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________________ युद्ध अनिवार्य हो तो शांत प्रतिरोध की नीति हैं। 359 उस लेखक ने कहा है कि दुनिया ने गरीबों की क्रांतियां देखी हैं अब तक। तो गरीब कुछ पाने के लिए क्रांति करता है, स्वभावतः। अमरीका उस क्रांति को देखेगा, जो अमीरों के लड़कों की क्रांति है । वे कुछ पाने को क्रांति नहीं करते; कुछ मिटाने को, कुछ खोने को, नष्ट करने को क्रांति करते हैं। तो अभी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के कैंपस में उन्होंने एक राल्स रायस गाड़ी नई खरीद कर आग लगाई, होली जलाई । खरीद कर नई गाड़ी । और जब पत्रकारों ने पूछा कि तुम क्या कर रहे हो? तो उन्होंने कहा, हम सिर्फ तुम्हारे सिंबल को, तुम्हारे प्रतीक को, राल्स रायस को आग लगा रहे हैं। न्यूयार्क एक्सचेंज में जाकर लड़कों ने डालर नोटों में आग लगाई और डालर लुटाए। लोगों ने पूछा कि यह तुम क्या कर रहे हो? तो उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे प्रतीक को नष्ट कर रहे हैं। किसलिए नष्ट कर रहे हो ? क्रोधित हैं, हम सिर्फ क्रुद्ध हैं। हमारी समझ में नहीं आ सकती यह बात; लेकिन जल्दी आ जाएगी समझ में। क्योंकि अगर क्रोध बौखला जाए और कारण न मिले तो क्या करेगा? बच्चे स्कूल तोड़ रहे हैं, फर्नीचर मिटा रहे हैं, कांच तोड़ रहे हैं। हम सोचते हैं, शायद कोई वजह है। कोई वजह नहीं है। आदमी हिंसक है। और आदमी को हिंसा के अब उपाय नहीं हैं। मनसविद कहते हैं कि जो लोग लकड़ी काटते हैं जंगल में, पत्थर तोड़ते हैं, उनकी हिंसा पत्थर तोड़ने, लकड़ी काटने में निकल जाती है। जब सांझ को आठ घंटे लकड़ी काट कर कोई लौटता है, तो पत्नी से प्रेम से मिलता है, बच्चों के साथ गपशप करता है। उसकी हिंसा वह जंगल में निकाल आया है। लेकिन एक आदमी आठ घंटे दफ्तर में बैठ कर घर चला आ रहा है। हिंसा कहीं निकली नहीं, भरा हुआ आ रहा है। यह घर निकालेगा। यह रास्ते खोजेगा घर जाते ही से कि इसकी हिंसा निकल जानी चाहिए। जो आदमी पत्थर तोड़ रहा है, उसकी हिंसा निकल रही है । पत्थर तोड़ने वाला आदमी अचानक पत्थर नहीं तोड़े तो कुछ और तोड़ेगा । तोड़े बिना उसे मजा नहीं आएगा। एक तो परिणाम यह हो रहा है कि हिंसा उबल कर व्यर्थ, अकारण टूटती है। और दूसरा परिणाम यह हो रहा है कि यह जो अकारण टूटती हिंसा है, इसकी मौजूदगी के कारण भीतर के सब रस-स्रोत विषाक्त हो जाते हैं। आदमी प्रेम भी करता है तो उसमें भी हिंसा समाविष्ट हो जाती है। आदमी किसी को गले भी लगाता है तो उसमें भी दूसरे को मरोड़ डालने का, तोड़ डालने का भाव समाविष्ट हो जाता है। क्योंकि जो भीतर छिपा है, वह सब तरफ छा जाएगा। इसलिए अगर दो प्रेमियों को प्रेम करते देखें, और अगर वे थोड़े ईमानदार हों और अपने को समझते हों, तो वे भी समझ पाएंगे कि उनके प्रेम में भी थोड़ी हिंसा है। दो प्रेमी चुंबन लेते-लेते एक-दूसरे को काटने भी लगेंगे, दांत भी गड़ा देंगे। वात्स्यायन ने तो, दांत गड़ाया नहीं जिसने, उसने प्रेम किया ही नहीं, ऐसा लिखा है। जब तक दांत के निशान न छूट जाएं प्रेयसी पर या प्रेमी पर, तब तक भी कोई प्रेम है ! वात्स्यायन ने तो लिखा है कि नाखून कैसे बना कर रखना चाहिए प्रेमी को कि जब वह मांस में गड़ा दे, तो निशान छूट जाएं, रक्त प्रकट हो जाए। नख-दंश प्रेम की प्रक्रियाओं में एक बात उसने बताई । अभी वात्स्यायन की किताब पश्चिम में काफी पढ़ी जा रही है। पूरब में तो अब कोई पढ़ता नहीं है। उसका कारण है। पूरब में यह किताब तब लिखी गई थी, जब हम भी समृद्ध थे। और हमारी भी हिंसा कहीं मौका नहीं पा थी, तो हमने प्रेम में भी निकाली थी हिंसा । आज वात्स्यायन और पंडित कोक की किताबें सारी दुनिया की भाषाओं में अनुवादित होकर प्रचारित हो रही हैं। और पश्चिम के लोग आह्लादित होते हैं पढ़ कर वात्स्यायन को कि गजब के लोग थे हिंदू भी ! क्या-क्या प्रेम की तरकीबें उन्होंने हजारों साल पहले निकाल दी थीं ! लेकिन नाखून का गड़ाना किस अर्थ में प्रेम हो सकता है? इसी अर्थ में हो सकता है कि प्रेम के बहाने थोड़ी सी हिंसा बह गई। तो फिर आदमी होशियार है। फ्रांस में हुआ माक्विस दि सादे, तो उसने सोचा जब नाखून गड़ाने से इतना प्रेम होता है, तो फिर उसने तैयार कर लिए लोहे के नाखून! और वह अपने पास एक छोटी सी थैली रखता था,
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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