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युद्ध अनिवार्य छो तो शांत प्रतिरोध ही बीति है
इसलिए जब तक दुनिया में आदमी सिद्धांतों में बटे हैं, तब तक कोई न कोई युद्ध कभी भी करवाया जा सकता है। और जब तक दुनिया में लोग कहते हैं कि मेरा विचार ठीक और तुम्हारा गलत, तब तक कभी भी तलवार निकाली जा सकती है। क्योंकि आखिरी निर्णय कैसे हो कि किसका विचार ठीक? तर्क निर्णय नहीं कर पाता। वर्षों लग जाते हैं और तर्क से कुछ सिद्ध नहीं होता। तलवार जल्दी सिद्ध कर देती है। जो हार जाता है उसका सिद्धांत गलत, और जो जीत जाता है उसका सिद्धांत सही।
यह हैरानी की बात है। आपने सूत्र सुना होगा, हम तो अपने राष्ट्र का प्रतीक बना रखे हैं उस सूत्र को सत्यमेव जयते, सत्य सदा जीतता है। लेकिन हालत उलटी दिखती है। जो जीत जाता है, वह सत्य मालूम पड़ता है; जो हार जाता है, वह असत्य मालूम पड़ता है। सत्य सदा जीतता है, इसका तो कुछ पक्का पता नहीं चलता। लेकिन जो जीत जाता है, उसको आप असत्य नहीं कह सकते, इतना पक्का है। वह सत्य हो जाता है।
थोड़ा सोचें। अगर हिटलर जीत जाता दूसरे महायुद्ध में, तो चर्चिल, स्टैलिन, रूजवेल्ट कहां होते आज? उनकी गिनती पागलों में होती। स्टैलिन, रूजवेल्ट, चर्चिल जीत गए, हिटलर हार गया, तो हिटलर की गिनती पागलों में है। हालांकि दोनों ही पागल हैं। जो जीत जाए, वह लगता है ठीक, जो हार जाए, वह पागल। असल में, बिना पागल हुए राजनीतिज्ञ होना मुश्किल है। थोड़े नट-बोल्ट भीतर ढीले होने ही चाहिए, तो ही आदमी को राजनीति का बुखार चढ़ता है। फिर उसमें जो बड़े पागल होते हैं, वे जीत जाते हैं; जो छोटे रहते हैं, वे हार जाते हैं। पर जो हार जाते हैं, वे इतिहास नहीं बनाते; जो जीत जाते हैं, वे इतिहास बनाते हैं।
इसलिए सब इतिहास झूठा है। क्योंकि हारा हुआ आदमी तो बना ही नहीं पाता। थोड़ा सोचें कि रावण जीत जाता और राम हार गए होते। रामायण होती आपके पास? कभी नहीं हो सकती थी। क्योंकि रावण ने कोई वाल्मीकि खोजा होता, कोई तुलसीदास रावण को मिले होते, सारी कथा और होती। सारी कथा और होती: क्योंकि जो जीत जाता है, उसके इर्द-गिर्द चापलूस इकट्ठे होते हैं, कवि इकट्ठे होते हैं, खुशामदखोर इकट्ठे होते हैं, वे इतिहास रचते हैं। जो हार जाता है, उसकी तरफ तो कोई हाथ उठाने को भी राजी नहीं रह जाता। तो इसलिए इतिहास सब झूठा है। इतिहास सच हो नहीं सकता; क्योंकि कौन बनाता है, इस पर निर्भर करता है।
स्टैलिन ने सारे रूस को निर्मित किया। और स्टैलिन के मरते ही खुश्चेव ने स्टैलिन के नाम को इतिहास से मिटा दिया। रूस की इतिहास की किताबों में स्टैलिन का नाम नहीं है अब। फोटो नहीं है। जिन जगह पर स्टैलिन की फोटो लेनिन के साथ थी, वहां-वहां लेनिन की बची है फोटो, स्टैलिन की काट दी गई। आपको पता हो, न हो, लेनिन की कब-कब्र नहीं कहना चाहिए-लेनिन की जहां समाधि है, जहां उसकी लाश रखी है अभी भी, क्रेमलिन के चौराहे पर, उसके बगल में ही स्टैलिन की लाश भी रखी गई थी। फिर जब खुश्चेव ताकत में आया, तो वह लाश वहां से हटवा दी गई। इतिहास से नाम काट दिया गया। रूस के बच्चे स्कूल में, रूस के बच्चों को पता ही नहीं कि स्टैलिन भी हुआ है।
अब बड़ा कठिन है। यही काम स्टैलिन ने किया था। जब स्टैलिन ताकत में आया, तो जहां-जहां ट्राटस्की के चित्र थे, वे हटा दिए गए। क्योंकि लेनिन के बाद नंबर दो की ताकत का आदमी ट्राटस्की था। तो जगह-जगह उसके चित्र थे, किताबों में उल्लेख था, अखबारों में उल्लेख था, इतिहास में उल्लेख था। वह सब जगह से पोंछ दिया गया। जो स्टैलिन ने ट्राटस्की के लिए किया था, वह खुश्चेव ने स्टैलिन के लिए किया। और अब जो हैं, वे खुश्चेव के साथ वही कर रहे हैं। इतिहास का तय करना बहुत मुश्किल है। हजार साल बाद जिनके हाथ में किताबें लगेंगी, जिनमें स्टैलिन का नाम भी न होगा, वे कैसे समझेंगे कि स्टैलिन ने क्या किया था? या जो किताबें होंगी, उनमें लिखा होगा कि स्टैलिन पागल था, विक्षिप्त था, हत्यारा था। तो वे यही समझेंगे।
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