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________________ स सूत्र को समझने के लिए कुछ प्रारंभिक बातें समझ लेनी जरूरी हैं। पहली बातः वैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी का सारा विकास अस्त्र-शस्त्रों के द्वारा हुआ है; मनुष्य की सारी प्रगति हिंसा के कारण हुई है। और मनुष्य अगर सारे पशुओं में जीत पाया है, तो बुद्धिमानी के कारण नहीं, ज्यादा हिंसा करने की क्षमता के कारण। ऐसे वैज्ञानिक भी हैं, जो कहते हैं, मनुष्य की बुद्धि हिंसा करने के कारण ही विकसित हुई है। इसे थोड़ा हम समझ लें, क्योंकि लाओत्से की बात इसके बिलकुल विपरीत है। तभी इसके ठीक आमने-सामने लाओत्से की बात समझना आसान भी होगा, उचित भी। शायद आपको पता न हो, डार्विन से लेकर जे.बी.एस.हाल्डेन तक जिन लोगों ने विकास के संबंध में गहन अध्ययन किया है, वे एक बहुत अजीब नतीजे पर पहुंचे हैं। और वह नतीजा यह है कि आदमी का सारा विकास उसके अंगूठे के कारण हुआ। सुन कर थोड़ी हैरानी होगी, लेकिन बात में सचाई है। अकेला आदमी ही ऐसा पशु है, जिसका अंगूठा उसकी अंगुलियों के विपरीत काम कर सकता है। जैसे आपका पैर का अंगूठा है, वह अंगुलियों के विपरीत काम नहीं कर सकता; इसलिए पैर से आप कोई चीज पकड़ नहीं सकते। और जब पकड़ ही नहीं सकते, तो फेंक नहीं सकते। आदमी के हाथ का अंगूठा अंगुलियों के विपरीत काम करता है-अंगुलियां एक दिशा से और. अंगूठा दूसरी दिशा से। इस विरोध के कारण आप हाथ में कोई चीज पकड़ सकते हैं। और इस विरोध के कारण ही आप किसी चीज को फेंक सकते हैं। फेंकने की ताकत ही अस्त्र-शस्त्र का निर्माण बनती है। - कोई जानवर शस्त्रों का उपयोग नहीं कर सकता; क्योंकि पकड़ ही नहीं सकता। और जब पकड़ ही नहीं सकता, तो फेंक भी नहीं सकता। जो जानवर उपयोग कर सकते हैं अंगूठे का, जैसे बंदर, चिम्पांजी, बबून-बंदरों की जातियां हैं। इसलिए वैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी और बंदर सजातीय हैं। क्योंकि उनके पास भी अंगूठा है, जो अंगुलियों के विपरीत थोड़ा सा काम कर सकता है। ज्यादा नहीं। आदमी के मुकाबले गतिमान नहीं है, लेकिन थोड़ी-बहुत चीजें वे पकड़ सकते हैं; थोड़ी दूर तक चीजें फेंक भी सकते हैं। आदमी का अंगूठा उसकी हिंसा का आधार है। वैसे आदमी कमजोर है। यह भी हम ठीक से समझ लें कि आदमी को इतने हिंसक होने की क्या जरूरत पड़ गई होगी। क्योंकि आदमी से ज्यादा हिंसक कोई पशु नहीं है। कोई पशु खेल में हिंसा नहीं करता; सिर्फ आदमी शिकार करता है और खेल में हिंसा करता है। कोई पशु अपनी ही जाति में हिंसा नहीं करता; आदमी आदमी को मारने में बड़ा रस लेता है। कोई पशु अकारण हिंसा नहीं करता; आदमी अकारण हिंसा करता है, और पीछे कारण खोज लेता है। पशुओं में कोई बड़े युद्ध नहीं होते, कोई विश्वयुद्ध नहीं होते। होने की कोई संभावना नहीं है। 353
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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