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प्रकृति व स्वभाव के साथ अठस्तक्षेप
आज अमरीका दुनिया में सबसे ज्यादा शिक्षित देश है। और अमरीका के विश्वविद्यालय में जो होता है, उससे ज्यादा अशिक्षित स्थिति खोजनी मुश्किल है। और जिन्होंने शिक्षित किया है उसको, तीन सौ, दो सौ वर्षों के सतत श्रम के बाद, वे भी अपना सिर ठोंक लेंगे कि हम इसीलिए इतनी मेहनत कर रहे थे! आज अमरीका में जब शिक्षा पूरी हो गई है, तो परिणाम क्या है?
.. परिणाम यह है कि वह पूरी तरह शिक्षित व्यक्ति आपकी शिक्षा के प्रति क्रोध से भरा है; आपके शिक्षकों के प्रति घृणा से भरा है; आपके पूरे आयोजन, व्यवस्था, समाज, सबके प्रति घणा से भरा है। आपकी शिक्षा का यह फल है। मां-बाप के प्रति, परंपरा के प्रति, जिन्होंने उसको शिक्षित किया है, जिन्होंने उसे यहां तक खींच-खींच कर लाया और बड़ा त्याग किया है-वह बड़ा मजा लेते रहे मां-बाप उनके कि हम बड़ा त्याग करके बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं और अब बच्चे उन सबकी निंदा कर रहे हैं। बात क्या है?
आपकी सेवा में कहीं कोई बुनियादी भूल थी। क्योंकि हमें खयाल नहीं है, जीवन बड़ी जटिल रचना है। आप शिक्षा देते हैं, महत्वाकांक्षा बढ़ती है। असल में महत्वाकांक्षा के लिए ही आप शिक्षा देते हैं। आदिवासी को भी आप समझाते हैं कि अगर पढ़ोगे-लिखोगे तो होगे नवाब। फिर वह पढ़-लिख कर नवाब होना चाहता है, तो मुसीबत खड़ी होती है। फिर कितने लोग नवाब हों? फिर वह कहता है नवाब हुए बिना हम न मानेंगे। हर बच्चे को हम महत्वाकांक्षा दे रहे हैं। महत्वाकांक्षा के बल ही हम उसको खींच रहे हैं, धक्का दे रहे हैं कि पढ़ो, लिखो, लड़ो, प्रतिस्पर्धा करो; क्योंकि कल बड़ा सुख पाओगे। कोई नहीं पूछ रहा है कि कल वह सुख अगर इसको नहीं मिला, तो तुमने जो आशा बंधाई थी, अगर वह असफल हुई, तो इस बच्चे का जीवन सदा के लिए व्यर्थ हो जाएगा। क्योंकि आधा जीवन इसने शिक्षा में गंवाया, इस आशा में कि शिक्षा से सुख मिलेगा और फिर आधा जीवन रोकर गंवाएगा कि वह सुख नहीं मिला। लेकिन इसकी कोई फिक्र नहीं कर रहा है। - आज अमरीका में बच्चा वही अपने मां-बाप से पूछ रहा है। एक मित्र मुझे मिलने आए थे। वे प्रोफेसर हैं। वे
कहने लगे, मेरा लड़का मुझसे यह पूछता है। वह भाग जाना चाहता है। हाईस्कूल में है अभी और हाईस्कूल छोड़ कर हिप्पी हो जाना चाहता है। और मैं उसको समझाता हूं तो वह यह पूछता है कि ज्यादा से ज्यादा, अगर मैं पढ़ा-लिखा, तो आप जैसा प्रोफेसर हो जाऊंगा। आपको क्या मिल गया है?
वह पिता ईमानदार हैं। इधर भारतीय पिता होता तो वह कहता कि मुझे सब मिल गया है। मगर वह पिता ईमानदार हैं। वह कहते हैं, मैं अपनी आत्मालोचना करता हूं तो मुझे लड़के का सवाल सही मालूम पड़ता है। और मैं झूठा जवाब नहीं दे सकता। मुझे कुछ भी नहीं मिला है। हालांकि मेरे बाप ने भी मुझे यही कहा था कि बहुत कुछ मिलेगा। उसी आशा पर तो मैंने यह सब दौड़-धूप की थी। अब मैं किस तरह कहूं इस बेटे को? और तब डरता भी हूं कि अगर यह छोड़ कर भाग गया हाईस्कूल, इसकी जिंदगी खराब हो जाएगी। मगर मैं यह भी नहीं कह सकता कि मेरी जिंदगी खराब नहीं हो गई है। यह कठिनाई है। मेरी जिंदगी भी खराब हो गई है।
तो जिंदगी खराब करने के दो ढंग हैं। एक व्यवस्थित लोगों का ढंग है; एक अव्यवस्थित लोगों का ढंग है। पर वह लड़का यह पूछता है, तो अव्यवस्था से जिंदगी खराब करने में क्या एतराज है? जब खराब ही करनी है तो अच्छी नौकरी पर रह कर खराब की कि सड़क पर भीख मांग कर खराब की, अंतर क्या है? और जब खराब ही होनी है जिंदगी तो कम से कम स्वतंत्रता से खराब करनी चाहिए। इतना तो कम से कम भरोसा रहेगा कि अपनी ही मर्जी से खराब की है। आपकी मर्जी से क्यों खराब करूं?
यह अशिक्षित बच्चे ने कभी बाप से नहीं पूछा था, यह खयाल में रखिए। अशिक्षित बच्चे ने कभी बाप से यह नहीं पूछा था। बाप के मूल्यों पर कभी शक नहीं उठाया था। अब यह बाप खुद परेशान है। लेकिन इसको पता नहीं
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