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________________ सनातन शक्ति, जो कभी भूल नहीं करती 289 घबड़ाना भी मत । क्योंकि जो आदमी अंधेरे में जीने को राजी है बिना भय के, वही आदमी वस्तुतः प्रकाश को उपलब्ध हुआ है। जो अंधेरे से डरता है, वह प्रकाश को कभी वस्तुतः उपलब्ध नहीं हो सकता। क्योंकि अंधेरा प्रकाश का ही एक रूप है। अंधेरा प्रकाश का ही एक रूप है। भेद हमें दिखाई पड़ता है। अस्तित्व में भेद नहीं है। और अगर हम गहरे उतरें तो इसका मतलब है कि जो नीति की तरफ होशपूर्ण, लेकिन अनीति से भयभीत नहीं; जो संन्यास के प्रति जागा हुआ, लेकिन संसार से भागा हुआ नहीं। इस सूत्र को पूरे जीवन के समस्त विरोधों में फैला देना जरूरी है। जहां-जहां विरोध हो, वहां-वहां जानना कि दोनों को एक साथ जोड़ लेना है। तब जो स्थिति घटित होगी, वही परम शांति की है। अगर हम द्वंद्व में से चुनते हैं, तो शांति कभी घटित नहीं होगी। जो भय से भाग गया संसार से और संन्यास चुन लिया, वह संसार से पीड़ित रहेगा। जो भयभीत है जिससे, भय उसका पीछा कर रहा है। वह कहीं भी चला जाए, उसे शांति न मिलेगी। और डर लगा ही रहेगा संसार का । और संसार छाया की तरह पीछे जाएगा। और वह कितना ही बचे, जहां जाएगा वहीं संसार निर्मित हो जाएगा। लेकिन जो संसार के बीच संन्यस्त हो जाता है, अब इसे कोई भय न रहा। अब इसे कहीं जाने की जरूरत न रही। अब यह जहां भी है...। कबीर मरने के करीब थे। तो कबीर जिंदगी भर काशी में रहे और मरते वक्त उन्होंने कहा, मुझे काशी के बाहर ले चलो। लोगों ने कहा, आप पागल हो गए हैं ! लोग मरने के लिए काशी आते हैं। क्योंकि यहां जो मरता है, वह मोक्ष को उपलब्ध हो जाता है। कबीर ने कहा, इसीलिए मुझे काशी के बाहर ले चलो। इसीलिए मुझे काशी के बाहर ले चलो, क्योंकि मर कर मैं वहीं उपलब्ध होना चाहता हूं, जहां उपलब्ध हो सकता हूं। काशी का सहारा नहीं लेना चाहता। पर लोगों ने कहा, ऐसी जिद्द भी क्या ? अगर काशी के सहारे भी मोक्ष मिलता हो तो ऐसी जिद्द भी क्या ? तो कबीर ने कहा है कि जो मैंने भीतर पा लिया है, अब मुझे नरक में भी फेंक दिया जाए तो वहां भी मोक्ष है। अब कोई भेद नहीं पड़ता। क्या मुझे मिलता है, इससे कोई सवाल नहीं है। क्योंकि मैंने जो भीतर पा लिया है, वही मोक्ष है। काशी मरने वही आते हैं मोक्ष के लिए, जिन्हें भीतर का मोक्ष नहीं मिला है। और जिन्हें भीतर का नहीं मिला, वे पागल हैं कि सोच रहे हैं कि बाहर का मिल जाएगा। काशी में कितने ही बार मरो, मोक्ष नहीं मिल सकता। अपने में एक बार भी मर जाओ, मोक्ष अभी और यहीं है। अपने में मरने का सूत्र है : द्वंद्व में चुनाव मत करना, द्वंद्व को पूरा का पूरा आत्मसात कर लेना । बुरे और भले को, शुभ और अशुभ को, शुक्ल और कृष्ण को, सब को एक साथ आत्मसात कर लेना, ताकि दोनों एक-दूसरे को काट दें। उनके कटते ही व्यक्ति अनादि अस्तित्व में वापस लौट जाता है। ' और उसे वह सनातन शक्ति प्राप्त हो जाती है, जो कभी भूल नहीं करती।' फिर उसे सोचना नहीं पड़ता कि मैं यह करूं और यह न करूं। फिर उसे सोचना नहीं पड़ता कि क्या ठीक है और क्या गलत है । फिर तो उससे जो होता है, वह ठीक होता है। और उससे जो नहीं होता, वह गलत है। फिर तो उसका होना ही उसका नियम है। आज इतना ही। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें, और फिर जाएं।
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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