SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ पिछले पांच हजार साल में पंद्रह हजार युद्ध हुए। हिसाब लगा कर देखा जाए तो ऐसा दिन खोजना मुश्किल है, जब जमीन पर कहीं न कहीं युद्ध न हो रहा हो। युद्ध हो ही रहा है, युद्ध चल ही रहा है। कहीं न कहीं हम आदमी को मार रहे हैं, और मर रहे हैं। आदमी मरने और मारने के लिए है? फिर हम बड़े-बड़े लक्ष्य खड़े करते हैं। और उन लक्ष्यों के कारण ही सज्जन पुरुष भी युद्ध में सैनिक की तरफ झुक जाता है। तब हिंसा छिप जाती है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। क्योंकि हमारे जीवन की व्यवस्था का बहुत नाजुक पहलू है कि जब भी हमें बुराई करनी होती है, तो हम बहुत अच्छे, रंगीन पर्यों की ओट में उसे छिपा देते हैं। क्योंकि बुराई को सीधा करना मुश्किल है। और अगर हम बड़े नारे लगाएं और बड़ी आदर्शों की बात करें, तो फिर बुराई करना आसान हो जाती है। इसलिए कोई भी युद्ध बिना आदर्श के नहीं होता। यह कहा जा सकता है कि जब तक दुनिया में आदर्श हैं, युद्ध से बचना मुश्किल है। आदर्श बदल जाते हैं, लेकिन युद्ध नहीं बदलता, युद्ध जारी रहता है। आदर्श की आड़ में बुरा करना कितना आसान है, इसे थोड़ा खयाल करें। अगर आप एक मस्जिद जला रहे हैं, और यह धार्मिक कृत्य समझ में आए; या एक मंदिर तोड़ रहे हैं, और यह जेहाद हो; तो फिर मंदिर को तोड़ने में, आग लगाने में, निर्दोष पुजारी को काट डालने में आपके मन में जरा भी ग्लानि न होगी। क्यों? क्योंकि जो आप कर रहे हैं, वह दिखाई ही नहीं पड़ता; आदर्श दिखाई पड़ता है। मुसलमानों ने इतने मंदिर जला डाले, इतनी मूर्तियां तोड़ डालीं, इतने निर्दोष लोगों की हत्या कर दी-जेहाद! उनका धर्मगुरु उनसे कह रहा है कि यह धर्मयुद्ध है! अगर जीते, तो यहीं सुख पाओगे। अगर मर गए युद्ध में, तो स्वर्ग में, बहिश्त में परमात्मा का आशीर्वाद मिलेगा। तो फिर आसान है मामला। अगर कुरान हाथ में हो, बाइबिल हाथ में हो, या गीता हाथ में हो, तो छुरा भोंकना बहुत आसान है। क्यों? क्योंकि छुरा फिर छोटी चीज हो जाती है; बड़ी चीज कुरान, बड़ी चीज बाइबिल। अब कोई डर नहीं है। अब किया जा सकता है। अभी हमारे मुल्क में आजादी के बाद लाखों लोग काटे गए। हिंदुओं ने काटे, मुसलमानों ने काटे। जिन्होंने काटे, वह हम ही लोग थे। कभी सोच भी नहीं सकते थे कि यह आदमी, जो दुकान करता है, स्कूल में मास्टरी करता है, या पढ़ता है, या लकड़ी काटता है, या घास बेचता है, यह आदमी कभी हत्या करेगा! इसको कभी कोई सोच भी नहीं सकता था। इसी ने हत्या की। और यह कैसे कर सका? क्योंकि इसकी हमने कभी कल्पना भी न की थी कि यह आदमी किसी को काट भी सकता है। इसने काटा। क्या हुआ? बड़ा आदर्श! फिर आदमी के पागल होने में कठिनाई नहीं होती। युद्ध आदर्शों की आड़ में चलते हैं। दूसरा महायुद्ध चला। हिटलर लड़ा रहा था अपने लोगों को, क्योंकि सारी दुनिया में श्रेष्ठ मनुष्य पैदा करना है, सुपर मैन, महामानव पैदा करना है। तो जर्मन खून में उसने लहर भर दी। जर्मन खून इस आदर्श के पीछे दीवाना हो गया कि ठीक, सारी पृथ्वी को स्वर्ग बना देंगे, नार्डिक जाति को बचा लेंगे, जो श्रेष्ठतम है उसी को बचने देंगे, निकृष्ट को विदा कर देंगे। एक सर्जिकल आपरेशन था, एक गलत को हटा देना है, ठीक को स्थापित करना है। यह बड़ा ऊंचा लक्ष्य था। इसके लिए कोई मरे-मारे, सब उचित था। तो जर्मन लड़ रहे थे। इंग्लैंड, अमरीका और रूस इसलिए लड़ रहे थे कि दुनिया को फासिज्म से बचाना है, नाजिज्म से बचाना है। यह फासिज्म हत्या है लोकतंत्र की, फासिज्म हत्या है समाजवाद की, फासिज्म हत्या है स्वतंत्रता की; इससे बचाना है। तो इंग्लैंड का जवान लड़ रहा था, अमरीका का जवान लड़ रहा था, रूस का जवान लड़ रहा था कि दुनिया एक गर्त में जा रही है पाप के, उससे उसे बचाना है। बड़े आदर्श! आदमी फिर कुछ भी कर सकता है। आदर्श न हो, नग्न सत्य सामने हो, तो युद्ध आदमी कर नहीं सकता। इसलिए कोई युद्ध सीधा नहीं होता। सिद्धांत, शास्त्र, आइडियोलाजी जरूरी है बीच में। 366
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy