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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ आप उसे याद मत रखें। जो सार्थक है, वह भीतर रह जाएगा। वह आपकी जिंदगी में जगह-जगह से कभी-कभी प्रकट होगा। जो गैर-सार्थक है, उसे याद रखना पड़ता है। इमर्सन ने कहीं शिक्षा की परिभाषा करते वक्त कहा है कि शिक्षा वह है जो स्कूल छोड़ने पर भूल जाती है, सब भूल जाती है; लेकिन फिर भी एक शिक्षित और अशिक्षित आदमी में एक फर्क रह जाता है। वह फर्क क्या है? वह फर्क क्या है? वह जो सार्थक था, अगर डूब गया, तो वही फर्क है, वही सुसंस्कार है, वही संस्कृति है। शिक्षा तो भूल जाती है। आज कितनी आपको ज्यामिति की थ्योरम याद हैं? अंग्रेज लेखक सामरसेट माम ने लिखा है कि मैं लाख उपाय करूं-और उसकी बात मुझे समझ में पड़ी, क्योंकि मैं भी उसी परेशानी में रहा हूं-लिखा है कि लाख उपाय करूं, ए से लेकर जेड तक पूरी वर्णमाला याद नहीं आती। मुझे भी नहीं आती, उसको फिर-फिर गिनना पड़ता है। डिक्शनरी देखो तो फिर से देखना पड़ता है कि एच किसके आगे है और किसके पीछे। सामरसेट माम ने लिखा है कि कितना ही उपाय करो, वर्णमाला याद नहीं आती। वर्णमाला याद आने के लिए है भी नहीं। भूल ही जानी चाहिए। क्योंकि जिनको वर्णमाला ही याद आती है, उनको फिर कुछ और याद नहीं आएगा। वर्णमाला याद रखने की चीज नहीं है, भूल जाने की चीज है। उसका काम रह जाता . है, उसका उपयोग रह जाता है। वही उपयोग। शास्त्रों के साथ कठिनाई है, सिद्धांतों के साथ कठिनाई है-शब्द याद रह जाते हैं, उपयोग बिलकुल याद नहीं रहता। तो मैं जो कहता हूं, वह आपके मस्तिष्क पर बोझ न बन जाए, आप उस बोझ से हलके होकर लौटें। भूल ही जाए, उतर ही जाए। तो जो सार है, जो बीज है, वह आपके भीतर पड़ा रह जाएगा। और किसी दिन अचानक आप पाएंगे कि उसमें अंकुर आ गए, उसमें फूल आ गए। वे फूल, जो मैंने कहा है, उसके सत्य की खबर देंगे। और जो मैंने कहा है, अगर वही आपको याद है, तो केवल शब्द आप में दोहरते रहेंगे, और सत्य से आप वंचित हो जाएंगे। इसलिए भी! और इसलिए भी कि मेरा मानना है कि बुद्धि से कोई कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचता है। सोच-सोच कर कोई कभी सत्य तक नहीं पहुंचता है। नाच कर तो कभी-कभी कुछ लोग पहुंच गए हैं, हिसाब करके कभी कोई नहीं पहुंचा है। कुछ पागल तो कभी-कभी पहुंच गए हैं, लेकिन होशियार लोग नहीं पहुंच पाते हैं। उनकी होशियारी ही बाधा बन जाती है। लेकिन एक अड़चन है। जो लोग पागलपन की बात करते हैं, वे होशियारी की बात नहीं करते। इसलिए होशियार आदमी उनके पास फटकते ही नहीं। जो लोग होशियारी की बात करते हैं, वे पागलपन से बिलकुल दूर साफ-सुथरे रहते हैं। वे पागलपन को बिलकुल अछूत मानते हैं। उनके पास पागल नहीं फटकते। लेकिन ध्यान रहे, समझ और पागलपन का एक गहरा तालमेल जब निर्मित होता है, तो जीवन में श्रेष्ठतम क्रांति घटित होती है। बुद्धिमानी अगर हंस न सके, तो थोड़ी कम बुद्धिमानी है। बुद्धिमान अगर नाच न सके, तो थोड़ा कम बुद्धिमान है। अगर बुद्धि हलकी होकर उड़ न सके, तो पत्थर है। मेरी दृष्टि में, जीवन इन विरोधों का एक संगम है। सोचें खब, लेकिन सोचने पर रुक न जाएं। कहीं एक क्षण सोचने को एक तरफ रख दें वस्त्रों की तरह, नग्न हो जाएं सोचने से; नाचें, कूदें, छोटे बच्चों की तरह हो जाएं। अगर आप छोटे बच्चे में और बुद्धिमान में, दोनों के बीच कोई सेतु बना लेते हैं, तो आपने वह गोल्डन ब्रिज, स्वर्ण-सेतु बना लिया जिस पर से होकर ही सभी को जाना पड़ता है। अगर आप वह नहीं बना पाते हैं, आप अधूरे रह जाएंगे। अगर आप सिर्फ नाच ही कूद सकते हैं, तो आप पागल हैं। अगर आप सिर्फ सोच ही सकते हैं, तो आप दूसरे ढंग के पागल हैं। अगर आप ये दोनों एक साथ आप में संभव हैं, तो इन दोनों का मिलन एक नए तत्व को जन्म दे जाता है, जिसको प्रज्ञा कहते हैं, जिसको विजडम कहते हैं। इसलिए भी! 266
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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