हैं। कभी आपने सोचा कि क्या है बुद्धिमानी जिसके कारण आप कहें कि मैं बुद्धिमान हूं? जो भी किया है, उससे दुख पाया है। जो भी किया है, उससे दुख पाया है। पाप किया तो दुख पाया, पुण्य किया तो दुख पाया। किसी के साथ बुरा किया तो पछताए; किसी के साथ भला किया तो पछताए। मित्रता बांधी तो दुख पाया; शत्रुता बनाई तो दुख पाया। दरिद्र थे, नहीं था पास एक पैसा, तो पीड़ा थी। अमीर हो गए, पैसे का ढेर लग गया, तो और पीड़ा बढ़ गई। बुद्धिमानी, कौन सी बुद्धिमानी की है? अगर हम जिंदगी को खोजें तो बुद्धिमानी का अर्थ होना चाहिए कि निष्कर्ष आनंद हो तो ही बुद्धिमानी है। बुद्धिमानी की और क्या कसौटी होगी? क्या होगी मापदंड की व्यवस्था? एक ही व्यवस्था है कि बुद्धिमान आदमी निरंतर आनंद को उपलब्ध होगा; कि प्रतिपल उसका आनंद बढ़ता चला जाएगा; कि उसके जीवन की सुगंध, उसके जीवन की सुवास, उसके जीवन की शांति बढ़ती चली जाएगी। प्रतिपल वह और भी प्रकाशोज्ज्वल होता चला जाएगा। प्रतिपल अमृत निकट और मृत्यु दूर होती चली जाएगी।
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy