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________________ खेदपूर्ण आवश्यकता से अधिक हिंसा का विषेध मैं एक गुरुकुल में गया। तो गुरुकुल के सारे अध्यापक इकट्ठे हुए और उन्होंने मुझसे कहा कि आप हमें कुछ समझाएं; अनुशासन टूटता जा रहा है, और गुरुओं को कोई सम्मान नहीं देता, अब क्या किया जाए? तो मैंने उनसे कहा कि मेरी परिभाषा पहले आप समझ लें। मैं उसे गुरु कहता हूं, जिसे लोग सम्मान देते ही हैं। और अगर किसी गुरु को सम्मान नहीं देते तो उसे समझ लेना चाहिए वह गुरु नहीं है। और जो सम्मान पाने की चेष्टा करता है वह तो गुरु है ही नहीं; क्योंकि गुरुता उसे ही उपलब्ध होती है जिसे सम्मान से कोई संबंध नहीं रह जाता। तो उन्होंने कहा, लेकिन शास्त्रों में तो कहा है कि गुरु को सम्मान देना चाहिए। मैंने कहा, आपने शास्त्र ठीक से नहीं पढ़े। शास्त्र कहते हैं, सम्मान जिसको दिया जाता है वही गुरु है। तो धार्मिक आदमी नष्ट नहीं होता। इसको आप थोड़ा उलटा करके समझेंगे तो बहुत आसानी हो जाएगी। जो नष्ट नहीं होता, वह धार्मिक आदमी है। और जो नष्ट हो रहा है, होता रहता है, वह अधार्मिक है। अगर आप नष्ट हो रहे हैं, तो आप समझना कि अधार्मिक हैं। अगर नहीं हो रहे हैं और आपको लगता है कुछ नष्ट नहीं हो रहा है, सृजन हो रहा है, निर्मित हो रहा है, जन्म रहा है, विकसित हो रहा है मेरे भीतर, तो समझना कि आप धार्मिक आदमी हैं। इस तरह अगर सोचेंगे तो बड़ी आसानी हो जाएगी, और अपनी जिंदगी की परख और कसौटी हाथ में आ जाएगी। और एक बार निकष हाथ में आ जाए जिंदगी को जांचने का तो बहुत शीघ्र आदमी को पता चल जाता है कि जहां मैं निसर्ग के प्रतिकूल जाता हूं, वहीं दुख में पड़ता हूं; और जहां निसर्ग के अनुकूल जाता हूं, वहीं मेरा आनंद फलित हो जाता है। निसर्ग के साथ होना आनंद है, और निसर्ग के विपरीत होना दुख है। निसर्ग में डूब जाना स्वर्ग है, और निसर्ग की तरफ पीठ करके भाग खड़े होना नरक है। आज इतना ही। कीर्तन करें, फिर जाएं। 349
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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