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ताओ उपनिषद भाग ३
के लिए; नहीं तो फिर आप भगवान कभी हो न पाएंगे। पक्का समझ लेना। किसी की आंखें ठीक करना जरूरी नहीं है आपके भगवान होने के लिए; नहीं तो फिर आप भगवान कभी हो न पाएंगे। और या फिर कोई डाक्टर भगवान हो जाएगा। भगवान होने का अर्थ ही यह है कि वह जो हमारे भीतर छिपा स्वभाव है, जो ताओ है, वह जो हमारे भीतर का अस्तित्व है, उस अस्तित्व की प्रतीति, उस अस्तित्व में प्रवेश।
तो यह झंझट भी आपकी अलग कर दूं। नाहक आपको लगता है कि मैंने क्यों अपने को भगवान कहा। अभी तक कहा नहीं था; आज मैं आपको कह देता हूं : मैं भगवान हूं। उससे अड़चन मिटेगी, उससे सुविधा हो जाएगी। लेकिन इसका यह मतलब आप मत समझ लेना कि आप कुछ और हैं। आप भी वही हैं। देर-अबेर होगी आपको पहचानने में, लेकिन चेष्टा करें तो पहचान ले सकते हैं।
भगवान होना कोई दावा नहीं है, भगवान होना हमारा सहज स्वभाव है।
शेष प्रश्न तो पुनरुक्तियां हैं। दो बातें अंत में।
प्रश्न पूछ लेना कठिन नहीं है, जवाब देना भी कठिन नहीं है। जो प्रश्न भी पूछा जा सकता है, उसका जवाब भी दिया जा सकता है। लेकिन सच में ऐसे प्रश्न पूछना, जो आपके काम पड़ें, बहुत कठिन है। और वैसे प्रश्नों का जवाब देना भी आसान नहीं है। लेकिन आप वैसे प्रश्न पूछते ही नहीं। '
ऐसा लगता है कि ऐसा कोई प्रश्न ही नहीं है आपके पास जो आपकी जिंदगी में काम आने वाला हो। आपके प्रश्न व्यर्थ के प्रश्न मालूम पड़ते हैं। ऐसा लगता है कि बुद्धि में थोड़ी खुजली होती है उससे आपके प्रश्न निकलते हैं। कोई आत्मा में कोई प्यास, कि कोई पुकार, कि कोई खोज, ऐसा नहीं। खुजली! थोड़ा खुजा लिया। फिर खुजाने से खून निकल आए तो जिम्मा मेरा नहीं है। फिर पीछे तकलीफ हो तो जिम्मा मेरा नहीं है। अपने तरफ हमारा शायद ध्यान नहीं है। शायद हमें खयाल ही नहीं है कि हम कुछ और भी हो सकते हैं, जो हम हैं; जहां हम खड़े हैं, वहां से कहीं और पहुंचना भी हो सकता है। हमारा जीवन भी यात्रा बन सकता है, उसका हमें कोई खयाल नहीं है। हम पूछे चले जाते हैं, कुतूहलवश, बिना इसकी फिक्र किए कि अगर इसका उत्तर मिल जाएगा तो फिर क्या करना है।
अब जैसे एक मित्र ने पूछ लिया, आप अपने को भगवान क्यों कहलवाते हैं या कहते हैं। कोई भी उत्तर हो, इससे उस मित्र को क्या होगा? कोई भी उत्तर हो। मैं कह दूं मैं भगवान हूं, मैं कह दूं मैं भगवान नहीं हूं, इससे उस मित्र को क्या होगा? मेरे संबंध में दिया गया कोई भी वक्तव्य उस मित्र को क्या लाने वाला है?
खुजली है। थोड़ी खरोंच लग जाएगी, तकलीफ होगी। जिस मित्र ने पूछा है, वह परेशान घर लौटेगा। अगर जवाब न दूं तो वह समझेगा कि मैं हिम्मतवर नहीं हूं। और जवाब दूं तो उसकी खुजली में खून निकलेगा, वह भी मुझे पता है। अब वह परेशान लौटेगा। प्रश्न से उसे कोई हल नहीं होने वाला है, कोई राहत नहीं मिलने वाली है। फिर किसलिए पूछा है? हमें खयाल ही नहीं है हम क्यों पूछ रहे हैं। इसलिए हम बहुत से प्रश्न पूछते हैं, बहुत से उत्तर इकट्ठे कर लेते हैं और हम वैसे के वैसे ही रह जाते हैं जैसे थे।
आगे के लिए आपसे कहता हूं, थोड़ा सोच कर पूछे। और सोचने के लिए एक कसौटी रख लें कि इसका जो उत्तर मिलेगा, उससे मैं क्या कर सकता हूँ?
__एक गांव में मैं था। दो बूढ़े मेरे पास आए। एक जैन था, एक हिंदू था; दोनों पड़ोसी। उन्होंने दोनों ने मुझसे कहा कि हमारा पचास साल का विवाद है। दोनों साथ पढ़े, दोनों बड़े साथ हुए, धंधा साथ किया। यह हिंदू है, मैं जैन हूं। मैं जैन हूं, मैं मानता हूं कि किसी ईश्वर ने जगत को नहीं बनाया। यह हिंदू है, यह मानता है कि जगत को ईश्वर ने बनाया। इसमें कुछ निर्णय नहीं हो पाता, विवाद होता रहता है। अब तक कोई हल नहीं हुआ। आप आए हैं, आप
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