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सूत्र में प्रवेश के पूर्व कुछ बुनियादी बातें समझ लेनी जरूरी हैं।
पहली बात। लाओत्से स्त्री को - स्त्रैण चित्त को — ज्यादा मौलिक, आधारभूत मानता है। पुरुष गौण है।
सारे जगत में पुरुष प्रमुख समझा जाता है, स्त्री गौण। पहले तो इस बात को ठीक से समझ लेना चाहिए; क्योंकि पूरे मनुष्य जाति का इतिहास लाओत्से के विपरीत निर्मित हुआ है। सभी सभ्यताएं पुरुष को प्रमुख और स्त्री को गौण मान कर चलती रही हैं।
लाओत्से मानता है, स्त्री प्रमुख है, पुरुष गौण है।
और आज विज्ञान भी लाओत्से के समर्थन में है। क्योंकि विज्ञान भी मानता है कि सभी बच्चे मां के पेट में प्राथमिक रूप से स्त्रैण होते हैं। जो गर्भ का प्रारंभ है, मां के पेट में, सभी बच्चे स्त्री की तरह यात्रा शुरू करते हैं। फिर
उनमें से कुछ बच्चे पुरुष की तरह विभिन्न यात्रा पर निकलते हैं। लेकिन प्रारंभ सभी बच्चों का स्त्रैण है।
दूसरी बात समझ लेने जैसी है, वह यह कि पुरुष भी स्त्री से ही जन्मता है। इसलिए गौण ही होगा, प्रमुख नहीं हो सकता। वह भी स्त्री का ही फैलाव है। वह भी स्त्री की ही यात्रा है।
तीसरी बात । जीव- शास्त्री कहते हैं कि पुरुष में एक तरह की तनाव- स्थिति है; स्त्री में वैसी तनाव-स्थिति नहीं है। जीव-वैज्ञानिकों के अनुसार जिस दो अणुओं के मिलन से, जीवाणुओं के मिलन से व्यक्ति का जन्म होता है। • प्रत्येक जीवाणु में चौबीस कोष्ठ होते हैं। यदि चौबीस - चौबीस कोष्ठ के दो जीवाणु मिलते हैं तो स्त्री का जन्म होता है। कुछ कोष्ठ तेईस जीवाणुओं वाले होते हैं। अगर तेईस और चौबीस, ऐसे दो जीवाणुओं वाले कोष्ठ का मिलन होता है तो पुरुष का जन्म होता है। पुरुष में संतुलन थोड़ा कम है। एक तरफ चौबीस कोष्ठ हैं, एक तरफ तेईस कोष्ठ हैं। स्त्री संतुलित है। दोनों कोष्ठ चौबीस-चौबीस हैं। तो जीव- वैज्ञानिक कहते हैं कि स्त्री के सौंदर्य का कारण यही संतुलन है। ज्यादा संतुलित, ज्यादा बैलेंस्ड । यही कारण है कि स्त्री का धीरज, सहनशीलता पुरुष से ज्यादा है। और यही कारण भी है कि पुरुष स्त्री को दबाने में सफल हो पाया। क्योंकि बेचैनी उसका गुण है; वह जो तेईस और चौबीस का असंतुलन है, जो तनाव है, वही उसका आक्रमण बन जाता है । और पुरुष पूरे जीवन संतुलन की खोज कर रहा है।
इसलिए बहुत मजे की बात है: स्त्रियों ने बुद्ध, महावीर, कृष्ण, जीसस पैदा नहीं किए हैं। पुरुषों ने पैदा किए हैं। उसका बहुत मौलिक कारण यही है कि पुरुष की ही खोज है शांति के लिए; स्त्री की कोई खोज नहीं है। स्त्री स्वभाव से शांत है; अशांति विभाव है । उसे चेष्टा करके अशांत किया जा सकता है। पुरुष स्वभाव से अशांत है। चेष्टा करके उसे शांत किया जा सकता है। इसलिए बुद्ध पुरुषों में पैदा होंगे, स्त्री में पैदा नहीं होंगे।
पुरुष चेष्टा कर रहा है निरंतर कि कैसे शांत हो जाए। और आक्रामक होना उसका स्वभाव होगा, एग्रेशन उसका लक्षण होगा। इसीलिए पुरुष खोज करेगा; क्योंकि खोज आक्रमण है । पुरुष विज्ञान निर्मित करेगा; क्योंकि