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संस्कृति से गुजर कर निसर्ग में वापसी
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लोग आमतौर से कहते हैं, फलां आदमी कमजोर है, क्योंकि क्रोध करता है। वे उलटी बात कह रहे हैं। क्रोध से कोई कमजोर नहीं होता, कमजोर की वजह ही लोग क्रोधी होते हैं। लेकिन स्वभावतः परिणाम होगा। जब क्रोध करेगा तो और कमजोर होता जाएगा, क्योंकि शक्ति व्यय हो रही है। और जितना कमजोर होता जाएगा, उतना ज्यादा क्रोध करता चला जाएगा। क्रोध जो है, वह प्याली में आ गया तूफान है। ताकत बिलकुल नहीं है । जितनी थोड़ी-बहुत है, उसको दिखाए बिना कोई उपाय नहीं है। उसे दिखा कर ही कोई रास्ता बन जाए, कोई भयभीत हो जाए, और हमारी शक्ति का वास्तविक कसौटी का मौका न आए, क्रोध उसका आयोजन है।
लाओत्से कहता है, समर्पण है शक्ति । वह कहता है, शक्ति जब होती है, तो दूसरे पर आक्रमण करके उसके सामने सिद्ध नहीं करना पड़ता। शक्ति स्वयंसिद्ध है। दूसरे को सिद्ध करने की आकांक्षा भी अपने में अविश्वास है। आमतौर से यह होता है। आप किसी बात पर विचार, किसी धारणा में श्रद्धा रखते हैं; आपकी कोई मान्यता है। अगर कोई व्यक्ति उस मान्यता का खंडन करे, आप तत्क्षण क्रोधित हो जाते हैं। वह क्रोध बताता है कि आपको डर है कि कहीं मान्यता का खंडन, वस्तुतः आपके मन की जो धारणा है, उसे तोड़ न दे। उस डर से क्रोध आता है। अगर यह धारणा आपका अनुभव है तो क्रोध नहीं आएगा। क्योंकि आपको भरोसा ही है कि इसे तोड़ने का कोई उपाय नहीं है। यह आपका अनुभव है। जब भी आप अपने किसी विचार के लिए दूसरे को ताकत लगा कर समझाने लगते हैं, तो आप ध्यान रखना, आप दूसरे को नहीं समझा रहे हैं, आप दूसरे के बहाने अपने को ही समझा रहे हैं। आपको भय है, डर है। आपको खुद ही भरोसा नहीं है कि जो आप मानते हैं, वह ठीक है।
इसलिए तथाकथित विश्वासी लोग दूसरे की बात सुनने को राजी ही नहीं होते। उनके गुरुओं ने उनको समझाया है कि कान बंद कर लेना, अगर कोई विपरीत बात कहता हो। क्योंकि खुद भी भरोसा नहीं है । विपरीत बात भरोसे को उखाड़ दे सकती है। आप दूसरे को कनविंस करने की, दूसरे को राजी करने की जितनी तीव्रता से चेष्टा करते हैं, उतनी ही तीव्रता से खबर देते हैं कि आपको अपने पर भरोसा नहीं है।
जिसे अपने पर भरोसा है, वह दूसरे को प्रभावित करने के लिए उत्सुक नहीं होगा। और जिसको अपने पर भरोसा है, उससे दूसरे प्रभावित होते हैं। प्रभावित करना नहीं पड़ता, वे प्रभावित होते हैं। और जिसको अपने पर भरोसा नहीं है, उसे बहुत प्रभावित करने की चेष्टा करनी पड़ती है। फिर भी कोई उससे प्रभावित नहीं होता । आत्मश्रद्धा चुंबक है। अपना अनुभव, अगर गहरा और पूर्ण है, तो परम शक्तिशाली है। दूसरे उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। दूसरे को आकर्षित करने का प्रयास, भीतर कमजोरी का लक्षण है।
तो लाओत्से कहता है, समर्पण शक्ति है, आक्रमण कमजोरी है।
एक और कारण से भी कहता है। समर्पण वही कर सकता है, जिसे अपने पर भरोसा है। आक्रमण तो कोई भी कर सकता है। और सच तो यह है, आक्रमण वही करता है, जिसे अपने पर भरोसा नहीं है। समर्पण वही कर सकता है, जिसे अपने पर भरोसा है। पूरा अपने को दे देने का सवाल है। कौन अपने को पूरा दे सकता है ? वही अपने को पूरा दे सकता है, जिसका अपने पर पूरा भरोसा है।
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हम समर्पण करना चाहते हैं, लेकिन हमें अपने पर कोई भरोसा ही नहीं है। तब समर्पण कैसे होगा? जिसे अपने पर भरोसा नहीं है, उसे यह भी तो भरोसा नहीं है कि जो समर्पण उसने इस क्षण में किया है, वह दूसरे क्षण में भी टिकेगा। उसे कल का भी भरोसा नहीं है। अभी भी उसे पक्का नहीं है कि वह सच में करना चाहता है कि नहीं करना चाहता है।
समर्पण की घटना ही इस बात की खबर है कि व्यक्ति को अपने पर पूरी आस्था है; वह अपने को पूरा दे सकता है। पूरे का मालिक है।